बुधवार, 27 जून 2018

||सुख का आधार||

बहुत पुरानी बात है.किसी देश का राजा एक निर्धन  के घर पहुँचा.

"आइए राजन!हमारा सौभाग्य कि आपके पाँव हमारे झोपड़ी पर पड़े."

''मैं आपसे पारिवारिक जीवन में सुख का रहस्य जानने आया हूँ."

ठीक है महाराज.जो मुझे ज्ञात है मैं अवश्य कहूँगा.पर पहले आपको  इस निर्धन की कुटिया में हमारे साथ भोजन करना पड़ेगा."

कंगलू आदिवासी है.वनों  से उनका गहरा नाता है.जहाँ वह अपनी पत्नी और लगभग डेढ़ साल की के बेटे के साथ रहता है.वे दिन भर जंगल की खाक छानते हैं और फल-फूल-पान -लकड़ी आदि संग्रह कर जीवन यापन करते हैं.झोपड़ी में भी उनका जीवन आनन्दमय था. राजा बड़ा आश्चर्यचकित था कि अभावग्रस्त होने के बाद भी इनका जीवन किस प्रकार सुखमय है.और उसके पास जैसे सब कुछ होते हुए भी मानो कुछ भी नहीं है.

मटके के जल से हाथ धोकर महाराज कमलू के साथ चटाई पर बैठ गए.

पत्नी ने साल के पत्तों से बने दोने पत्तलों में भोजन परोसा.सहजन की भाजी बनी थी.साग कैसी बनी है? खाने के दौरान पत्नी के पूछने पर कमलू बोला-बहुत ही स्वादिष्ट बनी है.पर राजा को भोजन थोड़ा अरुचिकर प्रतीत हुअा.

खाना खाने बाद विश्राम करते हुए राजा ने कंगलू से के आगे अपना प्रश्न दोहराया.

"महाराज आपको भोजन पसन्द आया?"

"बढ़िया थी बस थोड़ी नमक कम रह गई.आपने फिर भी भोजन की प्रशंसा क्यों की?"

"मैं जानता हूँ कि मेरी पत्नी भी सुबह से रात तक व्यस्त रहती है.ऐसे में वह साग में नमक लगाना भूल जाए और मैं उनसे इस बात पर लड़ाई करुँ ये उचित नहीं है.मेरी पत्नी ने मेरी आर्थिक स्थिति जानते हुए कभी भी अपनी जिद मुझ पर नहीं थोपी.कभी कभी हम पेज-पसिया आदि पीकर ही गुजारा कर लेते है.हे महाराज मेरे विचार से दाम्पत्य जीवन के सुख का आधार है प्रेम,संतोष और एक दूसरे पर विश्वास.ये हैं तो जीवन जैसे स्वर्ग है."

राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

(तस्वीर:-इन्टरनेट से)

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