बुधवार, 27 जून 2018

||मेरी माँ||

कितनी अच्छी,
कितनी प्यारी मेरी माँ.
किसी भी मुश्किल से,
न हारी मेरी माँ.
वर्षा,शीत-घाम से,
मुझे सदा बचाया.
न लगे नज़र कभी,
काजल का टीका लगाया.
कभी पीड़ा हुई मुझे,
तो आँसू उनके भी बहे.
मेरी खातिर उसने,
क्या-क्या दुख न  सहे.
मुझ पर अपना,
सब कुछ वारी मेरी माँ.
कितनी अच्छी,
कितनी प्यारी मेरी माँ.
किसी भी मुश्किल से,
न हारी मेरी माँ.
जब वो जाती थी,
गाँव के मंडई-हाट.
लाएगी खाजा,
मैं देखता था उनकी बाट.
आलू कांदा,चना-लाई,
वो हाट से लाया करती थी.
और अपने हाथों से,
वह मुझे खिलाया करती थी.
सीधी-सादी,सरल,
भोली बेचारी मेरी माँ.
कितनी अच्छी,
कितनी प्यारी मेरी माँ.
किसी भी मुश्किल से,
न हारी मेरी माँ.
मुझे देखकर जब,
तेरा चेहरा खुशी से मिल जाता है.
माँ सच कहूँ उसी वक्त,
मुझे सब कुछ मिल जाता है.
क्यूँ पढ़ूँ मैं गीता,
बाइबिल या कुरान को.
तेरे रूप में पाया है जब,
मैंने साक्षात भगवान को.
एक सबल,परिश्रमी,
और सक्षम नारी मेरी माँ.
कितनी अच्छी,
कितनी प्यारी मेरी माँ.
किसी भी मुश्किल से,
न हारी मेरी माँ.
✍ अशोक नेताम"बस्तरिया"

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