शनिवार, 28 जुलाई 2018

||कोसा कीड़ा||


बाजारों में रेशमी वस्त्रों की बहुत माँग होती है.आकर्षक,चमकदार रंग और सर्दी-गर्मी दोनों मौसम में अनुकूल होने के कारण रेशमी वस्त्र लोगों में काफी लोकप्रिय होते हैं.आजकल तो रेशमी साड़ियों के अलावा रेशमी रुमाल शर्ट,टाई,सलवार,बेडशीट,पिलो कव्हर,टेबल क्लॉथ,पर्दे आदि भी बहुत पसंद किए जाते हैं.
पर क्या आप जानते हैं कि ये सिल्क या रेशम,एक कीट से प्राप्त होता है.जिसे रेशम कीट कहते हैं.इसे पालने के का काम रेशम कीट पालन या सेरीकल्चर  कहलाता है.
बस्तर में भी विशेषत: वे क्षेत्र जो कि साल वनों के अंतर्गत आते हैं,घरों में रेशम कीट पाले जाते हैं व आर्थिक लाभ प्राप्त किया जाता है.कैसे?
आइए जानें.
बस्तर में अधिकतर मानसूनी खेती होती है.धान की कटाई के बाद फसल लगभग नहीं ली जाती है,इसलिए गर्मी भर मवेशियों को स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है.
आषाढ़ महीने में धान बुआई के बाद खेत फिर से हरे-भरे हो जाते हैं और पशुओं को चराने का क्रम पुन: आरंभ हो जाता है.गांव के लोग सुबह 8 बजे से 11 बजे तक फिर दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक अपने मवेशियों को जंगलों में ले जाकर जाकर  चराते हैं.जब भी वे अपने पशुओं के साथ घर वापस लौटते हैं तब उनके हाथ में साल वृक्ष की एक डारा(शाखा)होती है जिसमें हरे रंग के लगभग 10-12 से.मी. के बड़े-बड़े कीड़े होते हैं.जिसे वो कोसा कीड़ा कहते हैं.
क्या है कोसा कीड़ा?
वैसे तो कई तरह के रेशम कीट पाले जाते हैं.जिनमें से मलबरी(शहतूत)रेशम कीट बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.पर जंगल में पाया जाने वाला ये रेशम कीट बड़ा प्यारा और सुन्दर होता है.यह बिल्कुल रेशम सा मुलायम होता है.हाथ से पकड़ लेने के बाद इसे छोड़ने का मन ही नहीं करता है.लोग पेड़ के नीचे गिरे कीट के मल से इसे खोज लेते हैं.बिल्कुल पत्ते के रंग का होने के कारण यह आसानी से नजर नहीं आता.
एक बड़े साल के पेड़ से लगभग 5 से 10 कोसा मिल ही जाते हैं.ग्रामवासी अपने घर में इस कीड़े को उस पेड़ पर डाल देते हैं जहाँ ये जीवित रह सके.ये कीट प्राय: सरई,महुआ,अमरूद,अर्जुन(कहुआ),आदन(साजा)आदि वृक्षों में ये आसानी से अपना जीवन चक्र पूर्ण कर कोसा का निर्माण करता है.
15-20 दिनों बाद ये कीड़ा कुछ पत्तों को जोड़कर अपने चारों ओर तंतुओं का एक आवरण तैयार करने लगता है.ये तंतु उसके मुँह से निकलते हैं.फिर एक कोश का निर्माण कर वह कीड़ा उसी के भीतर कैद हो जाता है.अगस्त महीने के आसपास वह कीट कोश में छिद्र कर तितली के रूप में बाहर आ जाती है.और पत्तों पर अंडे देती है.इस तरह कोसा कीड़ा का जीवन चक्र चलता रहता है.छिद्रयुक्त कोसा की कीमत कम होने के कारण इन्हें गर्म पानी में उबाला जाता है ताकि कोसा के भीतर का कीट मर जाए व कोसा साबुत बना रहे.
वैसे कुछ लोग सीधे जंगल से ही रेडीमेड कोसा प्राप्त कर लेते हैं.आप माने या न मानें एक व्यक्ति साल वनों से एक दिन में 50 से 100 कोसा जमा कर लेता है.एक कोसा बाजार में लगभग 5 रुपये में बिक जाता है.पर दुख की बात ये है कि कुछ कोसा की चाह में लोग पूरा पेड़ तक काट देते हैं.कई बार लोग पेड़ से गिरकर घायल भी हो जाते है.
इसलिए हम तो यही कहेंगे कि कोसा के लिए वन को नुकसान न पहुँचाया जाय साथ ही पूरी सावधानी बरती जाय.
(संलग्न सारी तस्वीरें नेट से)
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

रविवार, 22 जुलाई 2018

||बहुत लाभकारी है खेक्सी||

वनों ने अपने सीने में मानव जाति के लिए कई दिव्य और लाभकारी उपहार छुपा रखे हैं और उन्हीं उपहारों में से एक है-खेक्सी.बिल्कुल करेले की तरह दिखने के कारण बस्तर में इसे रान करेला यानी कि जंगली करेला के नाम से भी जाना जाता है.आजकल यह बाजारों में ₹ 200 प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहा है.
क्या है खेक्सी:-खेक्सी का वानस्पतिक नाम मोमोकॉर्डिया चेरेन्शिया है जोकि कुकुरबिटेसी प्रजाति का पौधा है.अंग्रेजी में इसे स्पाइनी गॉर्ड कहते हैं. करेले की तरह दिखने के बावजूद ये स्वाद में बिलकुल भी कड़वा नहीं होता.

कहाँ पाया जाता है :-खेक्सी का पौधा पर्वतीय इलाकों में पाया जाता है.जोकि बेलयुक्त होता है.इसकी लताएँ पेड़ पर लिपटी हुई होती हैं.बरसात के दिनों में इस पर फल लगते हैं.वैसे तो यह जंगली पौधा है पर इससे होने वाली कई तरह के फायदों और इसकी बढ़ती माँग के चलते मैदानी क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा रही है.इसका बीज परवल के बीज की भाँति हल्का होता है जिससे नया पौधा उगाना संभव नहीं हो पाता.इसलिए लोग बरसात के दिनों में इसके पौधे को जंगल से जड़ व कंद सहित उखाड़ लाते हैं और अपने घर की बाड़ी में रोप देते हैं और खेक्सी प्राप्त करते हैं.इसकी सब्जी बहुत ही मीठी और स्वादिष्ट होती हैं.
खेक्सी के फायदे:-
खेक्सी की सब्जी बहुत फायदेमंद है.जो निम्नानुसार है:-
1.कैंसर की रोकथाम में सहायक : इसमें मौजूद ल्यूटेन जैसे केरोटोनोइड्स विभिन्न नेत्र रोग,हृदय रोग और यहां तक कि कैंसर की रोकथाम में सहायक है.
2.सर्दी-खांसी से राहत दिलाए:-इसके एंटी-एलर्जन और एनाल्जेसिक गुण सर्दी-खांसी से राहत प्रदान करने और इसे रोकने में भी सहायक हैं.
3.स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में सहायक:-खेक्सी में मौजूद फाइटोकेमिकल्स स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करते हैं.एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर इस सब्जी से शरीर को साफ़ रखने में मदद मिलती है.
4.वजन घटाने वालों के लिए अच्छी : प्रोटीन और आयरन से भरपूर खेक्सी में कम मात्रा में कैलोरी होती है.100 ग्राम खेक्सी में केवल 17 कैलोरी होती है, जिस वजह से ये वजन घटाने वाले लोगों के लिए बेहतर विकल्प है.
5.डायबिटीज के रोगियों के लिए अच्छी:-यह ब्लड शुगर कम करने और डायबिटीज को नियंत्रित करने में सहायक है.
6.पाचन सही रखने में मददगार:-इस सब्जी में भरपूर मात्रा में फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं,जिस वजह से ये आसानी से हजम हो जाती है.ये मानसून में कब्ज़ और इन्फेक्शन को नियंत्रित कर आपके पेट को सही रखती है.
आपने भी जरूर रान करेला यानी कि की खेक्सी की लज़ीज सब्ज़ी का मजा उठाया होगा.
खेक्सी के फायदे:-
लिंक https://onlyayurved.com/vegetables/कंटोला-या-ककोरा/miraculous-health-benefits-of-kantola/ से
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

बुधवार, 18 जुलाई 2018

||खेलुक मिरती ता फेरे....||

घाम-बरसा-सीत खादली,
पोसली आमके चार महू-टोरा ने.
खेलुक मिरती ता फेरे मके,
मचो माय चो कोरा ने.
गेली केबय केसुर कांदा,
पीता काँदा कोड़ुक.
बुलली खमन ने,
सरगी-टेमरु पान टोड़ुक.
पीला-पीचका चो सुक काजे,
हिंडली बाटे -बाटे.
बिकली केबय धूप केबय,
पान-दतुन जाउन हाटे.
केबय केरा बिकुक नीली,
मुंडे बोहुन बोरा ने.
खेलुक मिरती ता फेरे मके,
मचो माय चो कोरा ने.
आमचो काजे आउर घरे,
आया करलिस बुता.
पड़उक लिखउक आमके,
आपलो बिकुन दिली सुता.
नी घेने आपलो काजे,
केबय नुआ लुगा.
घेनु देउआय आमचो काजे,
मोटोर गाड़ी फुगा.
हाट ले चना-चरबन आनुआय,
भरुन आपलो झोरा ने.
खेलुक मिरती ता फेरे मके,
मचो माय चो कोरा ने.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

रविवार, 15 जुलाई 2018

||धान की खेती||

छत्तीसगढ़ में कई तरह की आनाज,दलहन व तिलहन फसलें ली जाती हैं.पर चावल यहाँ के भोजन में प्रमुख रूप से शामिल है.धान की सर्वाधिक पैदावार होने के कारण छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है.छत्तीसगढ़ में धान की कुछ ऐसी प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं जो अपना औषधीय महत्व रखती हैं.आइए हमारे इलाके में धान की खेती पर चर्चा करें.
धान खरीफ की फसल है जिसका वैज्ञानिक नाम ओराइजा सटाइवा है.इसकी बुआई जून-जुलाई में हो जाती है.
फसल के पकने की अवधि के आधार पर धान दो तरह के होते हैं-
1.तुरिया धान:-ये कम अवधि(लगभग 3 महीने)में पककर तैयार हो जातें है.ये मैदानी भागों में जहाँ पानी ठहर नहीं पाता,बोए जाते हैं.इसके पौधों की लंबाई कम होती है.इसके अंतर्गत कुटबुड़ी,करेला आदि नाम के स्थानीय धान आते हैं.
2. धान:-ये धान देर से(करीब 4 महीने में)पककर तैयार होते हैं.गहराई भूमि में बोए जाते हैं.इसके पौधो ऊँचे होते हैं व धान की बालियाँ भी अधिक होती हैं.कृष्णा,एच एम टी,दूबराज व अन्य संकर(हाइब्रिड)प्रजातियाँ आती हैं.
खाद का प्रयोग-प्राय: किसानों के घर में एक बड़ा गड्ढा होता है जहाँ गाय-बैलों के गोबर एकत्र कर लिया जाता है.जिसे खातू गड्ढा कहा जाता है. साल भर में वह  खाद में परिवर्तित हो जाता है.अभी इस खाद के साथ-साथ बेहतर पैदावार के लिए यूरिया व डी.ए.पी.जैसे रासायनिक खाद का भी उपयोग किया जा रहा है.
धान की बुआई/रोपाई:-
धान दो प्रकार से लगाया जाता है
1.बुआई:-बुआई  में बारिश की नमी के बाद हल चलाकर धान के बीज सीधे खेतों में बो दिए जाते हैं.बोने के बाद पाटा या कोपर चलाया जाता है जिससे कि बीज मिट्टी के भीतर ढँक जाएँ.बोआई के पहले दिन को बीज निकालना कहते हैं.बीज प्राय: जून में निकाला जाता है.10-15 दिनों में खेत हरे-भरे हो जाते हैं.अगस्त के महीने में जब पौधे 20-30 से.मी. की लंबाई के होते हैं और खेतों में पानी भरा होता है तब खेत में हल चलाया जाता है जिसे बियासी मारना करते हैं.खेत में अनावश्यक घास यानी कि खरपतवार उग आने पर उसे उखाड़कर नष्ट कर दिया जाता है जिसे निंदाई कहा जाता है.आवश्यकतानुसार ऊर्वरक व कीटनाशक का छिड़काव भी किया जाता है.
2.रोपाई:- रोपाई में धान की पौध तैयार की जाती है. पौधों के 20 से 25 दिन के हो जाने पर खेतों को रोपाई के लिए तैयार कर ले जाता है.पानी से भरे खेत की जुताई कर ली जाती है फिर कीलयुक्त पाटा(कोपर) चला कर खेत को समतल कर लिया जाता है.खेत में डी.ए.पी. का छिड़काव किया.तैयार खेत में धान के पौधे लगभग 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं. रोपाई हो जाने के 2 दिन बाद से खेत में 5 से 6 सेंटीमीटर पानी का भरा होना आवश्यक होता है.रोपाई विधि में में खरपतवार बहुत कम पैदा होते हैं व पैदावार अधिक होती है
सितंबर महीने में धान की बालियाँ निकल जाती हैं और अक्टूबर-नवंबर तक फसल तैयार हो जाती है.फसल काटकर व कूपा बनाकर कोठार में रखा जाता है.कटे हुए धान की फसल को कोठार में व्यवस्थित रूप से जमाकर रखा जाता है जिसे कूपा कहते हैं.बारिश होने की स्थिति में धान  कूपा में पानी से सुरक्षित रह जाता है.फिर कभी बेलन या ट्रै्टर चलाकर धान की मिंजाई की जाती है.दरभा धान यानी कि वो धान जिसमें चावल नहीं होता को पंखे के उड़ाकर अलग कर दिया जाता है.वर्तमान में थ्रेशर का उपयोग किया जाता है जिससे समय की बचत होती है.
बस्तर में धान ढूसी में रखा जाता है.कई स्थानों पर कोठी व बाँस से बने डोलगी में धान को सुरक्षित रख लिया जाता है.
(तस्वीर:-इंटरनेट से)
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

शनिवार, 14 जुलाई 2018

||बस्तर में बनी-भूती||

बस्तर के लोग बड़े सीधे-सरल होते हैं.पर यहाँ अधिकांश परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है.जिसके कारण इन्हें बनी-भूती मजदूरी करनी पड़ती है.

आइए हमारे आस-पास प्रचलित मजदूरी के कुछ प्रकारों को जानें.

1.बनी:-प्राय: रोजी की दर पर किए जाने वाला काम बनी कहलाता है.सुबह 8 से 12 फिर 2 से 5 बजे तक का काम एक दिन की बनी कहलाता है.
ये कई प्रकार के हो सकते हैं-

क)नांगर बनी:-नाँगर बनी में आदमी अपने बैल व हल की सहायता से 6 से 11 बजे तक दूसरे के खेत की जुताई का कार्य करता है.मजदूरी 150 से 200 के लगभग होती है.इसमें एक प्रहर ही कार्य करना होता है.

ख)रोपा बनी:-धान की रोपाई हेतु  की जाने वाली बनी रोपा बनी कहलाती है.

ग)निंदा बनी:-धान के खेतों में खरपतवार उखाड़ने का काम निंदा बनी कहलाती है.

घ)हाट बनी:-बनी करने के दिन औरतें हाट-बाजार नहीं जा पातीं क्योंकि  काम के खत्म होते तक शाम हो चुका होता है.इसलिए अब हाट बनी आरंभ हो गई है.इसमें बनिहार सुबह 6 बजे से  दोपहर तक लगातार काम करता है.उसके बाद छुट्टी हो जाती है.

ड.)कोड़का बनी:-भुट्टे के पौधे 10-15 से.मी. होने पर उसके तने की मजबूती के लिए मिट्टी चढ़ाई जाती है.इसे कोड़का देना या कोड़कना कहते हैं.

2.ठेका:-ठेके में कई मजदूर मिलकर किसी काम को निश्चित दिन तक पूरा करने का जिम्मा लेते हैं.इसमें समय की पाबंदी नहीं होती.तय अवधि से पहले काम पूरा होने पर बनिहारों को फायदा होता है.

3.गोदी:-गोदी के अंतर्गत प्राय: खुदाई का काम होता है.अब गोदी में रोपाई भी की जाती है.खुदाई में तय लंबाई-चौड़ाई व गहराई के अनुसार मजदूरी मिलती है.रोपाई में भी रोपे गए पौधों के क्षेत्रफल के अनुसार कमाई का निर्धारण होता है.

4.बेठिया:-बस्तर में लोग केवल रुपये कमाने के लिए नहीं बल्कि सहयोग व आत्मीयता बनाए रखने के लिए भी काम करते हैं.इसका उदाहरण है बेठिया.बेठिया में किसी भी  काम के बदले  दाम नहीं दिया जाता बल्कि उस दिन सहयोगियों के लिए शाम के भोजन की विशेष व्यवस्था करनी होती है.लेकिन यह प्रचलन से बाहर होता जा रहा है.

5.नग के आधार पर मजदूरी:-कई बार नग के आधार पर भी मजदूरी तय होती हैजैसे ईंट-खपरैल आदि निर्माण में प्रति सैकडा या हजार पर मजदूरी तय की जाती है.हमाली करने वाले भी प्रति बोरे की दर से रुपये लेते हैं.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

सोमवार, 9 जुलाई 2018

||हल्बी ठसा-2||

आजि चो बूता के आजि सार,नी कर काल-काल.
फेरे समया नी मिरेदे बाबू,अमरुन जायदे काल.

आगर रहो पैसा-कौड़ी,कितरोय रहो बल.
जीव दुखातो गोठ केबय,आउर के नी बल.

बेमार होलीसे जे बीती,खा हुन चोय गोली.
अस्तिर ने काम कर,छाँड बंदुक अउर गोली.

बिन नेवतलो नी जा कहाँय,गोट के मचो मान.
बिगर बलालो गेलो ने,नी करत कोनी  मान.

ऊपर बीता करेसे तुचो,जमाय करम चो जोड़.
अवधरम के छांड ना,धरम के मोडरा ने जोड़

साग कढ़ई ने जरुन जायदे,चाटु ने हुनके घाट.
बिन हात-पाँय चलालो कसन,नाहकसे नंदी घाट.

आपलो जमाय हरिक-उदीम,आउर संगे बाट.
धन कमाउन खूबे तुय,धरुन जासे ना कोन बाट.

✍अशोक नेताम

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...