बुधवार, 27 जून 2018

||मण्डई||

गाँव मण्डई की कल्पना करते ही मन एक नए लोक में पहुँच जाता है.देवी-देवता आरूढ़ फूलों से से सज्जित पुजारी-सिरहा,डोलियाँ,आंगा,लाट,छत्र के अलावा कई तरह की दुकानें,झूले,रंग-बिरंगे गुब्बारे-कपड़े,खिलौने आदि मन मस्तिष्क में अनायास ही प्रकट हो जाते हैं.
पुल के चबूतरे पर नए कपड़े पहने कुछ बच्चे लाइन से बैठे थे.तीन बच्चों के गलें में सीटियाँ टँगी थी.एक वच्चे के हाथ में खिलौना मगरमच्छ व कुरकुरे का पैकेट था.उन्हें देखते ही मझे ये आभास हो गया कि निकट के गाँव में मण्डई हो रहा है.
हमारे पहुँचते तक मण्डई अपने अंतिम पड़ाव पर था.
यहाँ(दन्तेवाड़ा जिला)की मण्डई और हमारे गाँव के आस पास(कोण्डागाँव जिला) होने वाली मण्डई में मुझे कुछ भिन्नताएँ नजर आती हैं.
1.यहाँ देवी-देवताओं और परम्पराओं का इतना अधिक महत्व है कि बहुत कम ही दुकानें सजतीं हैं.हालाँकि हमारे आस-पास के मेलों में भी देवी-देवता आकर्षण के केन्द्र होते हैं पर लोग मेले में आए नई-नई वस्तुओं की ओर अधिक आकर्षित होते हैं.
2..यहाँ युवतियों पर भी देवियाँ आरूढ़ होती हैं.
3.यहाँ मण्डई में ढोल वाद्य यंत्रों के साथ हाथ में हाथ लेकर सैकड़ों की संख्या में युवक-युवतियों के नाचने की परंपरा है.
4.यहाँ लोग मण्डई में सगे संबंधियों मित्रों के साथ बैठकर गोरगा(सल्फी) का सेवन करते हैं.उनके बच्चे भी इसमें शामिल होते हैं जोकि बहुत दुखद है
वैसे हमारा जीवन भी एक मण्डई यानी कि मेला ही है,जिसमें हम कर्म रूपी व्यापार कर रहे हैं.कभी लाभ होता है और कभी हानि भी हो जाती है.जो किसी नफा-नुकसान की परवाह किए बगैर अपना कार्य पूरी लगन व ईमानदारी से करता है वही एक दिन एक सफल व्यक्ति सिद्ध होता है.

✍ अशोक नेताम

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...