सोमवार, 24 दिसंबर 2018

||गाँव में पाए जाने वाले कंद||

ठंड के दिनों में गरमागरम उबले हुए कंद/कांदा खाने  का मजा ही अलग है. गांव की बाड़ियों में प्रायः कई तरह की कंद पाए जाते हैं.इनमें से कुछ तो एक बार उगा लेने पर बारिश के दिनों में स्वत: ही उग आते हैं.आइए जानें कुछ ऐसे ही स्थानीय कंदों के बारे में......

1.लाट कांदा:-ये छत्तीसगढ़ी में डांग कांदा कहलाता है.घर की बाड़ी में उगाया जाने वाला यह बेलयुक्त पौधा है.इसकी बेल पर ही काँदे लटके हुए होते हैं.दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा के दिन खिचड़ी में यह कंद भी मिलाया जाता है.

2.पीता कांदा:-लाट कांदा की तरह दिखने वाला यह कांदा एक जंगली बेलयुक्त पौधा है.इसे करु कांदा के नाम से भी जाना जाता है.जड़ के अंतिम छोर में पाया जाने वाला इसका कंद आकार में छोटा होता है.नाम से स्पष्ट है कि इसका स्वाद कड़वा होता है.पर लोग इसे उबालकर बड़े मजे से खाते हैं

3.केसुर कांदा:-यह काँदा उन प्राकृतिक पोखरों या खेतों में पाया जाता है जो साल भर पानी से भरे रहते हैं.दलदल से भरे खेत में पैरों से टटोलकर कांदा का पता  लगाया जाता है.फिर हाथ से काँदा निकाल लिया जाता है.एक पौधे के नीचे एक कंद ही मिलता है.इसे भी उबालकर खाया जाता है.यह बड़ा ही स्वादिष्ट होता है.खैर इसके स्वाद का मजा तो आपने जरूर लिया ही होगा.

4.नांगर कांदा:-शकरकंद को नांगर कांदा के नाम से जाना जाता है.इसकी खेती बरसात के दिनों में की जाती है.इसे प्राय:कलम विधि से उगाया जाता है.जमीन में कतारबद्ध मेड़ बनाकर कुछ दूरी पर इस पौधे के कलम गाड़ दिए जाते हैं.तीन चार-महीने में कंद तैयार हो जाने पर मेड़ की खुदाई कर कंद प्राप्त कर लिया जाता है.इसका स्वाद  मीठा होने के कारण ही यह शक्करकंद कहलाता है.प्राय: तीन किस्म का शकरकंद उगाए जाते हैं-लाल,भूरा और सफेद रंग के.यह कंद उपवास आदि के दौरान फलाहार के रूप में लिया जाता है.

5.आलू कांदा:यह वृक्षनुमा पौधा है.सेमल पेड़ की तरह दिखने के कारण यह सेमर कांदा भी कहलाता है.पौधे के नीचे तैयार होने वाला इसका कंद लगभग कलाई के बराबर मोटा और काफी लंबा होता है.बिलकुल सफेद रंग का यह कांदा बड़ा ही स्वादिष्ट होता है.उबला कांदा बाजार में बेचा जाता है.व्रतादि में इसका सेवन किया जाता है.

6.भैंसा ढेटी कांदा:-इसके कंद भैंस की सींग की तरह जुड़वा होने के कारण ही यह भैंसा ढेटी कांदा कहलाता है.इसकी लता में कांद लगते हैं.साथ ही इसका जड़ भी कंद के रूप में परिवर्तित होता है.इसका भूमिगत कंद जंघा के बराबर आकार का और बड़ा स्वादिष्ट होता है.

7.कोचई कांदा:-अरबी कंद का स्थानीय नाम कोचई है.ये प्राय:घरों घर पाया जाता है.घर की बाड़ी या खेत के मेड़ पर इसका कंद गाड़ दिया जाता है.फिर ये हर साल अपने आप उग आते हैं.यह गले में खुजली पैदा करता है इसलिए खटाई के साथ इसकी सब्जी बनाई जाती है.खुजली रहित कोचई उबालकर खाई जाती है.

8.जिमी कांदा:-जिमी कांदा छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध कांदा है.जिमीकंद भी साग  बनाने में प्रयुक्त होता है.यह भी खुजली उत्पन्न करता है.खटाई के साथ इसकी सब्जी बनाई जाती है.इसे उबालकर काटकर व सुखाकर लम्बे समय तक उपयोग में लाया जा है.पीड़ित व्यक्ति को इसकी सब्जी बवासीर से  खिलाई जाती है.

इस प्रकार कांदा और ग्रामीण जीवन का आपस में एक अटूट रिश्ता है.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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