खाया जितना उनसे मार.
उनसे मिला,उतना ही दुलार.
मिला जिनसे,जीवन का सच्चा ज्ञान.
कि बड़ों का करो तुम,सदा सम्मान.
कभी न करो,सपने में भी अभिमान.
तजो अवगुण,बनो सद्गुणों की खान.
अपने पथ पर,कभी न रूकना.
आए पर्वत,फिर भी न झुकना.
वो रास्ता,जो आपने हमेंकल था दिखाया.
सचमुच वो,आज हमारे बहुत काम आया.
थे हम अज्ञानी,हम थे अबोध.
आपने कराया हमें आत्मबोध.
ईश्वर तो मिट्टी के तन में,केवल प्राण भरता है.
गुरु उसे तराशकर,सच्चे मानव का निर्माण करता है.
पाकर जिनसे ज्ञान,सार्थक हो जाता जीवन.
उस गुरु को हमारा,हृदय से बारम्बार नमन.
अशोक नेताम "बस्तरिया"
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