सोमवार, 27 अप्रैल 2020

सिवना

#सिवना


खम्हार का पेड़ बस्तर में सिवना के नाम से जाना जाता है.गोंडी में इसका नाम "कुड़सी" है.इसे जहाँ भी रोप दीजिए बड़ी सरलता से और तेजी से वृद्धि करने लगता है.8-10 साल में यह विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लेता है.यह इमारती लकड़ी के रूप में प्रयुक्त होता है.इसकी हल्की होती है इसलिए बस्तर में मंदरी आदि निर्माण में भी प्राय: इसी लकड़ी का प्रयोग होता है.
मार्च   महीने में इसके पत्ते गिर जाते हैं इसमें हलके पीले-पीले फूल आ आ जाते हैं.अप्रैल में नए पत्तों के साथ ही डालियाँ फलों से लद जाती हैं.हवा के झोंकों से कच्चे-पके फल जमीन पर गिर पड़ते हैं.इसके फल को पालतू पशु बड़े चाव से खाते हैं.जुगाली कर ये बीज को मुँह से बाहर निकाल देते हैं,जिसे इकट्ठा कर आप बरसात के दिनों में उनसे खम्हार के नए पौध तैयार कर सकते हैं.इसके कठोर बीज को तोड़कर बीच के सफेद वाले को खाया जाता है,जो बड़ा ही स्वादिष्ट होता है.

सिवना का पौध तैयार करना बड़ा सरल है.इसके सूखे बीज जमा कर लें.चौमासे के समय गीली जमीन में बिखेरकर ऊपर मिट्टी डाल लें.कुछ दिनों में पौधे निकल आएँगे.लगभग 10-15 से.मी. की लंबाई होने पर इन्हें छोटी-छोटी थैलियों में डाल लें.फिर जब चाहे तब लगा लें.इसके खेत की मेड़ पर पंक्तिबद्ध लगा दीजिए ये बड़ा खूबसूरत नज़र आएगा.
आदिवासियों के सरनेम प्राय: जीव-जंतुओ या पेड़-पौधों पर आधारित होते हैं.सिवना वृक्ष भी सरनेम के रूप में लिखा जाती है.हमारे राज्य में ही नहीं देश के कई हिस्सों में खन्हार नाम के गाँव बसाए गए हैं.मेरे ससुराल का ही नाम है-#सिवना_भाटा.

अशोक कुमार नेताम

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...