रास्ते पर खड़े बच्चों को देख मेैंने बाइक रोक दी.
मेरे रुकते ही हाइवे पर 8-10 साल के 5 लड़के-लड़कियों ने जिनके हाथों में चार,कुसुम,जामुन और छिन्द से भरे दोने थे,मुझे घेर लिया.वे बच्चे मासूम सूरत-साँवली देह और कुछ जगहों से फटे-मैले कपड़े पहने हुए थे.दो लड़कों ने स्कूल ड्रेस पहन रखा था.
मैंने एक जामुन का एक दोना ले लिया.
"दस रुपया दोना."-उन्होंने दाम बताया.
20 रुपये का नोट देकर मैं उनसे रुपये लौटाने की बाट देखने लगा.पर उनके पास चिल्लर नहीं थे.पैसे वापसी की आस में मैं वहीं ठहर गया.लगभग 10 मिनट बाद वहीं एक कार भी आकर रुकी.
कार से एक नौजवान उतरा.
उसने छिन्द के पाँच दोने खरीद लिए और पाँच सौ रुपये का एक नोट बच्चों की तरफ बढ़ाया.
उसने बच्चों से कहा-"बेटे तुम्हारे पास चिल्लर नहीं है.कोई बात नहीं.मैं तुमसे एक प्रश्न पूछता हूँ.यदि मुझे सही जवाब मिला तो सारे रुपये तुम्हारे."
"पूछिए."बच्चों की आखें खुशी से चमक उठीं.
"मैंने 50 रुपये के छिन्द खरीदे और 500 रुपये का नोट दिया.बताओ मुझे कितने रुपये वापस मिलेंगे?"
"चार सौ पचास." सबने एक साथ जवाब दिया.
अब उनके मुख पर विजयी मुस्कान थी.
"अब सारे रुपये तुम्हारे.इसे चिल्लर कर आपस में बराबर बाँट लेना.माता-पिता अगर शराब पीते हैं तो उन्हें रुपये बिल्कुल भी मत देना."वह बोला.
"जी सर."बच्चे खुशी से चिल्लाए.
"आपने ऐसा क्यों किया?-मैंने पूछा.
"क्योंकि मैं इनकी गरीबी का दर्द समझ सकता हूँ.अपनी परिश्रम से अर्जित धन से जीवन यापन करने वाले ये लोग कभी भी अपना ईमान नहीं बेचते.अभाव में जीना क्या है,ये मैं अच्छी तरह जानता हूँ.क्योंकि मैंने भी बचपन में इनके तरह का ही जीवन जिया है.इनके बीच रहते हुए आज मैं अपना आर्थिक स्तर सुधार पाया हूँ.ऐसे में मैंने इनके चेहरे पर थोड़ी सी खुशी लाकर बहुत बड़ा तो नहीं पर दिल को तसल्ली मिलने लायक काम तो जरूर किया है."
"आपका नाम क्या है?शायद वर्तमान में आप किसी बहुत बड़े पद पर हैं?-मैंने पूछा.
"मैं ये सब नाम के लिए नहीं करता.इसलिए नाम तो मैं नहीं बताउँगा.और रही बात पद की,तो कोई भी व्यक्ति पद से नहीं बल्कि अपने कर्मों से बड़ा होता है.अच्छा दोस्त चलता हूँ."
कहकर वह कार स्टार्ट कर आगे निकल गया.
मैंने बाकी बचे 10 रुपये से छिन्द का एक और दोना खरीद लिया और बाइक स्टार्ट कर आगे बढ़ गया.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"