मुझे निशा से प्रेम नहीं.
क्योंकि डर है उसका आलिंगन,
मुझे अंधा न कर दे.
बिजली पर भी विश्वास नहीं.
तूफान में वह भी छोड़कर चली जाती है.
कल से आज तक एक वो ही तो है,
जिसने मेरा साथ नहीं छोड़ा.
हर परिस्थिति में मेरा साथ दिया.
अंधकार में मेरा पथ आलोकित किया.
पर बदले में मुझसे कुछ भी नहीं लिया.
आज भी हमारे आँगन में,
जल रहा है चुपचाप वही दीया.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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