गुरुवार, 31 अगस्त 2017

||अस्पताल जीवन का रूप||

कभी सुख कभी दुख.
कभी छाँव कभी धूप.
ये अस्पताल भी,
है जीवन का एक रूप.

इधर कमजोर मरीज,दो कंधों के सहारे,
रोगीवाहन से नीचे उतर रहा है.
उधर कोई दूसरा भीतर से स्वस्थ हो,
अपने घर को प्रस्थान कर रहा है.

एक ओर अपने विधवा होने पर,
मंगली का रो-रोकर बुरा हाल है.
दूसरी ओर बुधनी के चेहरे पर है खुशी,
कि उसके घर हुआ प्यारा सा लाल है.

कई खिले तो हैं कई,
उदास-मायूस चेहरे.
कइयों के माथे पर,
चिंता की लकीर हैं गहरे.

यहाँ आकर भला कौन न हँसा,
और,है कौन?जो कभी नहीं रोया.
जो मिला उसे जी भर जी लूँ मैं,
क्यूँ सोंचूँ,कि मैंने क्या खोया?

अशोक नेताम "बस्तरिया"

बुधवार, 30 अगस्त 2017

||मैं तेरा लाल||

हर दिन हर क्षण.
किया बस तेरा स्मरण.
सिर पर रहा तुम्हारा हस्त.
कि हुई मेरी हर चुनौती पस्त.
डूबा था आकंठ मैं,अज्ञानता के पंक में.
पर बिठाया तुमने मुझे अपने अंक में.
माँ तुमने मुझे क्या-क्या न दिया.
पर मैंने सदा अपने कर्तव्यों को विस्मृत किया.

लेकिन अब मैं भी....
.....किसी रोते हुए व्यक्ति के आँसू पोंछ सकूँगा.
.....किसी भूखे की भूख मिटा सकूँगा.
.....किसी रोगी का उपचार करा सकूँगा.
.....किसी बच्चे की मुस्कुराने की वजह बन सकूँगा.
.....किसी असहाय-निर्धन की सेवा कर सकूँगा.

मेरी करनी से यदि,
किसी एक के चेहरे पर भी,
मुस्कान खिल गई
मैं समझूँगा कि मुझे,
दुनिया की सबसे बड़ी,
खुशी मिल गई.

तेरा लाल होके यदि मैं,
अपनों के काम न आऊँ.
तेरी सौगंध माँ कि मैं,
तेरा लाल न कहाऊँ.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||सुन्दर सरोवर||

ताल तट खड़े खजूर के पेड़,
कुछ सीधे,कुछ झुके हुए.
देखने को निज मुख जल में,
मेघ भी नील नभ में रुके हुए.

दिखता चहुँ ओर केवल,
विस्तृत हरितिमा का वैभव.
कलरव करते नभचर मानो,
गा रहे प्रकृति का गौरव.

लहराता पवन संग,
धीरे-धीरे ताल जल.
संग हिलते जल में,
खिले हुए रक्त कमल.

जल तरंग करते छप-छप,
कूल से बार-बार टकराते हैं.
स्वर्णाभ रवि रश्मियां जल में,
झिलमिल झिलमिलाते हैं.

है गंगा सी पावन-स्वच्छ,
पारदर्शी सरोवर का जल.
करे जो नित्य स्नान इसमें,
तन-मन हो जाए निर्मल.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||नुवाखाई तिहार||

देव धामी तुमके आमि,
चेगाउन्से नवा चाउर.
सबाय घर ने सांति रहो,
नी माँगु काँई आउर.

काकय काँई चिपा नी हवो,
करेन्से तुमके गुहार.
मिलुन-मिसुन मनाऊँ सबाय,
नुवाखाई चो तिहार.

अशोक नेताम "बस्तरिया"

||नयाखाई पर्व||

अग्नि,पृथ्वी,जल,वायु-नभ,
हम हैं इनके अंश.
प्रकृतिशक्ति से चल रहा,
अब तक अपना वंश.

जो हमें जिन से मिला,
उन्हें भी करें,हम कुछ अर्पण.
नए चावल का भोग देकर,
अपने पुरखों का करें तर्पण.

अपनी परंपराओं-संस्कृतियों पर,
हमें है बहुत ही गर्व.
आओ मिलकर मनाएं,
नयाखाई का पुनीत पर्व.

अशोक नेताम "बस्तरिया"

मंगलवार, 29 अगस्त 2017

||एक बाबा था||

बढा़ई दाढ़ी और,
बन गया साधु.
भक्तों पर चलाया,
अपना जादू.

बोला हिंदू न जाए काशी,
मुस्लिम न जाए काबा.
सबके उद्धार को आया है,
ईश्वर का मैसेंजर बाबा.

पर नारी सौंदर्य देखके,
वह फिसल गया.
काम की अग्नि में,
वो दुष्ट जल गया.

मुख से लिया सदा उसने,
राम-रहीम का नाम.
और किया उसने नारी अस्मिता से,
खेलने का काम.

कइयों को लूटा उसने,
कई लोगों को छला.
पर उस का जादू,
अधिक दिनों तक नहीं चला.

जो लुटेरा चलता था,
सबके बीच अकड़कर-तनकर.
पेश हुआ वो कोर्ट में,
इक दिन अपराधी बनकर.

सही सिद्ध हुए बाबा पर,
लगाए गए सारे अक्षेप.
बीस सालों की सजा हुई,
हुआ उसकी कथा का पटाक्षेप.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

सोमवार, 28 अगस्त 2017

||अपना भारत अखंड||

धर्म की आड़ लेकर,
करते जो पाखंड.
मार भगाओ देश से उसे,
लेकर हाथों में दंड.

लटका दो सूली पे या,
कर दो खंड-खंड.
ऐसी करनी कर न सके कोई,
दो ऐसा कठोरतम दंड.

अग्नि जलाओ सबके भीतर,
विरोध की ऐसी प्रचंड.
कि तुरंत स्वाहा हो जाए,
इनकी हेकड़ी,इनका घमंड

जनता जनार्दन को समझे हैं क्या,
ये नीच,पापी,उद्दंड.
था कल,है आज भी,और रहेगा सदा,
अपना भारत अखंड.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

रविवार, 27 अगस्त 2017

||हरित वन मनभावन||

मनभावन हरित वन बीच,
बह रहा एक निर्झर.
कठोर पाषाणों से टकराता,
शब्द करता झर-झर.

तट पर खिले हैं,
विविधरंगी-सुगंधित सुमन.
सुन मधुर मधुकर की गुंजार,
प्रफुल्लित होता तन-मन.

प्रतिध्वनि झरने की,
सघन वन में गूँज रही.
सुन्दरता से आल्हादित कोयल,
मीठे स्वर में कूज रही.

सतत् सेवा में रत,
साल वृक्ष खड़े हैं तनकर.
रवि रश्मियाँ आ रहीं धरा तक,
उनके मध्य से छनकर.

सूरज की किरणें जगमग,
स्वच्छ जल में झिलमाती हैं.
ऊँचे पेड़ों से लिपटी लताएँ,
सुन्दर शोभा पाती हैं.

कहते वृक्ष-"ओ पथिक!
हर दिन तो तुम,करते हो काम.
आओ मेरी छाँव में आज,
थोड़ी देर कर लो विश्राम.

तुम आओ निकट मेरे,
अपने सब अवगुण भूलकर.
मायावी झूले में,झूल चुके तुम,
देखो प्राकृतिक झूले में झूलकर."

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

शनिवार, 26 अगस्त 2017

|| फिल्मी हीरो करैक्टर जीरो||

भक्तों ने किया अर्पित
तुम्हें श्रद्धा के फूल
पर तुमने सदा झोंका,
उनकी आंखों में धूल.

भाईचारे के समर्थक,
एम एस जी के हीरो.
मुख में राम बगल में छुरी,
कैरेक्टर तुम्हारा जीरो.

ऊच्चासन पर बैठ दिये प्रवचन,
खाई दूध-मलाई,हलवा.
साधू बने रहे,थे मन के शैतान तुम,
था झूठा तेरा जलवा.

आखिर चलता कब
पट के पीछे का खेल.
सच्चाई आगे सबके है,
अब तुम जाओ जेल.

राम या रहीम चाहे,
कुछ भी रख ले कोई नाम.
दुनिया से छुप न सकेंगे,
किसी के भी बुरे काम.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||बच के रहना रे ''बाबा''||

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को हरियाणा के स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने दुष्कर्म का दोषी माना है.अगली सुनवाई तक के लिए उसे पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है.कोर्ट की अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी.कोर्ट के फैसले से उसके समर्थक बौखलाए हुए हैं.हरियाणा और पंजाब में उनके समर्थकों द्वारा फैलाए गए हिंसा की आग में कम से कम 29 लोगों के मारे जाने की खबर है.आखिर धारा 144 लागू होने के बावजूद लोगों की इतनी भीड़ कैसे इकट्ठी हो गई.हिंसा की घटनाओं के चलते 26 अगस्त को पंजाब के कई ज़िलों में स्कूल और कॉलेजों को बंद रखने के लिए कहा गया है. राजस्थान के गंगानगर ज़िले में इंटरनेट सेवाएं बंद की गई हैं.
दिल्ली मेट्रो को भी अलर्ट पर रखा गया है.
लोगों का अंध भक्त होना देश के लिए बहुत ही दुखद और चिन्तनीय  है.

वैसे गुरमीत राम रहीम पर समय-समय पर विवादों का साया मँडराता ही रहा है.उस पर दर्जनों केस दर्ज हैं.
कुछ साल पहले किकू शर्मा को उनकी नकल उतारने के कारण उनके समर्थकों ने उन्हें धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाकर जेल की हवा खिलाई थी.
अपनी एक फिल्म MSG-2 के एक सँवाद पर जिसमें कहा गया था कि "आदिवासी इन्सान नहीं शैतान होते हैं, शैतान."पर छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों के आदिवासियों ने विरोध प्रदर्शित करते हुए उसके फिल्म का बहिष्कार किया था.

हम किसी का वेश भूषा मात्र देखकर एकदम उसका विश्वास न कर लें.हाल ही में मैंने फेसबुक पर एक वीडियो देखा था.जिसमें एक मुस्लिम महिला रात को एक व्यक्ति से लिफ्ट मांगती है.लड़की के गंतव्य तक पहुंच जाने के बाद मोटरसाइकिल चालक पूछता है-"बहन आपने मुझसे ही लिफ्ट क्यों मांगा? जबकि रास्ते पर तो और कई गुजर रहे थे?"
लड़की कहती है-"भैया आपकी गाड़ी में लिखा हुआ है-जय श्री राम,और राम के भक्त कभी किसी को धोखा नहीं देते."

संदेश बुरा नहीं था,लेकिन कोई अच्छा है या बुरा,ये उसके माथे पर नहीं लिखा होता.हमें अपने विवेक का उपयोग करके ही अपने पथ पर आगे बढ़ना होता है.इसलिए हमें चाहिए कि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग अवश्य करें.

जो ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं,वही आज पाप के कीचड़ में आकंठ डूबे हुए हैं.आज के समय में व्यक्ति भरोसा करे तो आखिर  किस पर.ऐसे पाखंडी बाबाओं से लोगों का विश्वास ही उठ गया है.आइए हम सब धार्मिकता का चोला पहने अस्मत के इन लुटेरों,इन्सानी शरीर में छिपे शैतानों और तथाकथित संतों से बचकर रहें.

राम नाम की आड़ में धन और इज्जत के लुटेरों में फिलहाल तो आशाराम,रामपाल और अब राम रहीम का नाम इस फेहरिस्त में जुड़ गया है.अगर और कोई बाबा ऐसे बुरे कार्यों में लिप्त हैं तो उनके लिए हम यही गा सकते हैं-''बचके रहना रे बाबा,बचके रहना रे.बचके रहना रे बाबा,तुझ पे नजर है."

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

गुरुवार, 24 अगस्त 2017

||बस कर्म करें हम||

फसलों में,
बढ़ रहा पीलापन.
देख है व्यथित,
कृषक का मन.

रवि बरसा रहा,
जैसे तीव्र अनल.
तिजाहारिन के भी,
माथे पर पड़े बल.

धरा को झुलसाती,
ये प्रचंड धूप.
सूखी नदियाँ,
प्यासे कूप.

सूरज के भीषण ताप से,
भले धरती है जल रही.
पर नाउम्मीद नहीं कोई,
अब भी आशाएँ हैं पल रही.

प्रकृति ले रही अपनी,
कैसी कठिन परीक्षा.
बस कर्म करें हम,
फल दे,न दे,ये ईश्वर की इच्छा.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

बुधवार, 23 अगस्त 2017

||हम लकीर के फकीर||

मेरा वो स्वीडिश फ्रेंड जॉन,
कई दिनों बाद मिला.
उसे देखते ही,
मेरा मन खुशी से खिला.

मिलते ही बोला-
"अरे अशोक पगले.
आज भी वैसे ही हो,
तुम बिल्कुल नहीं बदले."

मैंने कहा-"भारतीय हमेशा,
पुराने ढर्रे पर ही चलते हैं.
हमारी अकड़ कहो,या आदत,
कि हम कभी नहीं बदलते हैं."

उसने कहा-कैसे?
मैंने जवाब दिया-ऐसे.

"तुमने देखा था न कि 2010 में कैसे,
कई लोगों के शव पटरियों पर बिखरे थे.
उस साल बड़ी रेल दुर्घटनाओं में,
कम से कम 265 लोग मरे थे.

अभी कुछ दिनों पहले भी,
बिलकुल ऐसा ही हुआ था.
जब एक रेल दुर्घटना में,मौत का आंकड़ा,
23 को  छुआ था.

यूपी में 60से अधिक बच्चों की हुई मौत,
पर भारतीय बेचारे हैं बड़े अभागे.
क्योंकि ये सब होने के बाद भी,
वो सोए रहे,कहां जागे.

उसके बाद अब रायपुर में तीन बच्चे,
आक्सीजन की कमी से चल बसे.
ऐसा कोई है नहीं यहाँ जो,
इन अव्यवस्थाओं पर लगाम कसे.

वो बोला-"सही कहा पर मैंने देखा,
यहां के लोग हो गए हैं पहले से ज्यादा मोटे."
"हाँ तन फूला,पर सिकुड़ गईउनकी सोच,
ये हैं जैसे चमकते हुए सिक्के खोटे."

बोला वह-"21सदी में भी भारतीयों के,
कितने संकीर्ण विचार है.
पर सत्ता तो बदल गई,कल यूपीए थी,
आज एनडीए की  सरकार है."

मैंने कहा-"यूपीए हो या एनडीए हो,
ये कोई नई बात नहीं है.
क्योंकि सब नेताओं के खून में,
डीएनए बिल्कुल वही है."

"है अजगरी प्रवृत्ति अपनी,
हम इसे न बदलेंगे.
लकीर के फकीर,
हम उसी रास्ते पर चलेंगे."

जॉन की तो जान निकल ही गई,
मानो कोई गहरी नींद से जाग गया.
कल शाम की ही फ्लाइट पकड़ कर,
वो सीधे अपने देश स्वीडन भाग गया.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

सोमवार, 21 अगस्त 2017

||काश मैं औरों के लिए भी जिया होता||

रहा सदा लापरवाह,
जान कर भी रहा अन्जाना.
जीवन के महत्व को,
मैंने कभी नहीं जाना.

जब तक मैं,
रहा जिंदा.
करता रहा,
बस परनिंदा.

बेवजह दी,
दूसरों को गाली.
किसी के दुख पर,
मैंने बजाई ताली.

औरों के आगे सदा,
गर्वभरा शीश उठाके चला.
धन खरचा व्यर्थ पर,
न किया किसी का भला.

औरों की राहों में,
कांटे ही बोता रहा.
सदा सुख की सेज पर,
मैं सोता रहा.

बस अपने लिए ही
मैं जिया.
ऐश किया मैंने,
मस्त खाया-पिया.

अपने भुजबल का,
सतत् मैं दम्भ भरता रहा.
कर्ता था कोई और,
मैं समझता,मैं ही करता रहा.

लगता रहा मुझे कि हर जगह,
बस मेरी ही तूती चलती है.
मरने के बाद मैंने जाना कि,
ये दुनिया मेरे बगैर भी चलती है.

यहां पिता ने मेरे,
मुझे धिक्कारा.
"आखिर मेरा बेटा कैसे,
निकल गया नाकारा.

तुझे करने को सत्कर्म,
मैंने संसार में भेजा.
पर तूने बेकार के कामों में,
खपाया अपना भेजा."

बुरे कर्मों का कर त्याग,
कुछ अच्छे कर्म किया होता.
जीवन होता सार्थक यदि,
काश मैं औरों के लिए भी जिया होता.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||छत्तीसगढ़ का पारम्परिक पर्व:पोला||

बस्तर संभाग में जो महत्व नया खाई पर्व का है,वही महत्व छत्तीसगढ़ में पोला त्यौहार का है.(बस्तर संभाग की संस्कृति व,भाषा बोली,रहन-सहन,पहनावा आदि अन्य क्षेत्रों से भिन्न होने के कारण इसे प्राय: छत्तीसगढ़ से अलग माना जाता है.)

पोला मूलतः महाराष्ट्र का पर्व है। महाराष्ट्र के समीपवर्ती स्थानों से होता हुआ छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भी प्रसिद्ध हुआ। छत्तीसगढ़ में यह राजनांदगांव और भोपालपटनम , पखांजूर के तटीय इलाकों में विशेष रूप से मनाया जाता है।
छत्तीसगढ़ का यह पर्व भादो मास की अमावस्या को मनाया जाता है.अपने राज्य में इस पर्व की सुन्दरता देखते ही बनती है.

निस्सन्देह कृषक इस धरती के देवता हैं,जिनके कंधे पर राष्ट्र की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है.जिनके अथक परिश्रम से दुनिया का भरण-पोषण हो पाता है. और किसान की मेहनत में सहभागी होते हैं उनके गाय-बैल.किसान कृषि से संबंधित सारे काम अपने उन्हीं साथियों की बदौलत करता है.प्राचीन समय से ही भारत में गाय-बैलों को पूजे जाने की परंपरा रही है.छत्तीसगढ़ का किसान भी पोला पर्व पर गाय-बैलों की पूजन कर उनके प्रति सच्ची श्रद्धा और आभार प्रकट करता है.

छत्तीसगढ़ में पोला पर्व के पहले से ही गांवों में लगने वाले हाट-बाजारों की रौनक और चहल-पहल देखते ही बनती है.कुम्हारों द्वारा मिट्टी से बने रंग बिरंगे नंदी बैल,पहिए,चूल्हे-चक्की,बर्तन,सूप आदि वस्तुओं
की खूब बिक्री होती है.लकड़ियों के बने बैल भी बहुत बिकते हैं.लोग पर्व के लिए अन्य सभी आवश्यक वस्तुएं इन्हीं साप्ताहिक बाजारों से क्रय करते हैं.

पोला त्यौहार के दिन चारों ओर उल्लास का वातावरण होता है.इस दिन लोग घरों में सपरिवार बैलों व चक्की की पूजा करते हैं और पारंपरिक पकवानों गुझिया,खुरमी,ठेठरी,बरा-सोंहारी आदि का आनंद लेते हैं.जब नये और रंग-बिरंगी कपड़े पहने,छोटे-छोटे बाल-गोपाल अपने नंदी बैलों को रस्सी के सहारे खींचते हुए गाँवों की गलियों में निकल पड़ते हैं तो सारा दृश्य मनमोहक हो जाता है.नन्हीं बालिकाएँ भी परस्पर मिलजुलकर अपने खिलौनों चूल्हा-चाकी,बर्तन,सूप आदि से खेलती हैं.
कई बच्चे इस दिन गेंड़ी खेल का भी आनंद लेते हैं.दो लंबे बांस में लगभग 2-2 फीट ऊपर आड़ा बाँस बाँधकर गेंड़ी बनाई जाती है,जिसमें दोनों पैर रखकर और संतुलन बनाकर चला जाता है.पोला पर्व के दूसरे दिन सभी बच्चे मिलकर-उत्सव मनाकर खुशी-खुशी इन गेड़ियों का विसर्जन(त्याग)करते है.
पोला के दिन कई जगहों पर बैलदौड़ प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती हैं.जिसमें लोगों का उत्साह देखते ही बनता है.

त्यौहार चाहे कोई भी हो,वह लोगों की खुशियों को प्रकट करने का अवसर है साथ ही पर्व हमारी एकता व बंधुत्व को मजबूती प्रदान करता है.
पोला छत्तीसगढ़ का एक ऐसा पारंपरिक पर्व है,जिसमें छत्तीसगढ़िया अपने गाय-बैलों के प्रति सम्मान व कृतज्ञता ज्ञापित कर अपनी प्रसन्नता अभिव्यक्त करते हैं.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

रविवार, 20 अगस्त 2017

||सिस्टम है फेल||


नियम-कायदे यहाँ,
जाते रोज लेने तेल.
यहाँ का तो,
सिस्टम ही है फेल.
बेकसूर यहाँ,
जाते हैं जेल.
गुनहगारों को,
मिल जाती बेल.
आखिर कौन कसे,
अपराधियों पे नकेल?
तू है आम आदमी,
तो मुसीबत झेल.
न बा ना,भारतीय रेल?
यानी कि मौत का खेल.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

||औरों के लिए भी मुस्कुराया कर||

है कीमती हर पल ज़िंदगी का,
इसे बेकार न ज़ाया कर.

दिल में दर्द भले छुपे हों कई गहरे लेकिन,
औरों के लिए भी कभी मुस्कराया कर.

भले जागे,न जागे कोई,यहाँ तो है आदत सबको सोने की,
पर फर्ज है तेरा,कि तू मुर्दों को जगाया कर.

रोजा रख-सजदा कर,अदा कर पाँच वक्त का नमाज़ भी,
लेकिन तू कभी मेरे मंदिर भी आया कर.

हुआ तेरा भला,आखिर किस राह पे तू चला?
खुशियों का वो रास्ता सबको बताया कर.

ये ऊँच-नीच,ये जात-धर्म,हैं सब फिजूल की बातें .
समझके अपना सबको,अपने गले लगाया कर.

अशोक नेताम "बस्तरिया"

गुरुवार, 17 अगस्त 2017

||वो गलियों में खो गई||

खड़ी थी वह,
विशाल वट वृक्ष के नीचे.
बारिश में मैं भी खड़ा था,
कुछ दूर,उसके पीछे.
खुला बदन था उसका,
न छाता न  रेनकोट.
था एक मात्र सहारा,
वही,पेड़ की ओट.
देखती थी मुझे ऐसे,
जैसे कुछ भाँप रही थी.
शायद भय-ठंड के मारे,
वो कांप रही थी.
मैंने बड़े ही प्यार से,
उस हूर को देखा.
न थी वो जया,हेमा,
न थी वो रेखा.
कुछ ही देर के बाद,
बारिश बंद हो गई.
वो दुम हिलाते-भौ-भौं करते,
गलियों में खो गई.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||जीवन दो दिन का खेल है||

जलेगा तब तक दीपक,
जब तक कि इसमें तेल है.
कभी धूप,कभी है छाँव,
सुख-दुख का सुन्दर मेल है.
ग़म को छाँटे-खुशियाँ बाँटे,
जाने कब खत्म हो जाए,
जीवन दो दिन का खेल है.

:अशोक नेताम "बस्तरिया"

बुधवार, 16 अगस्त 2017

||मन चो दुआरे दिया धरावाँ||

बाहरे नइ भीतरे,
आमी उजुर बनावाँ.
मचो दादा-दीदी मन,
मन चो दुआरे दिया धरावाँ.

कमइ चे ने नइ,पड़हइ-लखइ ने बले देउँ धियान.
छाँडू जुना उबाट के,करुँ सुतुर नुआ गियान.
पड़ुन लिखुन काय सुँदर नाम कमावाँ.
मचो दादा-दीदी मन,
मन चो दुआरे,दिया धरावाँ.

सरते जायसे रूक राई,नी गिरे पानी.
परयावरण चो राखा करवाँ,सबाय बड़े-नानी.
धरती माय चो कोरा ने सुँदर बुटा लगावाँ.
मचो दादा दीदी मन,
मन चो दुआरे,दिया धरावाँ.

मंद-सलफी खाउन नसला,कोन जाने कितरोय लोग.
सबले मुर फाँदा आमचो,आय एइ सबले बड़े रोग.
जीव धरा नसा पानी के,लाफी गुचावाँ.
मचो दादा दीदी मन,
मन चो दुआरे,दिया धरावाँ.

एकला गोड़ोंदी रेंगे नइ,रहो बे कितरोय बडे़.
मिलुन-मिसुन रलो बिगर,पताय थर नी पड़े.
हासुन-गाउन,होउन हरिक,मंदर बजावाँ.
मचो दादा दीदी मन,
मन चो दुआरे,दिया धरावाँ.

बाहरे नइ भीतरे,
आमी उजुर बनावाँ.
मचो दादा दीदी मन,
मन चो दुआरे,दिया धरावाँ.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||मैं मूरख||

मैं पहुंचा सीधा मंदिर
राह में पड़े-कराहते हुए,
उस राही से मुँह मोड़ कर.
बोले भगवान-"अरे मूरख,
तू कैसे चला आया,
मुझे रास्ते पे ही तड़पता छोड़ कर."

अशोक नेताम "बस्तरिया"

||मेरा पिया वही मुरली वाला है||

पीत वसन-सुन्दर तन,
और रंग जिसका काला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.

घुँघराले केश,
हैं जिनके नील नयन.
है बातों में जिसके,
जैसे कोई सम्मोहन.
सिर पर मोरपंख
अधरों पर मुस्कान है.
है वो पापमोचक,
वो सद्गुणों की खान है.
मात यशोदा का सुत जो,
कहलाता नन्दलाला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.

चर्चा है,
उनका ही चहुँ ओर,
है नटखट,
है वो माखनचोर.
लिए लकुटी,
वो वन-वन जाता.
बंसी बजा,
अपनी धेनु चराता.
जिसपे सारा है जग मोहित,
वो साधारण ग्वाला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.

न टिका कोई जिसके आगे,
न पूतना न बकासुर-धेनुकासुर.
वंदना करते सदा जिसकी,
द्विज,गन्धर्व,नाग और सुर.
सदा जिनके वश में,
रहते हैं तीनों काल.
नटवर-नागर ऐसा,जिससे,
होता भयभीत स्वयं काल.
जिस माधव की मोहनी मूरत ने,
सबपे जादू डाला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.

बसे हैं जब से वो,
मेरे मन आँगन में.
मिलें वही,न आस दूजा,
कोई और जीवन में.
दिन रात करूँ,
मैं उनका ही स्मरण.
उनके बिन बीते युग सा,
जैसे मेरा एक-एक क्षण.
मैं ही जानूँ कि अब तक मैंने,
कैसे हृदय को संभाला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.

पीत वसन-सुन्दर तन,
और रंग जिसका काला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||हम सब स्वतंत्रत हैं||(व्यंग)

आज हम स्वतंत्र हैं.हमारे पूर्वजों ने  कोल्हू के बैल की तरह अंग्रेजों का बोझा ढोया,कई तरह के कष्ट झेले.उन्होंने हमारे लिए अपने तन के लहू का एक-एक कतरा तक बहा दिया जिसकी बदौलत आज हम स्वच्छंंद साँड की भाँति गलियों में घूम रहे हैं.

जिस तरह समय बीतते-बीतते गधे को भी अकल आ जाती है न(वह सरकसों में कई तरह के करतब दिखा कर दर्शकों को खुश कर देता है)ठीक उसी तरह ये बड़े खुशी की बात है कि आज हमने भी स्वतंत्रता का असली मतलब निकाल लिया है.

सबको अपनी स्वतंतत्रता का बोध है.नेता स्वतंत्र है जनता को उल्लू बनाने के लिए(5 साल तक सबको उल्लू ही तो बनाता है)साहूकर स्वतंत्र है ग्राहकों से मनमाना रूपये ऐंठने के लिए.
गुंडे-मवाली भी अपने देश में स्वतंत्र हैं.वे दंगे-फसाद,चोरी-डकैती,स्त्रियों से दुर्व्यवहार आदि सत्कर्म करके ऐसे स्वतंत्र विचरतेे हैं जैसे शेर अपना शिकार करकेे,बेख़ौफ विचरण करता है.

आम जनता भी स्वतंत्र है.चाहे जहाँ कचरा फेंके,जहाँ चाहे थूकें.आखिर म्यूनिसिपैलिटी के कर्मचारियों ने सफाई करने का ठेका जो लिया है.
मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियाँ भी स्वतंत्र,जब चाहे नेटवर्क देने और गायब करने के लिए.
मोबाईल पर फेसबुक,वाट्सएप,ट्विटर चलाने वाले भी एकदम फ्री हैं.जो चाहे,जैसा चाहे पोस्ट करे.किसी भी भ्रामक जानकारियों के प्रसार करके तिल का ताड़,और राई का पहाड़ बनाने में, इन महान लोगों का का महान योगदान होता है.

आज जब कोई कहता है कि राष्ट्र की प्रगति के लिए हमें अपने विचारों को बदलना होगा,हमें मिलकर रहना होगा,तब मुझे उन पर बहुत हँसी आती है.यदि हम औरों के आदेशों पर चलें,तो हमारे स्वतंत्र होने का भला क्या मतलब?
हमारे पुरखों ने हमें स्वतंत्र करने के लिए जितना भी कष्ट झेेला,ये उनका दुर्भाग्य था.आज जब हम आजादी की सांस ले रहे हैं,तो हमें किसी एकता की,किसी संघर्ष की,किसी कायदे कानून की भला क्या आवश्यकता है?

आखिर हम स्वतंत्र हैं भाई!रांग साइड से ओव्हरटेक करें,यातायात के नियमों को तोड़ें,किसी के बहन को जी भर घूरें,सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी फैलाएँ-सिगरेट-शराब पीएँ.अपने धर्म का सम्मान करें न करें,बस दूसरे मजहब की बुराइयाँ गिनाएँ.आइए अपने इन सुन्दर कृत्यों से हम ये सिद्ध कर दें कि कभी अपने पूर्वज भी जानवर ही थे.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

रविवार, 13 अगस्त 2017

||तेरे भीतर बैठा सजना||

समय बीत रहा किस गति से,
खयाल इसका तू कर जरा.
आएगा तुझे चेत कब?
क्या तब,जब आएगी जरा.

जिसने सुनी,
अंतरात्मा की गिरा.
वह कभी,
पापकूप में नहीं गिरा.

कर नेत्र बंद निज,
जोड़ अपने दोनों कर.
मिला जीवन जिनसे,
कभी उनका भी सिमरन कर.

तन दो दिन का,
है व्यर्थ तेरा सँवरना-सजना.
गोरी झाँक कभी अंतर में,
तेरे भीतर बैठा है,तेरा सजना.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

||मिलन हो किस विधि||

एक बस तू सत्य है,
जगत सारा ये छल है.
पाप विष है,
तेरी कृपा गंगा जल है.

मुझे न मिले
खोजा तुम्हें दर-दर मैं.
मंदिर भटका,मस्जिद भटका,
झांका कभी न अंदर मैं.

दुखहर्ता,सुखकर्ता तुम,
तुम दीनबन्धु-दयानिधि.
मैं पातक,नित पाप में रत,
मिलन हो तुमसे किस विधि?

अशोक नेताम "बस्तरिया"

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...