प्राप्ति नहीं,
ये पथ है.
इति नहीं,
ये अथ है.
तुम्हें मुझसे,
ये गिला था.
कि ऊपर से तुझे,
कुछ भी नहीं मिला था.
अब देख सब कुछ,
सौंप दिया तेरे हाथों में.
कुछ कर,न उलझा जग को,
अपनी मीठी बातों में.
न भिक्षा माँग किसी से दया की,
अपने हाथ जोड़कर.
है सामर्थ्य तुझमें कि रख दे,
हवा की दिशाएँ मोड़कर.
अनुभव-ज्ञान-धन अर्जन तेरा,
है सार्थक यदि वो परहित के काम आए.
अन्यथा धिक्कार उसे,
उचित है कि वो गंदे नाले में बह जाए.
और भी हैं संसार में,
अपने बारे में ही न सोच.
अनुभव कर,परपीड़ा में पीड़ा,
रोते हुए के आँसू पोंछ.
अब तक तो तुम,
गर्व करते रहे हो माटी पर.
वो गर्व करे इक दिन तुमपे,
अब तू कर्म ऐसे महान कर.
(फोटो:-इन्टरनेट से)
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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