बुधवार, 12 जुलाई 2017

||सपनों की दुनिया||

दिखते नभ में उड़ते पक्षी,
दिखती कभी जल में तैरती मीन.
ये स्वप्नों की दुनिया भी,
होती है बड़ी ही रंगीन.

कभी झरते झरनों की झर-झर,
कभी वाटिका में खिले सुमनों की छवि.
चलती कभी नौका सरिता में,
कभी अस्ताचल में,अस्त होता रवि.

दिखती कभी पर्वतमालाएँ,
करती हुई नभ का स्पर्श.
देख वन-उपवन की शोभा ,
होता अपार हृदय में हर्ष.

मन की नदी में जैसे,
विचारों का जल बहता है.
कभी ध्यान से सुनना,
हर सपना भी कुछ कहता है.

सुख-दुख,लाभ-हानि,
दिखते जन्म-मरण,शत्रु-मित्र.
वर्तमान कभी,कभी भविष्य दिखता,
कभी दिखता अतीत का चित्र.

जीवन की रात्रि में,
हम भी हैं जैसे सोए हुए.
वास्तविकता से परे,
निजता में ही खोए हुए.

इससे पहले कि मृत्यु आकर,
हमारा द्वार खटखटाए.
है उचित यही कि हम,
उससे पहले ही जाग जाएँ.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
     कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...