शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

||जी लें इसी पल को||

आज हैं,है तय कि.
कल हम नहीं रहेंगे.
लोग कर्मों से हमें,
अच्छा या बुरा कहेंगे.

ये काल्पनिक-
सांसारिक बंधन तोड़कर.
जाना होगा,
सबको ये दुनिया छोड़कर.

समय न गवाँ व्यर्थ,
पुण्य कमा ले थोड़ा.
समय नहीं रुकता कभी,
ये तो है बेलगाम घोड़ा.

कल की चिंता त्यागकर,
बेहतर बनाता जो आज को.
शत प्रतिशत् सत्य कि,
पाता वही सफलता के ताज को.

भला किसने देखा है,
कल को.
क्यूँ न हँसकर जी लें,
इसी पल को.

✍अशोक नेताम 'बस्तरिया'

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...