रविवार, 15 जुलाई 2018

||धान की खेती||

छत्तीसगढ़ में कई तरह की आनाज,दलहन व तिलहन फसलें ली जाती हैं.पर चावल यहाँ के भोजन में प्रमुख रूप से शामिल है.धान की सर्वाधिक पैदावार होने के कारण छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है.छत्तीसगढ़ में धान की कुछ ऐसी प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं जो अपना औषधीय महत्व रखती हैं.आइए हमारे इलाके में धान की खेती पर चर्चा करें.
धान खरीफ की फसल है जिसका वैज्ञानिक नाम ओराइजा सटाइवा है.इसकी बुआई जून-जुलाई में हो जाती है.
फसल के पकने की अवधि के आधार पर धान दो तरह के होते हैं-
1.तुरिया धान:-ये कम अवधि(लगभग 3 महीने)में पककर तैयार हो जातें है.ये मैदानी भागों में जहाँ पानी ठहर नहीं पाता,बोए जाते हैं.इसके पौधों की लंबाई कम होती है.इसके अंतर्गत कुटबुड़ी,करेला आदि नाम के स्थानीय धान आते हैं.
2. धान:-ये धान देर से(करीब 4 महीने में)पककर तैयार होते हैं.गहराई भूमि में बोए जाते हैं.इसके पौधो ऊँचे होते हैं व धान की बालियाँ भी अधिक होती हैं.कृष्णा,एच एम टी,दूबराज व अन्य संकर(हाइब्रिड)प्रजातियाँ आती हैं.
खाद का प्रयोग-प्राय: किसानों के घर में एक बड़ा गड्ढा होता है जहाँ गाय-बैलों के गोबर एकत्र कर लिया जाता है.जिसे खातू गड्ढा कहा जाता है. साल भर में वह  खाद में परिवर्तित हो जाता है.अभी इस खाद के साथ-साथ बेहतर पैदावार के लिए यूरिया व डी.ए.पी.जैसे रासायनिक खाद का भी उपयोग किया जा रहा है.
धान की बुआई/रोपाई:-
धान दो प्रकार से लगाया जाता है
1.बुआई:-बुआई  में बारिश की नमी के बाद हल चलाकर धान के बीज सीधे खेतों में बो दिए जाते हैं.बोने के बाद पाटा या कोपर चलाया जाता है जिससे कि बीज मिट्टी के भीतर ढँक जाएँ.बोआई के पहले दिन को बीज निकालना कहते हैं.बीज प्राय: जून में निकाला जाता है.10-15 दिनों में खेत हरे-भरे हो जाते हैं.अगस्त के महीने में जब पौधे 20-30 से.मी. की लंबाई के होते हैं और खेतों में पानी भरा होता है तब खेत में हल चलाया जाता है जिसे बियासी मारना करते हैं.खेत में अनावश्यक घास यानी कि खरपतवार उग आने पर उसे उखाड़कर नष्ट कर दिया जाता है जिसे निंदाई कहा जाता है.आवश्यकतानुसार ऊर्वरक व कीटनाशक का छिड़काव भी किया जाता है.
2.रोपाई:- रोपाई में धान की पौध तैयार की जाती है. पौधों के 20 से 25 दिन के हो जाने पर खेतों को रोपाई के लिए तैयार कर ले जाता है.पानी से भरे खेत की जुताई कर ली जाती है फिर कीलयुक्त पाटा(कोपर) चला कर खेत को समतल कर लिया जाता है.खेत में डी.ए.पी. का छिड़काव किया.तैयार खेत में धान के पौधे लगभग 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं. रोपाई हो जाने के 2 दिन बाद से खेत में 5 से 6 सेंटीमीटर पानी का भरा होना आवश्यक होता है.रोपाई विधि में में खरपतवार बहुत कम पैदा होते हैं व पैदावार अधिक होती है
सितंबर महीने में धान की बालियाँ निकल जाती हैं और अक्टूबर-नवंबर तक फसल तैयार हो जाती है.फसल काटकर व कूपा बनाकर कोठार में रखा जाता है.कटे हुए धान की फसल को कोठार में व्यवस्थित रूप से जमाकर रखा जाता है जिसे कूपा कहते हैं.बारिश होने की स्थिति में धान  कूपा में पानी से सुरक्षित रह जाता है.फिर कभी बेलन या ट्रै्टर चलाकर धान की मिंजाई की जाती है.दरभा धान यानी कि वो धान जिसमें चावल नहीं होता को पंखे के उड़ाकर अलग कर दिया जाता है.वर्तमान में थ्रेशर का उपयोग किया जाता है जिससे समय की बचत होती है.
बस्तर में धान ढूसी में रखा जाता है.कई स्थानों पर कोठी व बाँस से बने डोलगी में धान को सुरक्षित रख लिया जाता है.
(तस्वीर:-इंटरनेट से)
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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