बुधवार, 27 जून 2018

||प्रकृति के उपहार||

वर्षाकाल हर किसी के लिए अनगिनत खुशियाँ लेकर आता है.खेती-किसानी करने वालों या गाँववासियों के लिए तो बरसात का मौसम और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.आषाढ़ महीने में पहली बारिश के साथ ही धरती हरित वस्त्र धारण कर मुस्कराने लगती है.बेहतर फसल की आस में कृषक अपना सर्वस्व झोंक देता है.इस समय ऐसे कई नए पौधे व घास जंगलो,खेतों व बाड़ियों में स्वत: ही उग आते हैं,जिनसे स्वादिष्ट शाक-भाजी बनाई जाती है.यदि आप गाँव में हैं तो बगैर  1रुपया भी खर्च किए कई साग भाजियों के जायके का लुत्फ उठा सकते हैं.
आइए हमारे आस-पास में दिखने वाले कुछ ऐसी ही वनस्पतियों पर नजर डालें....
1.चाटी भाजी:-ये प्राय:जुते हुए खेतों में उगकर फैल जाते हैं.इसकी पत्तियाँ चींटी के समान ही बहुत ही छोटी-छोटी और पंक्तिबद्ध होती हैं,इसलिए इस चाटी भाजी कहा जाता है.इसके पत्तों को डण्ठलसहित तोड़ लिया जाता है.इसे उबालकर अलग कर लिया जाता है जिससे इसका कसैलापन दूर हो जाता है.प्राय: इसे दाल के साथ पकाया जाता है.
2.चरोटा भाजी:-चरोटा भाजी से शायद ही कोई अनभिज्ञ हो.आजकल ये सर्वत्र उगी हुई नज़र आती है.इसकी कोमल पत्तियों को उबालकर और पानी अलग करके फिर लहसुन-सूखी मिर्च का तड़का लगाकर क्या स्वादिष्ट सूखा साग बनाया जाता है.साबुत उड़द के साथ ये भाजी तो और भी मजेदार बन जाती है.   
3.केना भाजी:-केना कोमल पत्तियाँ भी आजकल लहरा उठी है.ये एक घास ही है,क्योंकि दूब (घास)की तरह ही इसमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर गाँठे होती हैं.इसके बारे में मैंने अपनी माँ से ही जाना है.इसकी पत्तियों को दाल के साथ पकाया जाता है.
4.गुड़काड़ भाजी:-गुड़काड़ भाजी खेतों में या बाड़ी में पनपती हैं.शुरु में इसका रंग हरा होता है परिपक्व होकर ये थोड़ी लालिमा धारण कर लेती है.इसकी पत्तियों से औरतें बड़ी स्वादिष्ट साग बनाती हैं.इसका स्वाद लगभग चेंच भाजी की तरह होता है.
5.खेड़ा(जड़ी भाजी):-इसे प्राय: जरी भाजी के नाम से जाना जाता है.बस्तर में यह खेड़ा भाजी कहलाता है.ये अपने आप उग आता है.इसके बीज दुकानों में भी मिल जाते हैं.इसकी पत्तों से सब्जी बनती है.साथ ही इसके तने का उपयोग भी शाक बनाने में किया जाता है.इसके तने का "अम्मट" भी बड़ा ही स्वादिष्ट होता है.
6.सिलियारी भाजी:-बस्तर में सिलियारी भाजी भी बड़े चाव से खाई जाती है.इसके कोमल पत्तों को दाल के साथ पकाकर सब्जी बनाई जाती है.
  इस तरह की और भी कई वनस्पतियाँ हैं,जिनकी खुशबू से रसोईघर महक उठता है.
प्रकृति हमारी माँ है.उसके स्नेह रस से हमारा जीवन सिंचित है.प्रकृति के उपकारों को स्मरण रखते हुए हमें उसे सुन्दर-संतुलित बनाए रखने का हसंभव प्रयास करना चाहिए.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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