सोमवार, 17 सितंबर 2018

||प्रेम शाश्वत रहेगा||

आज कोण्डागाँव के साप्ताहिक बाजार में खासी भीड़ थी क्योंकि मंगलवार को क्षेत्र में नवाखानी तिहार मनाया जाएगा.

जिला मुख्यालय और बड़ा बाजार होने के कारण
15-20 कि.मी.दूर से लोग आवश्यक वस्तुएँ
क्रय-विक्रय करने यहाँ पहुँचते हैं.साग-भाजी,लोहे के औजार,कपड़े,मिठाइयाँ,श्रृंगार,राशन-तेल व अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएँ यहाँ बड़ी सरलता से मिल जाती हैं.

आज हाट में मिट्टी के बर्तन,रंग-बिरंगे बैल व खिलौने लोगों के आकर्षण के केन्द्र थे.नवा खानी पर्व पर लोग नए वस्त्र धारण करते हैं,नए बर्तनों में भोजन पकाये जाते हैं.

आज चिवड़ा व गुड़ विक्रय करती कई महिलाएँ भी दिखीं.दरअसल नवाखाई दिन लोग सपरिवार अपने देवी-देवताओं को गुड़ व चिवड़ा अर्पित करते हैं व इसे ही प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं.भोजन ग्रहण करने के पश्चात् वे अपनों से बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं.बच्चे मिट्टी बैल व अन्य खिलौनों से खेलते हैं.
दूसरे दिन को बासी तिहार कहा जाता है.

आज हाट में एक साँवली औरत चिवड़ा बेचने बैठी थी.

"चिवड़ा कैसे दे रही हो?"

"दस रूपया सोली."

हमारे कहने पर उसने दो सोली चिवड़ा सोली में नापकर और कुछ "पुरोनी" देकर पॉलीथीन की थैली में डाल दिया.

"चिवड़ा तो पूरा खत्म ही हो गया है.20 रु.में सारा चिवड़ा दे दो."

"नहीं बेटा इससे कम से कम और 20 रु.तो आराम से मिल जाएँगे."

चिवड़ा लेकर हम आगे बढ़ गए  लेकिन उन्होंने हमें फिर से आवाज़ देकर बुला लिया.और इस बार बिना माँगे ही उसने सारा चिवड़ा हमारी झोली में डाल दिया.

"आपने ऐसा क्यों किया?आपको तो नुकसान हुआ न?"मैंने पूछा.

उसके उत्तर ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया.

"बेटा पैसे तो हाथ की मैल है.आज है,कल नहीं रहेगा.पर हमारा प्रेम तो शाश्वत रहेगा न?"

कभी-कभी सोचता हूँ एकदम सरल और साधारण से दिखने वाले लोग इतना बड़ा और सच्चा ज्ञान कहाँ से प्राप्त कर लेते होंगे.सम्भवत: "अनुभव की पाठशाला" से.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

मंगलवार, 11 सितंबर 2018

||दीया||

मुझे निशा से प्रेम नहीं.
क्योंकि डर है उसका आलिंगन,
मुझे अंधा न कर दे.
बिजली पर भी विश्वास नहीं.
तूफान में वह भी छोड़कर चली जाती है.
कल से आज तक एक वो ही तो है,
जिसने मेरा साथ नहीं छोड़ा.
हर परिस्थिति में मेरा साथ दिया.
अंधकार में मेरा पथ आलोकित किया.
पर बदले में मुझसे कुछ भी नहीं लिया.
आज भी हमारे आँगन में,
जल रहा है चुपचाप वही दीया.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...