बुधवार, 27 जून 2018

||पालनार का रास्ता||

सच तुम्हारी सुंदरता से,
मैं पड़ गया था धोखे में।
काली ही सही मगर,
कितनी चिकनी थी तुम्हारी देह।
तुम्हारी खूबसूरती पर चार चाँद लगाते थे,
आस-पास खड़े कुसुम,आम,जामुन के पेड़।
तुमसे होकर बहता था चुपचाप,
सफेद अर्जुनवृक्षों के जड़ों को छूता हुआ,
बिल्कुल बर्फ की तरह ठंडा
और मटमैला मदाडी़ नाला.
जिसकी जल लहरियों संग खेलती थीं,
पेड़ों की के बीच से आती हुई
सूरज की सुनहरी किरणें.
तुम से होकर आती थीं
शहरों तक आदिवासी औरतें-बहनें,
शहर में काम करने,
लकडियाँ बेचने या मंडिया पिसवाने।
तुमसे ही होकर जाते थे शिक्षक,
अंदरूनी गांवों में,ज्ञान का प्रकाश फैलाने।
पर किसे पता था कि तुमने अपने सीने में,
मौत का सामान छुपा रखा था।
इससे पहले कि कोई संभल पाता,
सब कुछ ख़त्म हो चुका था।
और अब,जब मैं जान चुका हूं तुम्हारी हकीकत,
मेरे दिल में तुम्हारे लिए,
वो पहले जैसा प्यार कैसे जन्मेगा?
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
(तस्वीरें इन्टरनेट से)

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