मुख से राम नाम नित बोल रे.
बाहर भटके हरि न मिलेंगे,
अंतर के पट खोल रे.
कटु वचन हैं तीखे तीर,
वचन सदा मीठे ही बोल रे.
पाप में न लिप्त रह,
समझ समय का मोल रे.
कभी किसी के जीवन में,
तू पीड़ा विष मत घोल रे.
छुपा ले लाख कर्म अपने,
खुल जाएगी तेरी हर पोल रे.
औरों का न उपहास कर.
कभी अपना हृदय टटोल रे.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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