गुरुवार, 4 जनवरी 2018

||बस्तर का दोना-पतरी||

बस्तर जहाँ अकूत प्राकृतिक सम्पदाओं और अद्भुत सौंदर्य का धनी है,वहीं आज भी यहाँ के मूलनिवासी प्रकृतिप्रेमी होने के कारण दोने-पत्तल में भोजन करने में ही आनन्द पाते हैं.आज भी यहाँ विवाह,जन्मोत्सव-छठी,मृतक कर्म व अन्य सामाजिक कार्यक्रमों के अवसर पर दोने-पत्तल ही भोजन हेतु प्रयोग में लाए जाते हैं.

बस्तर साल वनों का द्वीप है इसलिए प्राय: इसी के पत्तों का उपयोग दोने-पत्तल बनाने में किया जाता है,इसके अतिरिक्त सिंयाड़ी,बरगद,सागौन,महुआ के पत्तों से भी पत्तल बनाए जाते हैं.औरतें इनका निर्माण करती हैं.

डोबला/डोबली:-बस्तर में 4 से 6 पत्तों को सिकन(बाँस की पतली सींक) से जोड़कर तथा उनके किनारों को गोल मोड़कर पत्तल बनाया जाता है.बड़े और छोटे आकार वाले पात्र क्रमश: डोबला और डोबली के नाम से जाने जाते हैं.इसमें चावल परोसा जाता है.

दोना/दोनी:-पात्र के आकार के आधार पर इसे दोना या दोनी कहा जाता है.ये 2 से 3पत्तों से बनाया जाता है.इसमें प्राय:सब्ज़ी,दाल परोसा जाता है.पेय पदार्थ पीने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है.पत्ते के दोनों सिरों को मोड़कर भी एक पत्ते की दोनी बनाई जाती है.जिसमें प्राय:लाई-गुड़(माहला सगाई आदि के रस्म में)तिल-कोंडा(शिशु के जन्म के बाद)आदि बाँटे जाता है.

चिपड़ी:-बस्तर में चिपड़ी भी बहुत प्रसिद्ध है.इसमें किसी तरह के जोड़ -तोड़ की जरूरत नहीं होती बल्कि एक पत्ते के एक सिरे के मोड़कर दोनों सिरों को दोनों हाथों से पकड़ लिया जाता है.पेज,सल्फी,शराब आदि चिपड़ी से पिए जाते हैं.

आज हम भले ही विभिन्न अवसरों पर प्लॉस्टिक के पात्रों में भोजन करने में गर्व-प्रसन्नता का अनुभव करते हैं लेकिन प्रकृति से सामंजस्य बनाकर ही अपने पर्यावरण को प्रदूषणमुक्त और सुरक्षित रखा जा सकता है,ये बात शायद ये भोले-भाले और सीधे-सरल वनवासी हमसे बेहतर तरीके से जानते हैं.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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