संसार के कण-कण में रहता वो,
बसता सबके घट-घट.
न मिला ईश्वर यदि,तुझे अब तक,
तो समस्या नहीं ये विकट.
जीवन रंगमंच यह प्यारे,
तू है,पल भर का नट.
रह जग में,न कर जगत से प्रीति,
नित्य तू हरिनाम रट.
मोह निद्रा से जाग जरा,
हटा अवगुणों के पट.
फिर पाएगा अपने प्रियतम को,
हृदय के अत्यंत निकट.
अशोक नेताम "बस्तरिया"
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