बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

||सौम्या के लिए||

प्रतिमा की भाँति,
बिलकुल मौन हो.
स्वप्न हो कि सत्य हो,
कहो तुम कौन हो?

नील नयन,
लहराते केश.
स्वभाव सरल,
और सादा वेश.

निकलते हैं जब,
मुख से वचन.
लगता ज्यों,
बरस रहे हों सुमन.

आह ईश्वर की अद्भुत-
सुन्दर ऐसी  रचना.
जो देखे तुम्हें,
असंभव है उसका  बचना.

लिखूँ तुम पर कुछ और,
पर मिलते नहीं है शब्द.
देखकर तुम्हें सदा,
मैं हो जाता हूँ निश्शब्द.

तुम बिन रस नहीं,
किसी भी रस में.
कहो न रखूँ कैसे मैं,
हृदय को अपने वश में.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

रविवार, 21 अक्तूबर 2018

||हाइकू||

रहो तैयार.
वो सजके आएँगे.
तुम्हारे द्वार.

सजेगा गाँव.
होगी पूछ-परख.
चलेंगे दाँव.

छल ओढ़के.
करेंगे मीठी बातें.
हाथ जोड़के.

मांगेगे वोट.
विकास के नाम पे.
फेंकेंगे नोट.

पूछेंगे हाल.
मौसम है ठंड का,
बाँटेंगे शॉल.

मिलेगा दारू.
पर न बिक जाना.
तुम सोमारू.

ये जो नेता है.
ले लेता कई गुना.
जो भी देता है.

वोट मंत्र है.
राजशाही नहीं ये.
लोकतंत्र है.

सबकी सुनें.
होगा जो भी लायक.
उसी को चुनें.

किससे डरें?
हम सब मिलके,
वोटिंग करें.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

||रेंगते जा||

रेंगते जा ना,तुय गिरतो के नी डर.
गिरुन उपरे ले घुमर दख,कितरो सुँदर लागेसे.

ए जीवना आय चलते रहेसे इता,
घाम साँय चो खेल.
बिन दुखा खादलो नी निकरे,
टोरा भीतर ले तेल.

हुनि हाँसेसे एक दिन,जे आउर काजे गागेसे.

एक ठान अंडकी,
काँई तीज के धरुक नी सके.
एकलोय मनुक,
खुबे बड़े काम करुक नी सके.

खत,पानी,घाम पाएसे तेब भूँये बीजा जागेसे.

आउर के ठगुन खासे,
तुचो पेट ने कसन जिरेदे.
जसन तूय करसे करम,
हुसने तुके फर मिरेदे.

सुक ने रहेसे हुन जे,सब काज सुक माँगेसे.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||रिश्तों की नींव||

इमारत बने जब संबंधों की,
तो नींव में स्वार्थ नहीं,डाला जाए प्रेम.
फिर वो महल खड़ा रहेगा,
सदियों तक अपनी जगह  .

लेकिन मतलब के कमजोर नींव पर टिकी,
रिश्तों की बड़ी से बड़ी इमारत भी,
बहुत जल्दी भरभराकर गिर जाएगी.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||निर्दय मृत्यु||

बड़ी ही निर्दय है मृत्यु.
बच्चे-औरत,जवान-वृद्ध,
किसी की नहीं सुनती,
वो आती है और चक्रवात की तरह,
और सब कुछ अपने संग उड़ाकर ले जाती है.
कल भी वो आई अपनी उसी रफ्तार से,
और अपने सैकडों लोहे के पैरों के नीचे,
कुचल गई कइयों को.
मृत्यु का तांडव चला बस पल भर.
पर न मिला किसी को संभलने का कोई अवसर.
बिछ गए लोगों के क्षत-विक्षत शव.
अचानक वातारवरण हुआ नीरव.
किसी की माँ,किसी की पत्नी,
किसी का पिता किसी का लाल.
बिखर गए रक्त और मांस पथ पर,
धरती हुई अपनों के रुधिर से लाल.
छोड़ गई मृत्यु,
अपने कठोर पैरों के निशान.
किसी सुहागिन का रक्तरंजित मंगलसूत्र-
टूटी हुई रंगीन चूड़ियाँ.
किसी गुड़िया का लहू से तर वो फ्रॉक-
वो प्यारी सी गुड़िया,
जो खरीदी थी उसकी माँ ने,
दशहरे के मेले में.
चाचा जी का टूटा हुआ चश्मा,
टूटी हुई वो सुनहरी घड़ी.
पर उस चश्मे से मौत आती न दिखी,
न ही घड़ी बता सकी ,
सके आने का सही समय.
और भी कई वस्तुएँ पड़ी हैं पटरियों पर.
जो कह रहीं हैं मृत्यु की निष्ठुरता का,
वीभत्स और करुण वृत्तांत.
सुनकर हृदय हुआ आहत-
व्यथित और अशांत.

(अमृतसर जोड़ा फाटक रेलवे दुर्घटना में मृतकों को श्रद्धाँजलि....)

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...