अमलतास का वृक्ष सुनहरे फूलों से लदा हुआ था।उनकी शाखाओं में एक भी पत्ती नहीं थी,पर वह मुस्कुरा रहा था।पास खड़े दूसरे वृक्ष ने अमलतास से पूछा-"इस भीषण गर्मी में जबकि तुम्हारे पास हरे-हरे पत्ते भी नहीं है जिनकी सहायता से पेड़ अपना भोजन बनाते हैं,तुम इतने प्रसन्न हो।कैसे?"
अमलतास ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया-"मैंने अपने पत्तों का त्याग कर दिया और सुंदर पीले फूल धारण कर लिया।क्योंकि कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है।जब मुझे खिला देखकर लोग मुस्कुराते हैं।तो उन्हें देखकर मैं भी अपने गम भूल जाता हूँ,और हमेशा मुस्कुराता हूँ.औरों की खुशी में खुश होना और किसी के दुख से दुखी होना यही इंसानियत है।"
(संलग्न फोटो इंटरनेट से)
✍ अशोक नेताम "बस्तरिया"
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