न पूछो मुझसे,
है कितना मुझमें दम.
अब तो चाँद पर भी,
पड़ चुके हैें अपने कदम.
जानती नहीं घर पे रहके,
मात्र पापड़-रोटियाँ बेलना.
अबला नहीं,मुझे आता है,
तीर-तलवारों से भी खेलना.
कभी दुर्गा,मेैं कभी झलकारी हूँ.
मैं आज की नारी हूँ.
कोख से कब्र तक.
फर्श से अर्श तक.
मैं बनकर माँ,
ममता का सागर लुटाती हूँ.
बहन-सखी-पत्नी कभी,
और कभी बेटी बन जाती हूँ.
अपनों पे सब कुछ वारी हूँ.
मैं आज की नारी हूँ.
न आती मैं कभी,
किसी की बातों में.
मेरी तक़दीर है,
मेरे खुद के हाथों में.
सदियों से समाज ने थोपी,
मुझ पर अपनी इच्छा.
मैं अब वो सीता नहीं जो,
निष्कलंक होकर भी दे अग्नि परीक्षा.
किसी से कब हारी हूँ.
मैं आज की नारी हूँ.
मैंने किया आदिकाल से,
सकल विश्व का पोषण.
समता का अधिकार मिले मुझे,
और बंद हो मेरा शोषण.
जब-जब अवमानना होगी मेरी,
पथ मेरा जब-जब अवरुद्ध होगा.
तब-तब महाभारत सरीखा,
एक भयंकर युद्ध होगा.
हर परिस्थियों पर मैं भारी हूँ.
मैं आज की नारी हूँ.
✍अशोक कुमार नेताम
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