इमारत बने जब संबंधों की,
तो नींव में स्वार्थ नहीं,डाला जाए प्रेम.
फिर वो महल खड़ा रहेगा,
सदियों तक अपनी जगह .
लेकिन मतलब के कमजोर नींव पर टिकी,
रिश्तों की बड़ी से बड़ी इमारत भी,
बहुत जल्दी भरभराकर गिर जाएगी.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...
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