शनिवार, 10 मार्च 2018

||रूक जीवना चो मुर||

राति गुलाय हाय-हाय.
लोग रसत परिसान.
सहर चो कींव-काँव ने,
लागेसे खुबे घिरसान.

किंजरुक जातें बलुन,
मन में बिचार करलें.
खमना में बुलुकलाय,
मैं घर ले निकरलें.

खमना ने आसत टाड़े,
ओग्गाय जमाय रूकमन.
भुँये झड़लासत जत-खत,
हुनमनचो हरदेया पानामन.

सरगीरूक चो देंह ने,
नी हाय गोटोक पाना.
बलेसे हुन जसन कि कोनी,
मचो काजे नवा लुगा आना.

रूक लेहरा संगे-संगे,
काय मंजा झुलना झुलेसे.
खंदा मन ने काय सुंदर,
पंडरी-पंडरी फूल फुलेसे.

फरसा आउर सेमर रूक ने,
लाल-लाल फुले चे भरलीसे.
दखुन लागेसे असन कि,
जसन खमना ने आगि धरलीसे.

महु रूक ने पंडरी-पंडरी महु डोंगा,
काय सुन्दर दखा दीलिसे.
बुधनी बड़े बिहाने ले महु बेचुक,
गपली-पेज धरुन भाती इलिसे.

बारा बानी फुल चो गंध ने,
मनमंजूर मातुन जायेसे.
सत्तय,बन मे रतो बीता,
नंगत सुक पाएसे.

लकड़ी-दतुन-पान-लेहरा,
जमाय खमन ले मिरेसे.
रुक मन ले झिकी होउन,
भुँय ने पानी गिरेसे.

रुक आत जीवना चो मुर,
आइग नी धरावा राने,ए मन के नी काटा.
रुक राई के नोकसान करले,
आमचोय चे होउ आय घाटा.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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