गीदम-जगदलपुर मार्ग से उत्तर दिशा की ओर आरापुर गाँव में दो आदिवासी युवतियाँ सिर पर डलिये में कुछ ले जा रहीं थीं.हल्बी(भाषा)में पूछने पर उन्होंने बताया-''तेतर.''
मैंने समझा नहीं,झाँककर देखा तो समझ गया.खाने को माँगने पर उन्होंने कहा कि ये गंदे हो गए हैं.तेतर खाना हो तो कभी फुर्सत में आना.तेतर भले खाने को न मिला,पर उनकी तस्वीर लेने का मौका तो मुझे मिल ही गया.इस चित्र में ये औरतें तेतर वृक्ष की छाँव में ही खड़े हैं.तेतर यानी कि इमली.यह भोजन में खटाई के लिए प्रयुक्त होती है.व्यापारी प्राय: छिलकारहित व साबुत इमली क्रय करते हैं.ये हर वर्ष 20 से 25 रु.प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है.बाजारों में लोग छिलकारहित इमली भी बेचते हैं.इस प्रकार यह लोगों की आय का अच्छा स्त्रोत है.हाँ,बेमौसम बारिश हो जाने पर इसका भाव गिर जाता है.वैसे आप तो जानते ही हैं कि बस्तर एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी के रुप में विख्यात है.
मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019
||तेतर||
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