गुरुवार, 28 मार्च 2019

//तुमपे किताब लिखूँ//

चेहरे को कँवल-आंखों को शराब लिखूँ.
सोचता हूँ तुमपे एक किताब लिखूँ.
दिल को काग़ज,ख़यालों को बना लूँ स्याही,
फिर चर्चा-ए-हुस्न तेरा,बेहिसाब लिखूँ.
चेहरे पे इतना नूर,तू इनसान है कि हूर?
मैं हक़ीकत कहूँ तुझे कि ख्वाब लिखूँ.
कोई गर पूछे कि दिखती कैसी है वो,
तो अपने जवाब में,मैं लाजवाब लिखूँ.
मुल्कों में हिंद,महलों में ताज,
और फूलों में तुझे मैं गुलाब लिखूँ.
बेघर के लिए घर-राही के लिए मंज़िल,
प्यासे के लिए तुझे मैं आब लिखूँ.
तेरी खातिर भूल जाऊँ ख़ुदा की बंदगी,
सुबह-शाम तुझे आदाब लिखूँ.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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