शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

||जइसन करबे वइसन पाबे||

दूसर बर गड्ढा खनइय्या,
उही गड्ढा म गिर जाथे जी.
करम करथे जे जइसन.
वो वइसन फल पाथे जी.

अपनेच के कमइ खा,
दूसर के धन के ललच झन कर.
अपने लुट जाथे ओ ह,
जे दूसर ल लूट के खाथे जी.
करम करथे जे जइसन.
वो वइसन फल पाथे जी.

आज हे दुख त तैं,
निरास काबर होवथस संगवारी.
रहय कतको बड़े रतिहा,
बिहनिया तो फेर अाथे जी.
करम करथे जे जइसन.
वो वइसन फल पाथे जी.

उँच-नीच,छोटे-बड़े,जाति-धरम,
ए सब भरम हरें मनखेमनके.
मरे के बाद तो जम्मो झन,
एकेच जगा जाथें जी.
करम करथे जे जइसन.
वो वइसन फल पाथे जी.

ए दुनिया के मड़ई म,
लगे रहिथे सबके आना-जाना.
ओखरे जिनगी होथे धन्य,
इहाँ जे पुन्य कमाथे जी.
करम करथे जे जइसन.
वो वइसन फल पाथे जी.

अशोक नेताम 'बस्तरिया'

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