दूसर बर गड्ढा खनइय्या,
उही गड्ढा म गिर जाथे जी.
करम करथे जे जइसन.
वो वइसन फल पाथे जी.
अपनेच के कमइ खा,
दूसर के धन के ललच झन कर.
अपने लुट जाथे ओ ह,
जे दूसर ल लूट के खाथे जी.
करम करथे जे जइसन.
वो वइसन फल पाथे जी.
आज हे दुख त तैं,
निरास काबर होवथस संगवारी.
रहय कतको बड़े रतिहा,
बिहनिया तो फेर अाथे जी.
करम करथे जे जइसन.
वो वइसन फल पाथे जी.
उँच-नीच,छोटे-बड़े,जाति-धरम,
ए सब भरम हरें मनखेमनके.
मरे के बाद तो जम्मो झन,
एकेच जगा जाथें जी.
करम करथे जे जइसन.
वो वइसन फल पाथे जी.
ए दुनिया के मड़ई म,
लगे रहिथे सबके आना-जाना.
ओखरे जिनगी होथे धन्य,
इहाँ जे पुन्य कमाथे जी.
करम करथे जे जइसन.
वो वइसन फल पाथे जी.
अशोक नेताम 'बस्तरिया'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें