मेरे मीत.
हार से मत हो भयभीत.
आज जीवित हो,
भले कल तक थे मृत.
अपनी विफलताओं को,
कर दे विस्मृत.
भूल जा अपना दुखद अतीत.
रवि कब नहीं निकला?
कभी छोड़ा नदी ने बहना?
थमना तो मृत्यु है,
जीवन है सतत चलते रहना.
न सोच क्या वर्षा,घाम,शीत.
करनी है तुम्हें,
एक नए जगत की सृष्टि.
न भटकना,रखना सदैव
अपने लक्ष्य पर दृष्टि.
अवश्य होगी तुम्हारी जीत.
खुद को
कसौटियों पे कसते रहो.
दुख हो सुख हो,
हमेशा हँसते रहो.
गाओ नित खुशियों के गीत.
जगत मंच पर,
अपनी भूमिका निभाना है.
नाटक खत्म कि इक दिन,
सबको लौट जाना है.
यही दुनिया की रीत.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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