गुरुवार, 21 नवंबर 2019

नाम बड़ा या काम?

शांति का पति बहुत मेहनती और चतुर था.वह उनके साथ बहुत खुश थी.पर उसे अपने पति का नाम बिल्कुल पसंद नहीं था.उनके पति का नाम था बुद्धूराम.शांति ने कई बार उनसे कहा कि वो अपना नाम बदल दें,पर हर बार बुद्धूराम ने यही जवाब दिया कि आदमी नाम से नहीं अपने काम से पहचाना जाता है.इसलिए मेरा नाम वही रहेगा,जो मेरे माता-पिता ने रखा है.एक दिन तो शांति नाम बदलने की जिद पर अड़ गई,पर उसके पति बुद्धूराम भी टस से मस नहीं हुआ.बड़े गुस्से में आकर शांति मायके की ओर निकल गई.

रास्ते में शांति ने देखा कि एक आदमी जरूरतमंदों को धन बाँट रहा था.लोगों की भीड़ लगी हुई थी.सभी उस दानवीर की जय-जयकार कर रहे थे.शांति ने एक से पूछा-"क्या हो रहा है?"

जवाब मिला-"कुछ नहीं बहन सेठ फ़कीरचंद बड़े नेक आदमी हैं,गरीबों को धन-दौलत और कपड़ों का दान कर रहे हैं."

"दानदाता और नाम फ़कीरचंद."कुछ सोचती हुई शांति आगे बढ़ गई.

कुछ दूर जाने पर उसे एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी दिखी.शांति ने पूछा -"क्या हुआ भैया ये पंचायत किसलिए?'

"क्या कहें बहन!कोमलचंद ने शेरसिंह की पिटाई कर दी.उसी की सुलह के लिए पंचायत बैठी है."एक ने उत्तर दिया.

''कोमलचंद ने शेरसिंह की पिटाई कर दी?"आश्चर्यचकित शांति आगे बढ़ गई.

आगे उसने एक औरत को आते देखा,जो अपने सिर पर घास का बोझा उठाए हुए थी.
शांति ने उससे भी पूछ लिया- बहन आपका नाम क्या है?और ये घास का गट्ठा लेकर आप कहाँ चल दीं?"

"मेरा नाम राजरानी है बहन,और मैं घास बेचने जा रही हूँ."उस औरत ने हँसकर जवाब दिया.

जवाब सुनकर शांति फिर से आश्चर्यचकित रह गई.वह  सोचने लगी-फ़कीरचंद,कोमचलचंद,शेरसिंह,राजरानी इन सबके नाम तो उनके गुणों से एकदम अलग हैं.यानी आदमी नाम से नहीं अपने काम से बड़ा होता है.मेरे पति का नाम चाहे कुछ भी हो पर हैं तो वे बड़े बुद्धिमान और परिश्रमी.

उसे अपने पति के साथ किए बुरे बर्ताव पर बहुत पछतावा होने लगा.शाम ढलने को आई थी,वह बड़े तेज कदमों से अपने घर की ओर लौट गई.

(यह कहानी बचपन में स्कूल में पढ़ाई गई कहानी "नाम बड़ा या काम" पर आधारित है)

-अशोक कुमार नेताम 

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