तंग उड़ रहा था हवा में.
उस मांझे के सहारे,
जिस पर नियंत्रण था एक व्यक्ति का.
हुआ गर्व पतंग को,
अपनी उड़ान-अपनी ऊँचाई पर.
लगा उसे,जैसे वह नाचता हो,
किसी के इशारे पर.
अब वह उड़ना चाहता था,
आकाश में बिलकुल स्वच्छंद.
यही सोचकर अलग कर लिया
उसने खुद को माँझे से.
धीरे-धीरे हवा उड़ा ले गई उसे बहुत दूर .
अंतत: एक सूखे पेड़ की डाल पर फँसकर,
वो पतंग अपना अस्तित्व खो बैठा.
(पतंग आदमी है.जिसके हाथ में माँझा है वह समाज है.
ऊँचाई और उड़ान प्रसिद्धि और सफलता है.मांझा प्रेम या अपनापन है.स्वयं और अपनों के बीच प्रेम की डोर यदि टूट गई तो आदमी अपना वज़ूद खो देता है.)
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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