चड़इ रहसे सोन चो पिंजरा ने,
मिरसे कितरोय मीठ-मीठ चारा.
आपलो सगा ले लाफी रहुन,
कोन जाने कसन जियेसे बिचारा.
आपलोय रूक आपलोय गुड़ा,
आपलोय नंदी-डोंगरी हुनके भाए.
मान्तर आसे पर चो बँधना ने,
उड़ुन जाए तो कसन जाए.
करेसे सुरता कि संगवारी मन संग,
आमि कसन उड़ुन राने जाऊँ.
हाँसते-भुकलते,गीद गावते,
आमा,टेमरु,चड़ई जाम खाँऊ.
बिहान होली कि,
उठुन चारा खोजुक लाय जातो.
आऊर चारा खाउन साँझ बेरा,
आपलो घरे बोहड़तो.
अदाँय गेली बे पूरे चो,
हुन काय रसया बेरा.
आजि तो मचो काजे,
अइ पिंजरा चे आय डेरा.
एकलाय रहुन,भीतरे ढाकी होउन,
अमरित असन रस के बले पीव ना.
मान्तर मन नी अए केबय,
काकय बले पिंजरा चो जीवना.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"