मंगलवार, 5 सितंबर 2017

||कालिया नाग मर्दन||

रहता था यमुना में एक कालिया सर्प.
था जिसे अपनी शक्ति पर बड़ा ही दर्प.
उनके हलाहल से जीव-जंतु मरने लगे.
निकट जाने से सरिता के,सभी डरने लगे.
था गोपाल को,सबके सुख-दुख का संज्ञान.
सोचा,खंडित किया जाए काली का अभिमान.
खेलते साथियों संंग फेंकी गेंद,नदी में जान बूझकर.
तुरंत कूदे,बोले-"अभी लाता मैं गेंद नदी से ढूँढकर."
भीतर यमुना में कान्हा,नागराज से लड़ रहे.
परस्पर वो योद्धा,एक दूजे पर भारी पड़ रहे.
कृष्ण के प्रहार से,बहने लगा शत्रु के मुख से रक्त.
इधर-उधर डोलने लगा नागराज होकर निशक्त.
कालिय नाग का तो जैसे,सारा अहंकार पिघला.
परास्त-विवश हो वह सरिता से बाहर निकला.
बजा वंशी नटवर करने लगे फन पर नर्तन.
हुआ कालिया नाग का अभिमान मर्दन.

✍ अशोक नेताम "बस्तरिया"

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...