बुधवार, 27 जून 2018

||गाँव का जीवन||

अभी गाँव में रहते हुए शुद्ध देशी-ग्रामीण जीवन जीते हुए अत्यंत आनन्द का अनुभव कर रहा हूँ.अपनी माटी और अपने लोगों के साथ रहने का सुख संभवत: संसार का सबसे बड़ा सुख है.गाँव में करंज का दातौन करने और प्रकृति प्रदत्त दोने पत्तलों में खाने का अपना मजा है.आजकल माँ के हाथों से बने मंडिया पेज,कोइलार भाजी,चेंच भाजी,बेसन अम्मट,रखिया बरी,चार की चिरौंजी जैसे स्थानीय चीजों का भरपूर मजा ले रहा हूँ.बारिश के बाद जंगल में "बोड़ा" के आने का संदेश भी मिला है.
प्रात: जागरण के साथ ही पंछियों के मधुर कलरव से मन प्रसन्न हो जाता है.और गौरेया के तो क्या कहने,ये दिन भर हमारे घर के आँगन में चहकते-फुदकते रहते हैं.साल वनों के सान्निध्य में रहने को मैं अपना परम सौभाग्य समझता हूँ.इन वनों का सौंदर्य अप्रतिम है.
हम लोग कितने खुशनसीब हैं कि जीते जी हमें पेड़ों की छाया तो मिलती ही है बल्कि मौत के बाद भी उनके छाँव की मिट्टी नसीब होती है.

अशोक नेताम "बस्तरिया"

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...