बुधवार, 29 अप्रैल 2020

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) के समान छोटी-छोटी और पंक्तिबद्ध पत्तों के कारण ही ये छत्तीसगढ़ में चाँटी(बस्तर में चाटी)भाजी कहलाती है.
  ये भाजी हर साल खेतों में पहली बारिश के साथ ही अपने आप प्रकट हो जाती है.औरतें इसके पत्तों को डंठल सहित तोड़कर जमा करती हैं और घर में मूंग,उड़द या कुलथी दाल के साथ इससे पकाती हैं.कोंडागाँव सहित आस-पास के गाँवों के हाट-बाजारों में भी ये भाजी  खूब बिकती है.आप भी कभी दाल के साथ जरूर आनंद लीजिएगा चाटी भाजी के लज़ीज स्वाद का.

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

सिवना

#सिवना


खम्हार का पेड़ बस्तर में सिवना के नाम से जाना जाता है.गोंडी में इसका नाम "कुड़सी" है.इसे जहाँ भी रोप दीजिए बड़ी सरलता से और तेजी से वृद्धि करने लगता है.8-10 साल में यह विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लेता है.यह इमारती लकड़ी के रूप में प्रयुक्त होता है.इसकी हल्की होती है इसलिए बस्तर में मंदरी आदि निर्माण में भी प्राय: इसी लकड़ी का प्रयोग होता है.
मार्च   महीने में इसके पत्ते गिर जाते हैं इसमें हलके पीले-पीले फूल आ आ जाते हैं.अप्रैल में नए पत्तों के साथ ही डालियाँ फलों से लद जाती हैं.हवा के झोंकों से कच्चे-पके फल जमीन पर गिर पड़ते हैं.इसके फल को पालतू पशु बड़े चाव से खाते हैं.जुगाली कर ये बीज को मुँह से बाहर निकाल देते हैं,जिसे इकट्ठा कर आप बरसात के दिनों में उनसे खम्हार के नए पौध तैयार कर सकते हैं.इसके कठोर बीज को तोड़कर बीच के सफेद वाले को खाया जाता है,जो बड़ा ही स्वादिष्ट होता है.

सिवना का पौध तैयार करना बड़ा सरल है.इसके सूखे बीज जमा कर लें.चौमासे के समय गीली जमीन में बिखेरकर ऊपर मिट्टी डाल लें.कुछ दिनों में पौधे निकल आएँगे.लगभग 10-15 से.मी. की लंबाई होने पर इन्हें छोटी-छोटी थैलियों में डाल लें.फिर जब चाहे तब लगा लें.इसके खेत की मेड़ पर पंक्तिबद्ध लगा दीजिए ये बड़ा खूबसूरत नज़र आएगा.
आदिवासियों के सरनेम प्राय: जीव-जंतुओ या पेड़-पौधों पर आधारित होते हैं.सिवना वृक्ष भी सरनेम के रूप में लिखा जाती है.हमारे राज्य में ही नहीं देश के कई हिस्सों में खन्हार नाम के गाँव बसाए गए हैं.मेरे ससुराल का ही नाम है-#सिवना_भाटा.

अशोक कुमार नेताम

#सोली_पैली


जैसे भार ग्राम में,तरल पदार्थ लीटर और लंबाई मी. में मापी जाती है.बस्तर में अनाज आदि मापने में आज भी प्राय:सोली-पैली का उपयोग किया जाता.कई लोग इसके लिए "पयली" या 'पायली'' भी उच्चारित करते हैं.
बस्तरिया हाट-बाजारों में महुआ,चावल,दाल,उड़द,
कुलथी,चना,चिवड़ाआदि प्रति पैली/सोली की दर से विक्रय किया जाता है.

सोली छोटा पैमाना है जो लगभग 8 से.मी. व्यास व 11से.मी. गहरा पात्र है जिसमें लगभग 500 ग्राम अनाज समाता है.

वहीं पैली लगभग 14 सेमी व्यास व 15 से.मी. गहरा होता है.तथा इसमें 4 सोली अनाज बड़े आराम से आ जाता है.

अनाज आदि उपज को भी बस्तरवासी प्राय: पैली से मापते हैं.20 पैली का माप यहाँ 1खण्डी कहा जाता है.किसी ने कहा कि मेरे घर 5 खण्डी उड़द हुआ यानी कि मतलब हुआ कि उसके यहाँ 5×20=100 पैली उत्पादन हुआ.

बस्तर में अन्न आदि के विनिमय के लिए प्राय: यही मापन यंत्र प्रयुक्त होते हैं.

हल्बी में एक मुहावरा भी है-आपलोय पैली के भरतो यानी दूसरों की न सुनकर,केवल अपनी हाँकना.

अशोक कुमार नेताम

भृंगराज

दो-तीन दिन की आड़ में हो रही हल्की बारिश के चलते आजकल खेतों में कई प्रकार की वनस्पतियाँ उग आईं हैं.उनमें से एक ये  घास है,जो चौड़े घास के साथ जमीन पर फैली है तथा इसके एकदम पतले डंठल ऊपर की ओर उठे हैं,जिसमें सफेद-पीले बड़े ही खूबसूरत फूल लगे हैं.सैकड़ों फूल हवा के साथ लहराते दिख रहे हैं.

हमारी माँ चारे काटने के साथ इसे भी हाथों से खींचकर जमा कर रही हैं,क्योंकि बैल इसे बड़े चाव से खाते हैं.ये क्या है?पूछने पर वो कहती हैं कि ये "लाटा" यानी कि एक तरह का खरपतवार है.वैसे ये भृंगराज है.जिसे घमरा भी कहा जाता है.प्राय: बालों के पोषण के लिए प्रयोग होने वाले उत्पादों में इसके तेल का प्रयोग किया जाता है.
आपको इसके औषधीय प्रयोग संबंधी कई तरह की जानकारियाँ इन्टरनेट व यू ट्यूब पर बड़ी आसानी से मिल जाएँगी.

यू ट्यूब की एक लिंक हम भी साझा कर ही देते हैं.

https://youtu.be/px35I_SvkR0

अशोक कुमार नेताम

नागरमोथा

खेत में खड़ा सूरज की रोशनी में ये #नागरमोथा
बिल्कुल सोने की तरह चमक रहा था.
 माँ के अनुसार स्थानीय बोली में ये #बरहा_लाटा है.ये पौधा कुछ-कुछ केसुर/केसरवा कांदा के पौधे के सदृश दिखाई देता है.बरसात के दिनों में ये बाड़ियों-मैदानों में गहरे हरे रंग की पत्तियों के साथ प्रकट हो जाते हैं.पौधे के जमीन के नीचे छोटा सा कंद पाया जाता है,जो बड़ा ही मीठा और दिव्य गंधयुक्त होता है.इसके कंद की खुशबू से ही इसके बड़े उपयोगी व औषधीय महत्व का पौधा होने का आभास हो जाता है.आप इसके उपयोग आदि के बारे में इंटरनेट पर और अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं.
फिलहाल तो हम बताते हैं कि इसे बरहा लाटा या बरहा कांदा क्यों कहा जाता है?बरहा यानी कि सूकर या वाराह.
प्राय: बाड़ी आदि में सूकर लगातार मिट्टी में आपना मुँह गड़ाए चलता जाता है.इस दौरान वह इसके कंद की ही तलाश करता है.व उसे खाता है.

अशोक कुमार नेताम

पेंग भाजी

#पेंग_भाजी

बस्तर की बहुत ही प्रसिद्ध जंगली लता.हर बस्तरवासी ने कम से कम इसका नाम तो सुना ही होगा.और भाजी भी जरूर खाई होगी?पेंग और बस्तर गोंचा(रथ यात्रा)का संबंध तो सर्वविदित है.इस दिन बाँस से बनी तुपकी के साथ पेंग के बीज का प्रयोग गोली के रूप में किया जाता है.आजकल जंगल में साल आदि के पेड़ों से लिपटी पेंग की लंबी-लंबी लताएँ,हरे-हरे पत्ते और हवाओं के साथ झूलते इसके फूल बड़े ही खूबसूरत दिखाई दे रहे हैं.

इसके फूलों व मुलायम पत्तियों को डंठलसहित तोड़ लिया जाता है.फिर धोकर सीधे सब्जी बनाई बनाई जाती है.बस्तरवासी प्राय: इससे "अम्मट'' बनाते हैं.जुलाई के  महीने में फूल की जगह हरे-हरे पेंग के गुच्छे लटकने लगते हैं.कुआँर महीने के आस-पास ये पक जाते हैं.इसके बीजों से तेल निकाला जाता है,जिसका रंग लाल और स्वाद कड़वा है.इसके तेल का प्रयोग शरीर के अंगों की मालिश में किया जाता है.

यदि ये वनस्पति आपको मिले तो इसकी भाजी के स्वाद का मज़ा जरूर लीजिएगा.

अशोक कुमार नेताम

रविवार, 2 फ़रवरी 2020

ऑटोवाला

"कितने रुपये हुए?"
ऑटो ये उतरते ही मैंने पूछा.

"पैसे नहीं लूँगा भैया."

"क्यों?"

"लगभग एक महीने पहले जब आपकी गाड़ी छूट गई थी,तब ऑटो से पीछा कर मैंने आपको बस तक पहुँचाया था.चिल्लर न आपके पास थी और न मेरे पास.इसलिए आपके बीस रुपए मेरे पास ही बाकी रह गए थे."

"ओह आपने याद रखा?"

"हाँ भैया.क्योंकि वो आपके पसीने की कमाई का हिस्सा था.और दूसरे की कमाई कहाँ फलती है."

"अपना नाम बताइए.मैं आपकी ये कहानी दूसरों तक जरूर पहुँचाऊँगा."

पर उसने नाम बताने से साफ मना कर दिया.

"अगर मैं दोबारा न मिला होता तो?"मैंने आखरी सवाल किया.

"तो इन रुपयों से मैं कलम या चॉकलेट लेकर बच्चों में बाँट देता."

तब तक उसे दूसरी सवारियाँ मिल गई,जिन्हें बिठाकर वो मुस्कुराता हुआ आँखों से ओझल हो गया. 

अशोक कुमार नेताम

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...