मेघों से घिरा रवि उदास हुआ.
दिन में रात्रि का आभास हुआ.
आकाश पर घिर आए काले घन.
डोलने लगे वृक्ष ऐसी चली पवन.
चमक रही चंचल चपला प्रतिक्षण.
गरजे मेघ हो रहा ज्यों भीषण रण.
अंबर से बरसे जल बिंदुओं के तीर.
थी तप्त,हुई दूर आज धरा की पीर.
जल से भर गए हर खेत नदी-नाले ताल.
मत्स्याखेट में मग्न धीवर फेंकते अपने जाल.
हो गए आरंभ मेंढक-झींगुर के मीठे गान.
ईश्वर की बरसी कृपा हर्षित हुआ किसान.
✍अशोक नेताम
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