प्रकृति ने दिए हमको,
कई तरह के उपहार.
पर हमने किया सदा,
उसका ही अपकार.
पर्यावरण को झोंक दिया,
हमने विकास के दाँव में.
मारी कुल्हाड़ी जानबूझके,
हमने अपने ही पाँव में.
कोई बड़ी समस्या,
खड़ी न हो जाय कहीं आगे.
न सोए रहें हम यूँ ही,
अपनी गहन निद्रा से जागें.
प्रकृति पुत्र होने का,
हम अपना फर्ज निभाएँ.
आओ आज कम से कम,
एक पेड़ तो जरूर लगाएँ.
कई तरह के उपहार.
पर हमने किया सदा,
उसका ही अपकार.
पर्यावरण को झोंक दिया,
हमने विकास के दाँव में.
मारी कुल्हाड़ी जानबूझके,
हमने अपने ही पाँव में.
कोई बड़ी समस्या,
खड़ी न हो जाय कहीं आगे.
न सोए रहें हम यूँ ही,
अपनी गहन निद्रा से जागें.
प्रकृति पुत्र होने का,
हम अपना फर्ज निभाएँ.
आओ आज कम से कम,
एक पेड़ तो जरूर लगाएँ.
✍अशोक नेताम
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