शुक्रवार, 30 जून 2017

||दूय छाक सल्फी||

तुमी रुपया-पयसा बीता,
अउर हमी दादा बस्तरिया,
काय जानुँ बे झिकुकलाय सेल्फी.
आमचो तो जीवना आय इतरो,
कि दिन भर कमउँसे अउर,
साँझ बेरा दूय छाक पियुँ देउँसे सल्फी.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||हराम हुआ जागना-सोना||

मेरा वो लंगोटिया यार,
बड़े दिनों के बाद मिला.
देखते ही उसे,
मेरा मन सुमन खिला.

मैंने कहा अरे भाई,
तू बहुत दिन बाद दिखा.
अब भी तुम्हारा दिल है कोरा कागज,
या इस पर नाम,किसी का लिखा?

कहा उसने यार क्या करूं,
है मेरे दिल में एक लड़की.
पर नहीं की शादी अब तक,
क्योंकि चल रही है,अभी कड़की.

हालात से मजबूर,
और दुर्भाग्य का मारा हूं.
मेरे सभी साथी बन गए बाप,
और मैं अब तक कुंवारा हूं.

मेरे दिल में बसती है एक लड़की,
जिसका नाम है सोना.
पर कहा उसने कि शादी नहीं करुंगी तुमसे,
जब तक न मिलेगा मुझे बहुत सारा सोना.
अब कमाता हूं मैं दिन-रात,कोल्हू के बैल की तरह,
हाय!हराम हुआ मेरा जागना और सोना.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

मंगलवार, 27 जून 2017

||गाँव चो सुरता अएसे||

रुक-राई,नंदी-डोंगरी चे,
मचों नंजर ने दखा दयसे.
गाँव ले रहुन लाफी,
गाँव चो सुरता अएसे.

उठला बे बिहाने संजकरी सबाय झन,
जसन कुकड़ा बासली,गागला चड़ई पीला.
डौकी मन घर के बहारला अउर,
गोबर घोरुन दुआर के,काय मंजा छड़ा दीला.

आया बले उठुन,अँधारे-अँधार निकरली बे,
गपली धरुन खमन बाट,बोड़ा-फुटु बुलुक.
बाबा बले नीलो बे,बैला-नाँगर,जुआँड़ी-जोता,
तुरिया नाहलेक माई धान,बेड़ा ने बुनुक.

आठेक बजे बोहड़ली बे आया घरे,
आनली बे पान-दतुन,बोड़ा-फुटु बाँस्ता,बोदी भाजी.
चुड़ली बे घरे बोड़ा-बेसन चो आमट,
काय सुँदर सुका बाँस्ता,नाहलेक फुटु संग झीर्रा भाजी.

बारा एक बजे बाबा बले इलो बे घरे ,
बेटी-बोहारी मन दीला बे पतरी ने,
साग-भात सबके बाटुन-बाटुन.
खादला बे सबाय झन,
काय मंजा आजि फेरे नुआ साग,
अंडकीमन के चाटुन-चाटुन.

आजी काल तो आय,
खेती कमानी चो मोहका.
फोकट नी रहोत एबे,
कोनी डौकी-डौका.

सकत भर बेड़ा ने,
काम-बुता करसोत.
जोंधरा बीजा जगासोत,
अउर बेड़ा ने थरहा लगासोत.

अउर मँय आँसें इता सहरे,
एक ठान खोली ने ढाकी होउन.
सुरता करेंसे रोजे गाँव के,
सोउन-उठुन-बसुन.

साग-भात,सब मिरेसे इता पयसा ने,
मान्तर आया,जे सुआद आसे नइ,
तुचो राँधलो झीर्रा भाजी ने.
हुसन सुआद कहाँ मिरे मके,इता चो,
साँभर-इडली-डोसा,चाउमीन,पाव भाजी ने.

ए पलासटिक चो पानी के,
पियुक नी भाए.
मैं झटके बोहड़ेंदे रे!मचो गाँव,
तुचो बिगर मके जियुन नी भाए.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||नहीं मिलेगा तुम्हारा अंक?||

छोड़कर अपना गाँव
पीछे,बहुत दूर.
आया है खाक छानने,
महानगर रायपुर.
एक भोला-निश्छल,
सीधा-सादा रंक.
जीवन ज्ञान से,
है जो पूर्णत: निरंक.
चाहता है तुम्हारे आँचल की छाँव,
माँ तुम्हारे लाल को,
क्या नहीं मिलेगा तुम्हारा अंक?

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||न सोया रह सुख सेज पर||

आया तो है जग में,
कुछ भिन्न करने औरों से,पर...|
समय अश्व उड़ा जा रहा,
जैसे निकल आएँ हो उसके पर.
निद्रा त्याग,उठ-जाग मेरे बंधु,
न सोया रह निश्चिन्त,सुख सेज पर.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||केशकाल की सुरम्य घाटी||

हुआ जब भी,
तुम्हारा दर्शन.
नव ऊर्जा से,
भर गया मेरा मन.
आज भी देखा,
तुम्हारा वही हरित रूप.
कुछ विटप खड़े थे छाँव में,
कुछ ने ओढ़ रखे थे धूप.
तुम्हारे मध्य से नील नभ की ओर,
उठते हुए वो रजताभ वाष्प समूह.
आह!आनन्द मिलता ऐसा,
जैसे ईश्वर से मिल रही कोई रूह.
पथ वृक्ष के सुमन भी,
प्रसन्नता से,थे ऐसे खिले हुए.
जैसे गोरी को साजन आज दिखा,
कई दिन हो गए थे,परस्पर मिले हुए.
साल-मिश्रित वनों का मिलन स्थल,
केशकाल की ये सुरम्य घाटी.
है बहुत-बहुत पावन,
अपने बस्तर की माटी.
हे मेरे मन,जब सब कुछ है,
तेरे अपने ही पास में.
फिर निराश हो किसे ताकता,
ऊपर आकाश में.
समय निकल न जाय,
तू कुछ ऐसा कर ले.
इस अद्भुत सौंदर्य को,
सदा के लिए आँखों में भर ले.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||न जानूँ,निज हित-अहित||

मैं अज्ञानी-अविवेकी,
न जानूँ,किसमें है मेरा हित.
जो मन में आए,माँग लेता हूँ,
हाथ जोड़कर मैं तुमसे नित.
हाँ!मेरे पाषाण हृदय में,
है तुम्हारा ही नाम अंकित.
तुम्हारी छाँव है,सदा मुझ पर,
फिर जाने किस बात से,हूँ मैं आशंकित.
कोई बात नहीं,मिले मुझे विजय श्री,
या हो जाऊँ मैं पराजित.
पर देना मुझे वही,मेरे ईश्वर,
कि जिसमें मेरा हित,हो निहित.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||कामना पूरी करें जगन्नाथ||

सब चलें,
सत्य और धर्म के पाथ.
न रहे जग में,
कोई भी अनाथ.
मिले सबको अपने,
सब बनें सनाथ.
करें पूरी सबकी कामना,
जग के नाथ,जगन्नाथ.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

||मानव न अभिमान कर||

मानव तू अपने आप पर,
न कभी अभिमान कर.

अपने आपको ही,पहले जान ले,
क्या करेगा,इस दुनिया को जान कर.

जीवन तेरा,अनमोल है मेरे भाई,
गुटखा चबा,न शराब पी,न धूम्रपान कर.

खुदा को देखना है तो,अपने भीतर जा,
कुछ न मिलेगा तुझे,यहाँ-वहाँ खाक छान कर.

देखें नहीं मिलती तुझे,तेरी मंजिल भला कैसे,
एक बार आगे तो बढ़,कुछ करने की ठान कर.

नर है तू,कुछ तो ऐसा कर जा प्यारे,
कि तेरे अपने चलें,खुद का सीना तान कर.

सुख के झूले पर झूल पर,औरों को न भूल,
अपनी कुछ कमाई,निर्धनों को दान कर.

मिलेगी प्रभु की असीम भक्ति,
नित प्रात:-संध्या काल उनका ध्यान कर.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

शनिवार, 24 जून 2017

||खो न जाएँ ये तारे जमीं पर||

बाल मन बहुत कोमल होता है.
बाल्यावस्था में बच्चों के मन पर किसी भी घटना का गंभीर और दूरगामी प्रभाव पड़ता है.जहां सकारात्मक वातावरण उसके विचारों,कर्मों को उच्च बनाती है वही आस-पास का नकारात्मक विचार,भाषाऔर कर्म उसे बुरे मार्गों पर ले जा सकती है.
आजकल बच्चों के गिरते नैतिक स्तर की बड़ी चर्चा होती है.इसका कारण कहीं न कहीं हमारे आसपास का परिवेश ही है.इतिहास-पुराण इस बात के साक्षी हैं कि महान विभूतियों को बनाने में उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

बच्चे हर घटना को बड़े कौतूहल से देखते हैं.उनके मन में किसी भी विषय में जानने समझने की बड़ी उत्सुकता होती है.बच्चों को रंगों और चित्रों से बहुत अधिक लगाव होता है. इसीलिए वे  रंग-बिरंगे चित्र और सरल कहानी,कविताएं आदि पढ़कर अथवा सुनकर  खुशी से फूले नहीं समाते.बच्चों को यदि सत्मार्गी और सुसंस्कारी बनाना है तो उन्हें बाल पत्र-पत्रिकाओं सेे जरूर जोड़ें.उन्हें प्रेरक कविताएँ-कहानियां सुनाएं.इनसे उनका बौद्धिक  विकास होगा और वे मानसिक रूप से सशक्त भी बनेंगे.कविताओं-कहानियों से मिली ये नैतिक शिक्षाएँ जीवन पर उनका पथ प्रदर्शन करती रहेंगी.बचपन में बच्चों को माता पिता द्वारा जो भी बताया जाता है वे उसे सच ही मान लेते हैं.इसलिए हम उन्हें सही ज्ञान ही दें.

बेहतर है कि हम भी अपने व्यवहार को परिवर्तित करें.बच्चों को गाली देना -गाली सिखाना है. इसलिए कभी भी बच्चों के सामने अपशब्दों का प्रयोग अथवा क्रोधादि का प्रदर्शन न करें.बच्चे अपने वातावरण से कुछ न कुछ सीख ही लेते हैं,आवश्यकता है तो हमें उनके अनुरूप सकारात्मक वातावरण बनाने की.

दैनिक जीवन में बहुत अधिक व्यस्तता होने पर भी हम अपने बच्चों के साथ कुछ समय जरूर बिताएँ,उनके स्कूली होमवर्क चैक करें,उनका उत्साहवर्धन करें.
उन्हें न केवल पुस्तकीय ज्ञान प्रदान करें बल्कि साथ ही साथ मानवीय मूल्यों और नैतिकता का भी ज्ञान दें.क्योंकि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य केवल नौकरी पाना नहीं है बल्कि मानवता के उच्च आदर्शों को प्राप्त करना है.
आइए बच्चों के लिए एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण करें.उनमें मानवीय गुणों का विकास करें.क्योंकि यही भारत के भावी कर्णधार हैं..

मैं अंत में दुनिया के हर माता-पिता  के प्यारे-प्यारे और नन्हे मुन्ने बच्चों के लिए फिल्म "धूल का फूल" की दो पंक्तियाँ   कहूंगा-

"तू हिंदू बनेगा,न मुसलमान बनेगा.
इंसान की औलाद है,इंसान बनेगा."

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

शुक्रवार, 23 जून 2017

||साथ न छोड़ना कंदील||

आखिर क्या बात है.
कल भी तेरा साथ था,
आज भी तेरा साथ है.
तेरे भीतर है,
जैसे कोई कुदरती नूर.
जिससे अँधेरा हो जाता है,
पल भर में काफूर.
आह! तेरा त्याग,
कि मेरे लिए तू जलती है.
मन के किसी कोने में तेरे शायद,
मेरे लिए भी तनिक प्रीत पलती है.
औरों को रौशनी दे जो,
खुद अँधेरे में जलके.
तो कहो उसके लिए,
दिल में प्यार कैसे न छलके.
तेरा परोपकार देखकर,
आ गया तुझपे मेरा दिल.
अँधेरे में तुम कभी मेरा,
साथ न छोड़ना कंदील.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

गुरुवार, 22 जून 2017

||कंदील की रौशनी||

कभी बुझी-कभी जली.
बड़ी धोखेबाज होती है,
ये गाँवों की बिजली.
शुक्र है कि घर मेरे,
ये कंदील है जली.
मद्धम भले रौशनी इसकी,
पर लगती है मुझे तो बड़ी भली.
क्योंकि अपनी आधी ज़िंदगी,
इसी रौशनी में है पली.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||बहुत सह लिया||

कहीं से उड़ती हुई पहुंची है,
मेरे कानों तक ये खबर.
कि तुमने डाली है,
मेरी बहन-बेटियों पर,अपनी बुरी नजर.

ये खबर ,
यदि बिल्कुल सत्य है.
तो समझ ले तू,
कि तेरा राम नाम सत्य है

अपने माँ-बाप की छाँव-
प्रकृति की गोद में थी पली.
आखिर क्यों मसल दी गई,
एक नन्हीं सी मासूम कली.

तेरी घिनौने हाथों ने उन्हें,
श्वान की भांति नोचा है.
होगा उससे भी भयंकर परिणाम,
कि जितना तुमने सोचा है.

बहुत सह लिया सदियों से,
अब अपमान  हम न सहेंगे.
उतर आएंगे जो हैवानियत पर,
अब उन के रक्त बहेंगे.

छुप जाएँ वो किसी भी कोने में,
अब न हो सकेगा उनका भला.
औरत पर हाथ डालने वालों की,
नहीं कटेंगी अब ऊंगलियाँ,
अब सीधा कटेगा उसका गला.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||कटु सत्य ||

मानवीय गुणों  पर,
आज भी भारी है वर्ण.
उच्च पदों पर आसीन,
हैं अब भी सवर्ण.

योग्य हो शूद्रत्व का,
दंश झेल रहा कर्ण.
और पा जाता है कोई,
बैठे-बिठाए ही स्वर्ण.

धरती माँ का सेवक सोता,
बिछा भूमि पर पर्ण.
करे वह क्रंदन कितना भी,
सुनेगा कौन?सब हैं अकर्ण.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

मंगलवार, 20 जून 2017

|| न बैठ मन को मार के ||

हो गया यदि परास्त तो,
न समझ तू स्वयं को असमर्थ.
तुम्हारी लगन तुम्हारा प्रयत्न ,
कभी भी नहीं जाएगा व्यर्थ.
फिर से हो आरूढ़,
परिश्रम के रथ पर.
बढ़ चल अनवरत,
निज कर्तव्य पथ पर.
उड़ उन्मुक्त गगन में,न बैठ यूँ,
मन को मार के,
हार भी तुझे हार पहनाएगा,
तुझ से हार के.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

रविवार, 18 जून 2017

||अपनों के हित आगे आओ||

यह धन,पद-यश जिसे पाकर,
गर्व से उठ जाता है न तुम्हारा शीश.
यह सब न मिलता तुम्हें,
यदि न मिलता तुम्हें,अपनों का आशीष.

तुमने ये सर्वस्वअपना,
अपनों से ही प्राप्त किया.
पर बदले में तुमने,
उनसे ही मुख मोड़ लिया.

आज जब सुख-सुविधा के,
झूले पर तुम झूल गए हो.
अपनों के प्रति हैं कर्तव्य क्या,
तुम ये ही भूल गए हो.

हठ छोड़ो,न बैठो केवल,
झूठे आडम्बर का पट ओढ़ कर.
अपनों के हित आगे आओ ,
लोभ-मोह और दम्भ छोड़ कर.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||बादर रानी पानी गिराउन देस रे||

बादर रानी-बादर रानी,
तूय जासित कोन देस रे.
पखना होली जीव खिंडिक,
पानी गिराउन देस रे.

दख नी तूय कि कसन,
सुखेसे मचो बेड़ा-खाड़ा,
पसनाफुटा मसागत ने मचो,
दखा दयसे देंह चो हाड़ा.
बेर चो रठया घाम ने,
जरेसे मचो रकत.
सियान होते जाँयसे मैं,
घटते जायसे सकत.

मचो करलानी-मचो दुखा के,
सौसिद मेटुन देस रे.
बादर रानी-बादर रानी,
तूय जासित कोन देस रे.
पखना होली जीव खिंडिक,
पानी गिराउन देस रे.

तूय आव चे सत्तय,नी भटाव.
नाहलेक करेंदे कसन मैं पोरु के,
आपलो बेटी चो बिहाव.
कबले बिचारेंसे कि बनायँदे,
एक ठान अछा चो घर.
कमायँसे मैं रात-दिन,
मान्तर नी हाय काँई चो थर.

मचो दखलो सपना के,
सत्तय करुन देस रे.
बादर रानी-बादर रानी,
तूय जासित कोन देस रे.
पखना होली जीव खिंडिक,
पानी गिराउन देस रे.

हौ बरसा ने,
चुहेसे मचो छानी,
काँई हव मांतर,
गिराव तूय पानी.
दखेंदे मचो दुखा के ,
जाले कसन होयदे.
काय मचो लाडरा बेटा,
भुकय सोयेदे.,

मया बरसाव रे तूय,
नी जा परदेस रे.
बादर रानी-बादर रानी,
तूय जासित कोन देस रे.
पखना होली जीव खिंडिक,
पानी गिराउन देस रे.

गिराव पानी खुबे,
सबाय झन हरिक उदिम हवोत.
चिपा नी हवो काँई चो,
कोनी भुके नी सवोत.
मिलुन-मिसुन फीजते गावाँ,
बेड़ा ने रिलो पाटा.
धान उपजो इतरो कि,
नी हवो काकय घाटा.

मँझपुरिया लोग उपरे,
किरपा करुन देस रे.
बादर रानी-बादर रानी,
तूय जासित कोन देस रे.
पखना होली जीव खिंडिक,
पानी गिराउन देस रे.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||शीश झुकाना लघुता नहीं||

बड़ों के आगे शीश झुकाना स्वयं के मानव होने की निशानी है.इसके द्वारा हम सामने वाले व्यक्ति के आत्मीय बन जाते हैं.
पुरातन काल से ही  हमें माता-पिता और गुरु के सम्मान करने की बात सिखाई जाती है.जो हमसे ज्ञान अनुभव और उम्र में बड़े हैं उनका सम्मान किया जाना ही चाहिए क्योंकि उन्होंने जीवन को हमसे अधिक जिया है तथा विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष कर विजय पाई है.चाहे कोई सफल व्यक्ति हो या असफल दोनों के ही अनुभव हमारे बड़े काम के हैं.जहां सफल व्यक्ति सफल होने के गुर बता सकता है,वहीं ज़िंदगी में नाकाम व्यक्ति हमें यह सिखा सकता है कि असफलताओं  से कैसे बचा जा सकता है.

हमारे इतिहास-पुराण भी साक्षी है कि जिन्होंने अपने माता,पिता और गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा रखी,उनकी सेवा सुश्रुषा की.वे अपने जीवन में औरों से कुछ भिन्न और महान कार्य कर गए.भगवान राम,कृष्ण,गणेश,श्रवण प्रहलाद,पितामह भीष्म आदि की मातृ -पितृ भक्ति और एकलव्य,अर्जुन उपमन्यु,आरुणि की गुरुभक्ति तो जगत प्रसिद्ध है.
बड़ों का सम्मान,उनका आशीष,हमारा पथ प्रदर्शन करता है.

कुरु भूमि में युद्ध से पूर्व धर्मराज युधिष्ठिर का कौरव पक्ष के सम्मानीय जनों के आगे शीश झुकाना अर्जुन के मन में चिंता उत्पन्न कर गया. उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से अपना संदेह व्यक्त किया. श्री कृष्ण बोले-"पार्थ!बड़ों का सम्मान करना,उनके आगे सिर झुकाना,लघुता की नहीं अपितु महानता का परिचायक है. द्रोण-पितामह जैसे वरिष्ठ योद्धाओं का आशीष प्राप्त कर धर्मराज युधिष्ठिर ने आधा युद्ध तो स्वत: ही जीत लिया है,और अब केवल आधा युद्ध लड़ना ही शेष रह गया है."

तात्पर्य यही है कि बड़ों का आदर करके हम अपने मानवीय गुणों का विस्तार करते हैं.और वही मानवीय गुण हमारी भावी सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||सब हँसकर सह लेता हूँ||

तनिक मुझे विश्राम नहीं,
जी तोड़ परिश्रम करता हूँ.
सर्दी-गर्मी-वर्षा से,
मैं भला कहाँ डरता हूँ.
कोई पूछे मुझसे,
उससे पहले ही कह देता हूँ.
बस्तर की मिट्टी से निर्मित मैं,
सब हँसकर सह लेता हूँ.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||किशलय इधर आ||

किशलय इधर आ.
एक किताब ला.
अ-आ,इ-ई  पढ.
भाई से न झगड़.
जीवन है अनमोल.
कहो मीठे बोल.
अच्छे करम कर.
न किसी से डर.
कहा बड़ों का  मान.
सबको अपना जान.
झूठ कभी भी न कहना.
सबसे तुम,मिलके रहना.
प्रेम करे जो,वो है मानव.
नफरत करे,कहलाए दानव.
नित सुबह,उठने के बाद.
करो सदा,ईश्वर को याद.
अवगुणों के कभी,निकट न जाना.
जो भी मिले,सब बाँटके खाना.
कर जाओ कुछ ऐसा काम.
कि हर कोई ले तुम्हारा नाम.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

बुधवार, 14 जून 2017

||दुनिया मरत हे,मरन दे न||

जब ले वाट्सेप अउ फेस बुक आय हे न,तब ले सूचना के छेत्र म जइसे करांति आ गेय हे.का लइका,का सियान. जम्मोझन जइसे पगला गे हवँय.नान्हे से लेके बड़े खबर घलो एक-दूसर तक अत्तिक जलदी फइल जथे जइसे कि जंगल म आगि फइल जथे.
आय दिन खभर मिलत रहिथे कि फलाना के लइका,बेटी नही ते डैकी गँवा गेय,फलाना नम्बर म संपर्क करो.
अभ्भी पाँच मिनट पहिली रइपुर रद्दा म फटफटी अउ टरक के टक्कर होगे-गाड़ी ह चुर्रुस ले होगे अउ अदमी मन घलौ पिचका गें,देखव ओखर लाइव फोटो अउ विडियो.
काखरो आधार कार्ड,ए टी एम,अंकसूची वाला बेग मेरे को मिला है,मेरे नंबर म फोन लगाओ.

गँवालो मनखे मिल जथे,एक्सीडेंट के खबर पुराना हो जथे फेर अइसन खबर ह,सालों साल फेस बुक-वाट्सएप म  चलत रहिथे.

कइ झन विडियो डाले रहिथें "देखो ये रोगहा-कमीना अदमी अपने बाई को किस बेरहमी से लउठी से मार रहा है?क्या इही इनसानियत है?"

नहीं ते"ये देखो ये अदमी एक्सीडेन्ट होके सड़क म कइसे तड़प रहा है.लोग एला देख के घलो अनजान बनके निकल जा रहे हैं."
अरे मोर बाप!जब तें अत्तिक दया-मया वाले अस,त तँय ऊँखर मदत नी कर सकत रेहे का?तें बस मोबइल म फोटो खींचे अउ विडियोच बनाय बर उँहाँ खड़े रहे.अउ अब दुनिया ल तमासा दिखात हस.

एक दिन मे एक ठिन दुकान ले जाके घर वापस आएँव.घर म मोला उल्टी-चक्कर चालू हो गे.मोर बाई परिस्सान.पूछिस का-"खा-पी के आय हस जी?"
में केहेंव-"मोर एक झन संगवारी ह कोकाकोला पियाय रिहिस."
बाई भड़क गेय"आप मन ल अत्तिक घलौ नालेज नइ हे.में अभ्भीच वाट्सएप म पढ़े हँव,कि फन्नस खाय के बाद कोकाकोला पिए म मनखे के मउत तको हो सकथे.में तुरते धरती म गिर गेंव,अउ तुरतेच मोर परान निकल गे.

एक दिन कथँय कि अंडा खाके केरा खाना जानलेवा हे,फेर दूसर दिन कइथें नहीं काली के खभर गलत था.अंडा खाय के बाद केरा खाओ कुछु नहीं होगा.
का ल पतियाबे अउ कते ल झूठ मानबे रे भइ.

वाट्सेप फेसबुक म एक परकार के अउ मेसेज अाथ रइथे आपको आपके दाई-बाप की कसम.इस खभर को अभ्भी 10 लोगों को भेजो अउ 5 मिनट म चमत्कार देखो.किसमत खुल जाएगा,धन के पेटी मिलेगी,परीक्छा में पास हो जाओगे.अइसे कथें जानो मानो उही मन ह भगवान ल बिसा डारे हें.
में अइसन मेसेज ल बड़ सेयर करथँव अउ में तो कइथँव. अइसे मेसेज तो हर मनखे करा भेजे जाना चाही.कम से कम धन के पेटी मिले म देस के गरीबी तो एको कनि कम हो जही.

फेस बुक के बारे म का कहँव.ओ म तो दिन भर
जवान-जवान टुरा-टुरी के फोटोच ह छाय रथय.टिप टाप कपड़ा पहिरे,आपन मुहु ल बेंदरा-बेंदरी खरिख चिक्कन,अउ ओंठ ल सुरा जइसे गोल-गोल बनाके खालहे म लिखे रइथें में ह कइसे दिखत हँव?लाइक,कमेंट अउ सेयर करो प्लीज.अरे नोनी बाबू हो!कभु तुमन अपन थोथना ल दरपन म नी देखव का? तुमन ह कइसे दिखत हव हमन ए बताय के ठेका लेय हन का?
कइ झन चलाक टुरा मन टुरी के नाँव,अउ फोटो ल अपन परोफाइल म डाले रहिथें.ए म बड़ फायदा हे.अइसे करे  में टुरी मनके तीर जाय के सुघ्घर मउका मिलथय,अउ टुरी हरे कहिके दूसर घलौ ओ ल लाइक,कमेंट सेयर करथँय.सही म ए ह बहुत बड़े कला आय भइ,जेला महु ह अभी ले नइ सीख पाय हों.

वाट्स एप फेसबुक सब टेम पास करे के साधन तो आय भई.जिनगी दू दिन के त आय.मनमाने मेसेज भेजो-चेट करो.भेजो कइने घलौ गाना,वीडियो,फोटो कि मोबइले ह हेंग हो जाय.दूसर के परिसानी ल झन बिचारव.अउ दुनिया म उही अदमी ल याद करे जथे जे दूसर के जीना हराम करथे,दूसर ल पीरा देथे.

बस लगे रहव फेसबुक वाट्सएप म.पढ़ई-लिखई,कमई-धमई अउ दाई-ददा के सेवा-जतन फेर कभु कर लुहु.कइ झिन मोबइल के सत उपयोग करथें न,तेमन उपर मोला बड़ हाँसी अथे,अरे भकवा हो अदमी होके जब तुमन अपन मनमरजी नी कर सकव त तुम्हर अदमी होय के का मतलब हे?

में तो इन्टरनेट के दुरुपयोग करहुँच.दूसर ल भरम म डालहूँ,दूसर ल पीरा दूहुँ,दूसर ल परसान करहूँ.मोला तो इही काम म  बड़ मजा अथे.देखथँव कोन मई का लाल का कर लिही.
मोर तो इही कहना हे....

जिनगी मिले हे बड़ा भाग से,
जइसे जीना हे जियव.
दुनिया मरत हे मरन दे न,
बेफिक्कर खावव पियव.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||पावस ऋतु का अद्भुत सौंदर्य||

आह!मेरी लेखनी इस बार देखेगी,
पावस ऋतु का अद्भुत सौंदर्य.
यह देखेगी इस बार,
नीले आकाश पर एकत्र होते,
घने काले बादलों को.
और आसमान से गिरते,
वर्षा जल की बूंदों को धरा के संग मिलते हुए.
साथ ही करेगी ये अनुभव,
धरातल से उठते ऊष्ण वाष्प की गर्माहट.
साथ ही महसूस करेगी ये,
धरती मां की गोद का स्पर्श कर,
हवा के संग बहती आती,
मिट्टी की सौंधी मनभावन महक.
पावस के अभिनंदन में झूम उठेंगे वृक्ष.
छलक उठेंगे नदी  ताल और निर्झर.
किसान करेंगे अपने,हल-बैलों की आराधना.
जीवन यापन हेतु करेंगे वे,जैसे कठिन साधना.
दिखेंगे खेत की गीली मिट्टी से सने,
क्रीड़ा में निमग्न निर्भय-निश्छल बच्चे.
छतरी ओढ़े माताएं-बहनें जाते हुए खेत या बाजार.
या फिर वन को जाते हुए.
बीनने बस्तर का प्रसिद्ध बोड़ा-मशरुम.
या तोड़ने पान-दातौन.
दिखेंगे आशान्वित छात्र-छात्राएँ,
मन में भविष्य के सुंदर स्वप्न सजाए,
शालेय परिधान में सज्ज शाला जाते हुए.
भीगकर वर्षा जल की बूंदों से,
यह भूल जाएगी स्वयं को,
कुछ क्षणों के लिए और
उठाएगी यह आनंद,
वर्षा ऋतु के अप्रतिम संवेदन का.
फिर होगा  पर्व-त्यौहारों के क्रम का आरंभ .
रथयात्रा-हरियाली से लेकर दशहरा-दीवाली तक.
मेरी लेखनी इस बार देखेगी.
खेतों में बोए गए बीजों के,
अंकुरित होने से लेकर,
फसलों  के पकने तक की,
नवीन और सुखद यात्रा.
आह!होंगे कितने सुंदर-मनोरम दृश्य,
जिसे देखेगी मेरी लेखनी प्रथम बार.
क्योंकि वर्ष भर पहले तक,ये समझती थी,
स्वयं को एकाकी,दुर्बल और लाचार.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

रविवार, 11 जून 2017

||ये सच है||

हां ये सच है कि मेरे पास है,
एक घातक हथियार.
जिससे है मुझे,
बहुत अधिक प्यार.
न छोड़ता कभी संग मेरा,
जैसे हो कोई सच्चा यार.
है जिसमें जैसे,
कोई अलग ही धार.
जो निकल जाती है सीधे,
हृदय के पार.
जिसके आगे,
हर शैतान बेबस-लाचार.
ये न तो तीर है,
और न ही है तलवार.
पर खाली नहीं जाता,
कभी इसका वार.
किया जा सकता इससे,
कईयों का सिर भी कलम.
हां वास्तव में है,
शक्तिशाली इतना कलम.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

||आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम||

मेरे कई साथियों ने इस बात पर घोर आश्चर्य जताया था कि,मैं कोंडागांव के निकट रहने और साहित्यिक रुचि रखने के बावजूद वरिष्ठ साहित्यकार हरिहर वैष्णव जी से कभी मिला नहीं.पर हां,उनके अनुज और ख्यातिलब्ध लोक चित्रकार श्री खेम वैष्णव जी से मैं तीन-चार बार नगर पालिका-कोंडागांव में मिल चुका था.

काम चाहे कोई भी हो-कैसा भी हो,उसका पूरा होना मनुष्य की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है.कल ही मैंने निश्चय किया कि क्यों न आज वैष्णव जी से  मिलकर उनका आशीर्वाद लिया जाए.और संभवत: हरि-हर की कृपा से कल ही मेरी यह मनोरथ पूरी हुई.

उनके मोबाइल नंबर पर संपर्क करने पर उनसे शाम 7:00 बजे मिलने का समय निश्चित हुआ.
किसी भी साहित्यकार से व्यक्तिगत रुप से मिलने का यह मेरा पहला और एकदम सुखद अनुभव रहा.

वैष्णव जी के घर की दीवारों पर टँगे हुए कई प्रशस्ति और सम्मान पत्र उनकी गौरवशाली साहित्यिक यात्रा के साक्षी हैं.साल 2014 में उन्हें छत्तीसगढ़ शासन द्वारा आँचलिक साहित्य के लिए पं.सुन्दर लाल शर्मा सम्मान भी प्राप्त हुआ है.बड़ा ही सीधा व सरल व्यक्तित्व है उनका.
वे कूलर-पंखे आदि से परहेज करते हैं.इसलिए वे अधिकतर कहीं आते -जाते नहीं.उन्होंने कहा कि-"किसी के यहाँ जाकर मैं किसी को कूलर-फैन बंद करवाने का कष्ट कैसे करवा सकता हूँ?
मुझे तो उनकी यह बात बहुत ही आत्मीय और मर्मस्पर्शी लगी.

आपके सामने यदि आपके ही समान विचारधारा के शख़्सियत बैठे हों तो फिर समय के बहाव को आप भूल ही जाइए.लगभग घंटे भर तक साहित्यिक व अन्य सार्थक चर्चाएँ होती रही.कोंडागाँव के ही जयमती कश्यप जी से भी वैष्णव जी ने परिचय कराया जो महिला एवं बाल विकास विभाग में सुपरवाइजर हैं साथ वे  की बस्तर के परगनाओं पर गहन शोध कर रहीं हैं.

वरिष्ठजनों का  सानिध्य बहुत ही सुखकर और प्रेरणादायी होता है. क्योंकि उन्होंने जीवन को हमसे बेहतर देखा-जाना और समझा है.इसलिए उनका क्षण भर का  संग भी हमें बहुत कुछ दे जाता है.
वैष्णव जी से मिलना भी मेरे लिए बहुत ही अविस्मरणीय और प्रेरणादायी रहा.उनसे पहली मुलाकात में किए गए उनके विचार-उनकी बातें,मन-मस्तिष्क में चिरस्थायी बनी रहेंगी और मेरा पथ प्रदर्शन करती रहेंगी.

ईश्वर करे कि उनका स्वास्थ्य हमेशा अच्छा बना रहे. उनका सान्निध्य,उनके उत्साहवर्धक और प्रेरक विचार सदैव हमारा पथ प्रदर्शन करते रहें.

फिलहाल तो  हरिहर वैष्णव जी से मिलने के बाद मैं अपने भीतर एक नई ऊर्जा का अनुभव कर रहा हूं और आज तो मुझे एक ही गीत गुनगुनाने का मन कर रहा है....

"मिल गए मिल गए आज मेरे सनम.
आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम."

(संलग्न सभी तस्वीरें इंटरनेट से डाउनलोड किए गए हैं.)

✍ अशोक नेताम "बस्तरिया"
📞9407914158.

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...