रविवार, 26 अगस्त 2018

||उपहार||

आज पहली बार ऐसा हुआ जब निशा अपने भाई को रोते हुए राखी बांध रहे थी.वो भी घर पर नहीं बल्कि हॉस्पिटल में.पर उनकी आँखों खुशी के आँसू थे.
दरअसल कल शाम को ही विजय अपनी बाइक से गिर गया था जिससे उसे काफी चोट आई थी. विजय है तो एक सरकारी क्लर्क पर 1-2 महीने से वेतन नहीं मिल पाने के कारण आर्थिक स्थिति खराब चल रही थी.कुछ महीने पहले पिता का साया सर से उठ जाने के बाद वह और भी अधिक दुखी रहने लगा था.इस कारण वह कुछ दिनों से बहुत अधिक शराब पिया करता था. उसकी पत्नी भी उसके इस रवैये से बहुत परेशान रहने लगी थी.
"बहन बड़े दुख की बात है कि मैं इस राखी में तुम्हें कुछ भी नहीं दे पा रहा हूं."
"नहीं भैया इस बार आपके पास मुझे देने को जीवन का सबसे बड़ा उपहार है."
"कौन सा उपहार बहना?"
"भैया यदि सचमुच आप मुझे कुछ देना चाहते हैं तो त्याग दीजिए ये नशे की लत जिसने आपको शारीरिक-मानसिक रूप से दुर्बल बनाया है.जीवन पर मनुष्य मात्र का अधिकार नहीं होता बल्कि उसके सुख-दुख अपनों को भी प्रभावित करते हैं. आपके कारण भाभी को कितनी परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं,और भैया हमें भी आपकी हालत देखकर बहुत-बहुत-बहुत तकलीफ होती है.यदि आप मुझे ये उपहार दे पाए तो रक्षाबंधन के अवसर पर ये मेरे जीवन का सबसे बड़ा उपहार होगा."
और इस तरह एक भाई ने अपनी बहन को रक्षाबंधन का सबसे बड़ा उपहार दिया.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
       केरावाही(कोण्डागाँव)

बुधवार, 22 अगस्त 2018

||पाषाण और पवन||

एक पाषाण और एक चंचल पवन.
दोनों ही लगते हैं मुझे अपने.
दोनों से है मुझे बराबर स्नेह.
पवन दिखती नहीं.
न ही उसे छुआ जा सकता.
किया जा सकता है मात्र उसका अनुभव.
शरीर को छूते ही उसके,होती है अनुभूति,
एक दिव्य आनन्द की.
पाषाण है श्याम-शुष्क-कठोर.
किंतु कर सकता हूँ मैं स्पर्श,
उसे हाथों की अंगुलियों से.
दुख की घड़ी में उस पर शीश टिकाकर,
और रोकर,विस्मृत कर देता हूँ मैं,
अपने समस्त दुख सदा के लिए.
है हृदय भूमि मेरी,
पवित्र प्रेम पीयूष से सिंचित.
सब कुछ पाया मैंने,
किस विषय पर रहूँ चिंतित.
दोनों ही का प्रेम,
हृदय के भीतर बसा है.
मेरे पिता(ईश्वर) ही समझ सकते हैं,
जो अब मेरी दशा है.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

शनिवार, 11 अगस्त 2018

||समया फेरे नी अये||

नहाकलो समया फेरे नी अये,
मान्तर हुनचो सुरता अएसे.

हुन चमास चो झड़ धरतो.
नंदी-ढोड़ी चो उसलुन जातो.
जमाय जुहुन पूरा के दखुक जातो.
पानी ने सड़क के बोहाउन नेतो.
गरी ने केंचुआ गुथुन मछरी फसातो.
आउर बेड़ा पार ने चोड़या रोपतो.

नहाकलो समया फेरे नी अये,
मान्तर हुनचो सुरता अएसे.

मरहान ने माचा बनाउन जोंधरा राका रतो.
लकड़ी चो नाँगर,माटी चो गाड़ी बनातो.
राति बेरा खीरा-मूँगफली चोरुक जातो.
झाड़ बेंदरा,पोटा लामा,नोन चोर खेलतो.
हासते-खेलते खमन ने बयला चरातो.
रुक ले कोसा कीड़ा जुहाउन घरे आनतो.

नहाकलो समया फेरे नी अये,
मान्तर हुनचो सुरता अएसे.

आया-बाबा संग गोंचा बाजार दखुक जातो.
अमुस ने डेंग-डेंग गोड़ोंदी बनातो.
नवाखानी चो हुन हुलकी मंदर नाचतो.
दसराहा ने कोंडागाँव चो रावन मारतो.
दियारी ने गाय-बयला के खिचड़ी खोवातो.
मंडई ने देव मन चो काय मंजा बिहरतो.

नहाकलो समया फेरे नी अये,
मान्तर हुनचो सुरता अएसे.

राति दाँय आया बाबा चो कहानी साँगतो.
ओंडकेरा चो नाव ने आमके डरातो.
गाड़ीमन के दखुन लुकुकलाय परातो.
हुन बिगर बिजली चो चिमनी बीती जीवना.
छानी उपर ले पानी चुहलेक गंजी के मंडातो.
हुन मसनी-चाप ओसाउन भुँए सवतो.

नहाकलो समया फेरे नी अये,
मान्तर हुनचो सुरता अएसे.

माहला ने लाई गुड़ चिवड़ा खातो.
बिहाव दाँय चो रेला गीत गावतो.
लगिन दाँय नकटा-नकटी बनतो.
गुर्रुम-गुर्रुम गरजुन मन्दर बाजतो.
छट्टी ने थारी पेटुन नाव साँगतो.
मरनी ने गागते-गागते माटी देतो.

नहाकलो समया फेरे नी अये,
मान्तर हुनचो सुरता अएसे.

समया चो कडरा सबके काटली.
हरीक उदीम चो तरइ आज आटली.
बदलली अदाँय जीवना चो ढंग.
बेटा माय-बाप के छांडुन रहेसे बायले संग.
जीवना आय दुय दिन चो सत गोट के धरा.
काचोय जीव दुखो असन काम केबय नी करा.

✍अशोक कुमार नेताम
   केरावाही(कोण्डागाँव)

||हम आदिवासी हैं||

सदियों से वन के वासी हैं.
कहलाते आदिवासी हैं.
रहते हम हरे-भरे वन में.
छल-कपट नहीं मन में.
अभावों में हँसके जीते हैं.
नदियों का मीठा जल पीते हैं.
धान मंडिया-कोदो बोते हैं.
परिणाम पर कभी नहीं रोते हैं.
संग्रह करते हम महू-सरगी-चार.
पशु-पक्षियों से हमें बहुत है प्यार.
गाँव में देवी-देवताओं का वास.
करते जो सब दुखों का नाश.
नाचते माँदर,गाते रिला गीत.
खुशी से जीवन जाता है बीत.
अनोखी हमारी हर परम्परा है.
हमारे श्रम से खिली वसुन्धरा है.
क्यों भलासमस्या कोई आएगी विकट.
जब हम हैं प्रकृति के इतने निकट.

(तस्वीर:- इन्टरनेट से)

✍अशोक नेताम
   केरावाही(कोण्डागाँव)

||सावन में जेठ ||

भीषण अग्नि से,झुलस रहा सबका रूप.
है तो ये सावन का महीना,पर जेठ की है धूप.

सूखा ताल,मेंढ़क प्यासे-प्यासी मीन.
बरस रहा अनल,तप रही ज़मीन.

साल वनों के विशाल वृक्ष खड़े हैं बिलकुल मौन.
पंछी भी तरसें जल को आखिर गीत सुनाए कौन?

हुआ मिलना दूभर पशुओं को,भरपेट चारा.
थोड़ी दूर चलके छाँव ढूँढता पथिक बेचारा.

अंतिम साँसे गिन रही,खेत में खड़ी फसल.
पोखर नदी-नालों में,बूँद भर भी नहीं जल.

बैठा है माथ पर हाथ रखे कृषक,सशंकित मन.
"हे ईश्वर!क्या अब फाँके में ही कटेगा शेष जीवन?"

✍अशोक कुमार नेताम
    केरावाही(कोण्डागाँव)

||जीवना दुय दिन चो हाट||

अवधरम के छाँड तुय,धर धरम चो बाट.
जीवना दुय दिन चो हाट,जीवना दुय दिन चो हाट.

गोदी खनला-बनी गेला,दुखा धराला हाथ-पाँय के.
सेवा करा हुनमन चो,नी भुलका आपलो बाप-माय के.

नी सरे काँई तुचो,खरचा नी होय पताय नोट.
जमाय आमि भाइ-भाइ,हाँसुन गोटयाव गोट.

मया चो सूत ने बाँध सबके,भरम चो डोरी के काट.
जीवना दुय दिन चो हाट,जीवना दुय दिन चो हाट.

आपुन के लाट साहब,नानी नि समज तुय आउर के.
पियेसे कोनी पेज-पसया,तुय बले खासित हुनि चाउर के.
बड़े नी होय कोनी मनुक,रुपया-पयसा गाड़ी ने.
सन्तोस रलो ने सुक मिरेसे,डारा पाना चो लाड़ी ने.

मिलुन रा सबाय संग,नानी बड़े चो खोदरा के पाट.
जीवना दुय दिन चो हाट,जीवना दुय दिन चो हाट.

सवकार हवो कितरोय कोनी,कोनी रहो बे कमया.
पराते जायसे थेबे नइ केबय,काचोय काजे समया.
माटी आय देंह आमचो,कोनी दिन बले माटी होयदे.
नी रहेदे ए काँई काम चो,भुँय खाले पाटी होयदे.

कितरोय लाम रहो बे राति,सरुन चे जायसे नाट.
जीवना दुय दिन चो हाट,जीवना दुय दिन चो हाट.

✍अशोक कुमार नेताम
   केरावाही(कोण्डागाँव)

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

||बियासी||

किसानी के काम मेें बहुत श्रम और धन खर्च होता है.अच्छी फसल की आस में किसान अपना सर्वस्व खेतों में झोंक देता है.कई बार वर्षा के अभाव में फसलें सूख जाती हैं और कभी कृषकों को अपने उपज की सही कीमत नहीं मिल पाती.लेकिन काश्तकारी बड़े मजे का काम है.सदैव प्रकृति के समीप रहकर अपने प्यारे पशुओं पर प्यार लुटाना,हरे-भरे खेतों का दीदार करना और परिजनों के संग आनन्दमय जीवन व्यतीत करना,संभवत: यही संसार का सबसे बड़ा सुख है.

छत्तीसगढ़ में मुख्यत: धान की फसल ली जाती है.धान की बुआई के बाद खेत में बियासी देना बहुत महत्वपूर्ण काम है.आइए जानें बियासी देना आखिर क्या है?

धान की बुआई में बीज एक-दूसरे के एकदम आस-पास गिरते हैं जिससे धान के पौधे बहुत धने हो जाते हैं.जिससे उन्हें वृद्धि व विस्तार करने का प्रर्याप्त स्थान नहीं मिल पाता.इसलिए बुआई के लगभग 20-25 दिन बाद जब खेतों में पर्याप्त पानी भरा होता है,हल चलाया जाता है.हल चलाते समय लाइन की दूरी लगभग 15-20 से.मी. होती है.रोपाई वाले धान में बियासी नहीं दिया जाता.

क्या होता है बियासी देने से?

बियासी देने से खेत की मिट्टी ढीली हो जाती है व आपस में पौधों की दूरी बढ़ जाती है जिससे उन्हें बढ़ने का पर्याप्त अवसर मिल जाता है.बियासी के बाद निंदाई कर खेतों से खरपतवार उखाड़कर नष्ट कर दिया जाता है.

इस प्रकार खेत में बियासी देना धान की फसल के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है.

कहा जाता है कि पहले खेतों में बियासी नहीं दी जाती थी.इससे संबंधित एक कहानी भी कही जाती है.
जो इस प्रकार है..

किसी गाँव में दो भाई रहते थे.दोनों दोनों के खेत अलग-अलग थे.जहाँ वे धान बोया करते थे.छोटा भाई बड़े से किसी कारणवश नाराज था.इसलिए एक दिन उसने सोचा कि क्यों न बड़े भाई के धान की फसल बरबाद कर उसे दुख पहुँचाया जाय.इसलिए उसने रातों रात भाई की फसल पर हल चला दिया और पकड़े जाने के भय से गाँव छोड़कर भाग गया.
बड़ा जान गया कि ये उसके छोटे भाई की करतूत है.वह दुखी तो हुआ पर उसने हिम्मत नहीं हारी.और अपने काम में लगा रहा.आश्चर्यजनक रूप से उस वर्ष उसके धान की उपज कई गुना बढ़ गई.कहा जाता है तब से धान के खेत में बियासी देने की शुरुआत हुई.

✍अशोक कुमार नेताम
     केरावाही(कोण्डागाँव)

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...