मंगलवार, 6 मार्च 2018

||रुक बलेसे||

मचो ले तुचो,जीवना चलेसे.
रूक बिगर काँई नई,दुनिया बलेसे.
तेबले तुय ,हानि करसित मचो,
साँग काईं नसालूँ,आमि तुचो.
मचो पान ने खादलिस,लकड़ी ले बनालिस घर.
मके दुखा देउक,आज इतरो होलिसित हरभर.
सिरमिट चो घर बनउक,बेड़ा-खाड़ा,तरइ के पाटसीत.
दँयसे लेहरा-पानी मँय तुके,तुय मकय काटसीत.
काय मंजा सहर ने रसे,पींदसे रंग-रंग चो कुड़ता.
बठसे लोहा-पलासटिक चो कुरची ने,नी करसे आमके सुरता.
दँयसे मँय पान-फर,दँयसे लाख-लकड़ी गोंद.
मँय आसे टाड़े बिकास चो बाट ने जाले,तुय मके हरिक होउन गोंद.
तुचो हाथ होली लाल-लाल,देंह ले पसना फुटली.
आपलो बेटा के दुखा ने दखुन,मचो जीव दुखली.
मुंडे तुचो साता नहीं,पनहीं बले नई पाँय ने.
पासे काटसे मके,आव डंडिक बठ,सुसताव मचो साँय ने.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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