बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

||संसार में शान्ति हो||

पाकिस्तान की नादानी के चलते,
भारत सैन्य कार्यवाही को मजबूर हुआ.
ध्वस्त हुए दहशतगर्दों के ठिकाने,
उसका हौसला चकनाचूर हुआ.
निस्संदेह आज जो कुछ भी हुआ,
वो पाक के दुष्कर्मों का फल है.
पर इससे ये नहीं समझना चाहिए
के युद्ध ही इस समस्या का हल है.
पूरे विश्व में आतंकियों के विरुद्ध,
एक बहुत बड़ी क्रांति हो.
न युद्ध हो कहीं-न अश्रु बहें किसी के,
संसार में शाश्वत शान्ति हो.

✍ए.के. नेताम

||संतोष धन||

न आँकिए किसी को
उसके मलिन वस्त्र-अर्धनग्न तन से.
क्योंकि निर्धनता का,
तनिक भी संबंध नहीं है धन से.
अन्यथा एक संपन्न व्यक्ति,
संसार का सबसे सुखी प्राणी होता.
और विपन्न व्यक्ति,
जीवन भर अपने अभावों पर रोता.
संतोष ही जीवन का,
सर्वोत्तम धन है.
ये नहीं जिसके पास,
समझो वही निर्धन है.
(तस्वीर:किरन्दुल बाजार स्थल)
ए.के.नेताम

||ये कैसी जन्नत?||

उस भयानक धमाके के बाद,
मैं जहाँ पहुँचा,
वहाँ रौशनी नहीं थी.
बिल्कुल अंधेरा था.
"उन्होंने" जन्नत का
जो पता बताया था.
ये तो कोई और ही जगह थी,
जहाँ मैं आया था.
यहाँ न सोने-चाँदी की इमारतें थी,
और न ही सोने के पेड़ थे.
पानी,दूध,शहद और शराब की नदियाँ भी,
नहीं बह रही थीं यहाँ,
यहाँ खूबसूरत आँखों वाली कोई हूर भी नहीं थी.
न कस्तूरी की खुश्बू,
न कोई सुरीली तान सुनाई दे रही थी यहाँ.
यहाँ बह रही थी नदियाँ,
अपनों के ही खून की.
माँ बेहोश थीं अपने लाल के,
लाल लहू से सने जिस्म देखकर.
बाप का कलेजा भी छलनी था,
पर था वो मौन.
सोचता अब हमारा जहाँ में
रह गया आखिर कौन?
बहनें भी रो रही थीं,
अपने भाई से लिपटकर.
पत्नियों के माथे से,
मिटाए जा रहे थे सिंदूर,
तोड़ी जा रही थीं,
कलियों सी नाजुक हाथों की चूड़ियाँ.
ज़िंदगी और मौत से अन्जान,
उन मासूमों को ये पता भी न था,
के उनके सर से पिता का साया,
उठ गया था,हमेशा-हमेशा के लिए.
देखकर ऐसे गमगीन नज़ारे,
मेरी भी आँखें नम हैं.
सच इसके बदले मुझे,
जो भी सज़ा मिले कम है.
नासमझ था मैं,
अपना-पराया समझ में नहीं आया.
अब सोचूँ अपनों को दर्द और आँसू देके,
मैंने कौन सा जन्नत पाया?

✍ए.के. नेताम

||वही मनुष्य है||

विपत्तियाँ परीक्षा लेती हैं सबकी,
विकट परिस्थियों में भी जो धीर धरे.
वही मनुष्य है.

रंग रूप जैसा भी हो सब संतान हैं ईश्वर की.
सबसे समता का व्यवहार करे.
वही मनुष्य है.

क्यों न मृत्यु ही सामने आकर खड़ी हो जाए,
धर्म और सत्य के पथ से न टरे.
वही मनुष्य है.

स्वयं हँसता रहे सदा जो,
और सबके जीवन में प्रसन्नता के रंग भरे.
वही मनुष्य है.

मात-पिता की करे सेवा.
अपने जन्मभूमि के सम्मान के लिए जिये-मरे.
वही मनुष्य है.

परमपिता परमात्मा को जो देखे सबके भीतर.
हिंसा-छल-कपट से हमेशा रहे परे.
वही मनुष्य है.

अपनी पीड़ा पर अश्रु तो सभी बहाते हैं,
पर जो औरों की पीड़ा हरे.
वही मनुष्य है.

✍अशोक कुमार नेताम

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

||रखिया बड़ी||

बड़ी की बात करें तो दुकानों में प्राय: सोयाबीन की बड़ी ही उपलब्ध होती है.जो सस्ती और मजेदार तो होती है,लेकिन अपने घर पर,अपने हाथों से बनाई रखिया बड़ी के स्वाद के आगे हर स्वाद फीका है.बड़ियाँ तलने की खुशबू से ही मुँह में पानी आ जाता है.रखियाके अलावा अरबी,केऊ(स्थानीय कंद),पपीता,मूली,पत्ता गोभी,फूलगोभी आदि से बड़ी बनाई जाती है.इन सबसे बड़ी बनाने की विधि एक जैसी ही है.
आइए रखिया बड़ी बनाने के लिए हमें चाहिए एक रखिया,उड़द की दाल,हरा धनिया,मेथी,अदरक आदि.

क्या है रखिया?
रखिया कुम्हड़ा प्रजाति का पौधा है.रखिया के चारों ओर राख की परत होने के कारण इसे "रखिया कुम्हड़ा" कहते हैंं.यह बहुत.इसी से पेठा बनाया जाता है.

सबसे पहले रखिया को टुकड़ों में काट लें व बीज अलग कर लें और इसे कद्दूकस कर लें.अब कपड़े से छानकर इसका पानी निकाल लें.रात भर भिगाए गए उड़द दाल में से छिलके निथारकर अलग कर लें.अब दाल को सील बट्टे या मिक्सर से पीस लें.पिसी दाल और रखिया के पेस्ट को एक में मिलाकर फेंट ले.धनिया,मेथी,अदरक आदि भी डाल दें.अब इसे धूप में साफ कपड़े पर एक-दो अंगुल की दूरी गोल-गोल रखते जाएँ.तीन चार दिनों में बड़ियाँ अच्छी तरह सूख जाने पर किसी डिब्बे में भरकर रख लें.जब भी बड़ी खानी हो शौक से बना लीजिए.आप जब-जब रखिया बड़ी की सब्ज़ी खाएँगे तब-तब आपको अपनी मिट्टी से जुड़े होने का सुखद अहसास होगा.

||तेतर||

गीदम-जगदलपुर मार्ग से उत्तर दिशा की ओर आरापुर गाँव में दो आदिवासी युवतियाँ सिर पर डलिये में कुछ ले जा रहीं थीं.हल्बी(भाषा)में पूछने पर उन्होंने बताया-''तेतर.''
मैंने समझा नहीं,झाँककर देखा तो समझ गया.खाने को माँगने पर उन्होंने कहा कि ये  गंदे हो गए हैं.तेतर खाना हो तो कभी फुर्सत में आना.तेतर भले खाने को न मिला,पर उनकी तस्वीर लेने का मौका तो मुझे मिल ही गया.इस चित्र में ये औरतें तेतर वृक्ष की छाँव में ही खड़े हैं.तेतर यानी कि इमली.यह भोजन में खटाई के लिए प्रयुक्त होती है.व्यापारी प्राय: छिलकारहित व साबुत इमली क्रय करते हैं.ये हर वर्ष 20 से 25 रु.प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है.बाजारों में लोग छिलकारहित इमली भी बेचते हैं.इस प्रकार यह लोगों की आय का अच्छा स्त्रोत है.हाँ,बेमौसम बारिश हो जाने पर  इसका भाव गिर जाता है.वैसे आप तो जानते ही हैं कि बस्तर एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी के रुप में  विख्यात है.

||वक्त बदल जाएगा||

खुशियों के रौशनी से,
ग़म का पहाड़ पिघल जाएगा.
हमेशा ऐसा नहीं रहेगा,
वक़्त एक दिन बदल जाएगा.

हरदम कहाँ,
अंधेरा होता है.
हर रात के बाद,
सवेरा होता है.
फैलेगा चारों ओर उजाला,
जब ज्ञान का दीया जल जाएगा.

बदलाव के लिए तू,
कमर कस ले आज.
कल तेरी मुट्ठी में होगा,
कामयाबी का ताज.
मत कर आराम,चलता चल,
सबसे आगे निकल जाएगा.

गिरने पे तेरे हँसेगा जग,
कहेगा तुम्हें जोकर.
बैठ न जाना ऐसे में,
तुम कहीं निराश होकर.
मंजिल तक पहुँचेगा वही,
जो गिरके संभल जाएगा.

समय के आगे,
हर आदमी झुकेगा.
ये न रुका है,
और न कभी रुकेगा.
अभी सुबह हुई,होगी दोपहर,
धीरे-धीरे दिन भी ढल जाएगा.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||मेरे मीत,मत हो भयभीत||

मेरे मीत.
हार से मत हो भयभीत.

आज जीवित हो,
भले कल तक थे मृत.
अपनी विफलताओं को,
कर दे विस्मृत.

भूल जा अपना दुखद अतीत.

रवि कब नहीं निकला?
कभी छोड़ा नदी ने बहना?
थमना तो मृत्यु है,
जीवन है सतत चलते रहना.

न सोच क्या वर्षा,घाम,शीत.

करनी है तुम्हें,
एक नए जगत की सृष्टि.
न भटकना,रखना सदैव
अपने लक्ष्य पर दृष्टि.

अवश्य होगी तुम्हारी जीत.

खुद को
कसौटियों पे कसते रहो.
दुख हो सुख हो,
हमेशा हँसते रहो.

गाओ नित खुशियों के गीत.

जगत मंच पर,
अपनी भूमिका निभाना है.
नाटक खत्म कि इक दिन,
सबको लौट जाना है.

यही दुनिया की रीत.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||पूनि होयदे||

अघन महीना,पूनि दिन.
उदलिसे पंडरी जोन सुँदरी.
कोठार ने बिकरलो आसे धान.
बैला मन के हाँकुन,
हुता बेलन किंजरालो मालू.
झड़ली धान तेबे
आपलो बायले-पीलामन संग,
फोपड़ुन-सकलुन,गुचालो पैरा मन के.
खिंडिक पैरा के जराउन,
मालू बनालो करया मस.
आउर धान दीबा चो एक भोंआर,
झीकलो डांड.
बलुन कि चोरुन नी नेओत,
डुमा मन हुनचो धान के.
आउर बनालो पैरा के अलटुन,
एक झन डोकरा.
हुन करुआय राखा अदाँय,
धान के रात भर कोठार ने.
पाछे मंगलदई भात आनली,
पूरे दिली हुन भात डोकरा के.
फेर जमाय झन संगे बसुन खादला,
भात-साग हुनि लगे.
काय मंजा साग,
कोचई संग झिर्रा टोपा.
पीला मन सवला,
ओड़ुन साल के.हुनि आगि धड़ी.
आमा रुक खाले बसलासत
मालू अरु मंगलदई.
आगि लुठा डिगडिगलिसे.
मंगलदई बलली-
"कमउन्से कितरो साल ले,
फेर छेरी चो लेंड़ी चारेच अंगुर.
आमचो जीवना ने बले केबेय पुनि होयदे?"

"पुनी होयदे रे होयदे.
आमि पीलामन के इसकूल पठाउनसे.
आपुन भुके रहुन हुन मनके खोआनसे.
दखसे एइ मन काली गियान पाउन,
आमचो जीवना ने उजर भरदे.
आउर अछा काम करुन,
आपलो नाव के अम्मर करदे."
मालू बिस्वास करुन बललो.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
(फोटो:-इन्टरनेट से)

||शान्ति||

औरों की तरह,
मैं भी चाहता था उसे.
बड़ी तीव्र इच्छा थी,
उसे पाने की.
कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढा उसे.
मन्दिरों के चक्कर काटे.
देवों के आगे,
सिर झुकाया.
कि प्राप्त हो जाए,
वो मुझे एक बार.
फिर आनन्द से,
भर जाएगा मेरा संसार.
पर भटकना मेरा,
उसकी खोज में यत्र-तत्र,
नहीं हुआ सार्थक.
किन्तु जगत को विस्मृत कर,
नेत्र बन्द करके और साधकर-
चञ्चल मन अश्व को.
जैसे ही झाँका,मैंने अपने भीतर.
मुझे वो(शान्ति)मिल गई.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||चलते रहो||

कभी तो मिलेगी मंज़िल चलते रहो.
चाहे जो भी हो हासिल चलते रहो.

मतलबी जहाँ में न कर किसी पे यकीं,
ताक में खड़ा है कातिल चलते रहो.

हार से लेते रहो कोई न कोई सबक,
बन जाओगे काबिल चलते रहो.

मेहनत कर,और रख खुद पे भरोसा,
कुछ भी नहीं है मुश्किल चलते रहो.

तुम पे आज हँसती है तो हँसने दो,
कल सलाम करेगी महफिल चलते रहो.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||ग्रामीण जनजीवन का हिस्सा:दातुन||

रोज सुबह उठने के बाद मुँह धोया जाता है व दाँतों की सफाई की जाती है.इसके लिए ब्रश,टूथपेस्ट व जीभी का उपयोग किया जाता है.जो न केवल पर्यारण को नुकसान पहुचाते हैं,बल्कि टूथपेस्ट में मिलाए गए कैमिकल्स भी मसूड़ों के लिए तकलीफदेह साबित होते हैं.पर गाँवों में आज भी दाँतों की सफाई के लिए दातुन ही उपयोग में लाया जाता है.

गाँवों में पेड़-पौधों की अधिकता के कारण दातुन बड़ी आसानी के उपलब्ध हो जाता है.पेड़ की टहनियों से प्राप्त ये दातौन ऊंगलियों के बराबर पतले व 20-30 से.मी. तक लम्बे होते हैं.दातुन करने के लिए अलग से टूथपेस्ट की जरूरत नहीं होती.केवल दाँतों से कूची बनाकर दाँत साफ कर लिए जाते हैं.कुछ लोग दातुन के साथ नमक व कोयले का उपयोग दंत मंजन के रूप में करते हैं.दातुन करने के बाद इन्हें बीच से फाड़कर दो भाग कर लिया जाता है तथा उन्हें बीच से यू आकार में मोड़कर व जीभ साफ कर फेंक दिया जाता है. प्राय: साल,करंज,नीम,कहुआ(अर्जुन),महुआ,साजा,बेर,इमली,छींद,बबूल आदि के दातौन उपयोग में लाए जाते हैं.कड़वे व कसैला स्वाद वाला दातुन दाँतों के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है.दातुन का रस लार के साथ शरीर के भीतर जाकर हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.दातुन सूख न जाएँ इसलिए उन्हें पानी में डुबाकर रखा जाता है.गाँव की औरतें जब भी जंगल जाती हैं तब लकड़ी,पान और दातुन अपने साथ जरूर लाती हैं.कई औरतें शहर में दातुन विक्रय कर आय भी अर्जित करती हैं.
इस प्रकार दातुन ग्रामीण जनजीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है.यह एकदम सस्ता और पर्यावरणहितैषी है.
गाँव में असुविधाओं के बीच रहना कइयों के लिए सजा है.पर वृक्षों की शीतल छाँव में जीने का अपना एक  अलग ही मजा है.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||पूनी दिन||

कारतिक मइना,
काय मंजा पूनी दिन.
उदलिसे पंडरी जोन उपरे.
अरु घसरायसे मंजपुर ने,
चांदी असन छकछका उजुर.
उजुर ने सब दखा दयेसे.
अमली-आमा,सींद-सलफी,
बाँवोस-सिवना,महू-सरगी.
जमाय ठीया आसत,ओग्गाय.
होलासत बे हरिक आज,
रसया उजुर ने नहाउन.
नंदी-तरई चो पानी ने बले,
लहर संग नाचेसे जोन सुँदरी.
सीतकार चो बेरा.
लोग बसलासत कोठार ने,
मंजी आइग के धरउन.
उचलासत जोंधरा,
गोटयासत सुक-दुक चो गोट के.
सुरता करसत आगे बेरा चो.
पूरे चो गोटुल चो.
पूरे चो सियान मन चो कीरति चो.
पूरे चो धरम अरु सतजुग चो.
बलसत बेर-जोन तो केबय नी पलटला.
मान्तर मनुक आज कितरो पलटलो.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

||धान मिसाई||

छत्तीसगढ़ में धान,मक्का,ज्वार,कोदो-कुटकी,मंडिया,रामतिल,तिल,उड़द,मूँग,कुलथी
जैसे अनाज,दलहन व तिलहन फसलें उगाई जातीं हैं.
धान प्रमुख फसल होने के कारण यह धान का कटोरा कहलाता है.आजकल धान की कटाई के बाद धान मिसाई का काम जोरों पर है. धान मिसाई के कई तरीके यहाँ प्रचलित हैं.

आइए कुछ तरीकों के बारे में जानें.

1.आदमी के पैरों से:-पकने की अवधि के आधार पर धान दो तरह के होते हैं.लम्बी अवधि में तैयार होने वाला धान माई व जल्दी पकने वाला धान तुरिया कहलाता है.तुरिया धान मैदानी इलाकों में व बहुत कम मात्रा में बोया जाता है.बस्तर में इसकी मिसाई पैरों से ही कर ली जाती है.

2.दौरी फाँदना:-कोठार के बीचों बीच लकड़ी का एक खंभा होता है.खंभे से रस्सी द्वारा तीन-चार बैलों को जोड़कर धान के उपर चारों ओर घुमाया जाता है. धान के अलग हो जाने तक यह प्रक्रिया चलती रहती है.

3.बेलन द्वारा:-कोठार में धान की बालियों को गोलाई में बिखेर दिया जाता है.फिर बेलन की सहायता से धान की मिजाई की जाती है.बैलों को पीछे से या बेलन के ऊपर बैठकर हाँका जाता है.धान अलग हो जाने तक फसल को दो-तीन उलट-पलटकर उस पर बेलन चलाया जाता है.

4.ट्रैक्टर द्वारा़:-ट्रैक्टर से की जाने वाली मिसाई भी बिल्कुल बेलन की मिसाई के समान है क्योंकि इसमें भी वही क्रम अपनाना होता है.अंतर बस इतना है कि इससे कम समय में उसकी अपेक्षा अधिक काम हो जाता है.

5.थ्रैशर से:-मशीनों ने आदमी के जीवन को एकदम अासान बना दिया है.अब धान की मिसाई के लिए लोग थ्रैशर मशीन का ही उपयोग करते हैं.यह सबसे कम समय लेता है.इसमें चावलयुक्त व चावलरहित धान स्वत: अलग हो जाते हैं.जबकि अन्य तरीकों में धान को सूप या पंखे की सहायता से अलग करने की विधि अपनानी पड़ती है.

आज वैज्ञानिक तरीकों ने मनुष्य की जीवन शैली को बदल दिया है.आज आदमी के पास समय ही समय है.पर ये उसी पर निर्भर है कि वह उस समय का सदुपयोग करे या दुरुपयोग.

✍ अशोक नेताम "बस्तरिया"

||मय बोट दएँदे||

मय बलते रहें कि
एसु बोट नी दँयें.
मान्तर अदाँय,
मँय बोट देउ चे आँय.
बोट दिन लाइन ने ठाड़े रहुन,
अरु धरुन बोटर कारड के.
मय दखेंदे बाट ,
मचो बोट देतो पारी अमरतो चो.

हुसने,
जसन बाट दखलें मैं तुचो,
मचो सकत भर.

बोट अमरलो ने जसन,
नेतामन छोलसत बड़े-बड़े.
असन करेंदे,उसन करेंदे.
जे माँगासे,हुन दँयदें.
आउर जीतने ने हुनिमन,
मुरुम सड़क ने धुड़का उड़ाते,
टींट-टींट करते जासत,
झाकुन दखत बले नहीं.
पूछत नहीं
कि कोन जिवला-कोन मरला
हुनि नेता असन तुय बले,
मके दिलीस धोका.
दखाउन रंग-रंग चो सपना.

मके छांडुन एकलाय,
होउन गेलिस आउर चो.
तुय काय जानिस आज कितरो,
चिपा होयसे मके दार-चाउर चो.
हाय तुके मय नी चिनलें.
तुचो असन लबरा के पतयालें.

मचो एक झन चो,
बोट नी दीलो ने,
राजा बनुन जायदे,
तुचो असन चो कोनी ठग.
आउर पाँच साल चुहकेदे,
गरीब जनता चो रकत के,
पानी चो जड़ु असन.

हुनि ने बारा तारिक ने,
एक दिन काजे,
मचो जमाय काम के छाँडुन,
मय बोट देउक जायँदें.
बोटिंग ठान ने जाउन, ,
मसीन चो बटन के चेपाँयदे.
आउर अंडकी चो सिहई के,
सबके हरिक होउन मय दखाँयदे.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

||वही मनुष्य है||

विपत्तियाँ परीक्षा लेती हैं सबकी,
विकट परिस्थियों में भी जो धीर धरे.
वही मनुष्य है.

रंग रूप जैसा भी हो सब संतान हैं ईश्वर की.
सबसे समता का व्यवहार करे.
वही मनुष्य है.

क्यों न मृत्यु ही सामने आकर खड़ी हो जाए,
धर्म और सत्य के पथ से न टरे.
वही मनुष्य है.

स्वयं हँसता रहे सदा जो,
और सबके जीवन में प्रसन्नता के रंग भरे.
वही मनुष्य है.

मात-पिता की करे सेवा.
अपने जन्मभूमि के सम्मान के लिए जिये-मरे.
वही मनुष्य है.

परमपिता परमात्मा को जो देखे सबके भीतर.
हिंसा-छल-कपट से हमेशा रहे परे.
वही मनुष्य है.

अपनी पीड़ा पर अश्रु तो सभी बहाते हैं,
पर जो औरों की पीड़ा हरे.
वही मनुष्य है.

✍अशोक कुमार नेताम

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...