गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

||दो चीजें||

दो चीजें,एक शिक्षा-दूसरा शराब.
एक अच्छी और दूसरी खराब.

एक कराती विकास.
दूसरे से होता विनाश.

मानव को कठिन परिस्थियों में,संभाल लेती है.
शिक्षा हर समस्या का,समाधान निकाल लेती है.

नशा गिराता है मानव को पतन के गर्त में.
फँसा रहता वह सदा,विपत्तियों के आवर्त में.

शिक्षा को अपने जीवन से जोड़ें
शराब को सदा-सदा के लिए छोड़ें.

-अशोक नेताम

||उल्टी बात||


देश तेजी से विकास की पटरी पर दौड़ रहा है.मेरे विचार में जब देश का बच्चा-बच्चा अपने विचार सबके सामने रखने लगे,आम आदमी अपने अधिकारों की खातिर सड़क पर आ जाए-किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाए,तो समझना चाहिए कि हमारा राष्ट्र सही दिशा में जा रहा है.

मात्र हम ही श्रेष्ठ हैं,हमारा ही धर्म श्रेष्ठ है,हमारी जाति ही सर्वोच्च जाति है,सारी अच्छाई केवल हमारे भीतर है.दूसरे जाति-धर्म के लोगचोर हैं,उनमें कोई अच्छाई नहीं है.ऐसे विचार न केवल हमारे धर्म को मजबूती प्रदान करते हैं,बल्कि इससे हमारा लोकतंत्र भी मजबूत होता है.

सचमुच देश में बेरोजगारी की समस्या विकराल है.पर खुशी इस बात की है कि लोग खाली नहीं बैठे हैं.देवताओं -महापुरुषों की मूर्तियाँ तोड़ना,सोशल मीडिया पर झूठे संदेश फैलाना,अन्य धर्मों के प्रति आग उगलना,दंगे में शरीक होना,ये भी तो काम ही हैं.इनसे पैसा मिले न मिले पर औरों को दुखी देकर जो आनन्द इनके हिस्से में आता है वह पैसों से कहीं बढ़कर मूल्यवान और अद्भुत होता होगा न.

हमारे देश में मूर्तियाँ बड़ी महत्वपूर्ण होती हैं(एकलव्य तो द्रोण की मूर्ति से ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन गए थे).जब आप किसी के जैसा न बन सकें तो उसकी प्रतिमा बनाइए और उसे खंडित कर दीजिए सच बड़ा मजा आएगा.
भले हमने राम-कृष्ण,यीशु,पैगंबर,नानक को न पढ़ा हो.उन महापुरुषों के गुणों का तनिक भी अंश हमारे भीतर न हो.उनके दिखाए सत्य,अहिंसा और भाईचारे के पथ पर हम चलें न चलें पर धर्म का चोला ओढ़ लेने और गाल बजाने मात्र से ही हम श्रेष्ठ बन जाते हैं.

ये हमारे देश की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि हमने अशिक्षा,गरीबी,नशा और सड़क, बिजली,पानी,स्वास्थ्य जैसे अहम मुद्दों को बहुत पीछे छोड़ दिया है.क्योंकि आज इस विषय पर कोई बात नहीं करता.आज तो प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ और दूसरे को निकृष्ट सिद्ध करने में लगा है.अपने बेटों में एक दूसरे से आगे निकलने की गलाकाट प्रतिस्पर्धा देखकर भारत माता के आँखों में प्रसन्नता के आँसु छलक आए.उसने अपना मुँह छिपा लिया.मालूम नहीं खुशी से या शर्म से.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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