खुशियों के रौशनी से,
ग़म का पहाड़ पिघल जाएगा.
हमेशा ऐसा नहीं रहेगा,
वक़्त एक दिन बदल जाएगा.
हरदम कहाँ,
अंधेरा होता है.
हर रात के बाद,
सवेरा होता है.
फैलेगा चारों ओर उजाला,
जब ज्ञान का दीया जल जाएगा.
बदलाव के लिए तू,
कमर कस ले आज.
कल तेरी मुट्ठी में होगा,
कामयाबी का ताज.
मत कर आराम,चलता चल,
सबसे आगे निकल जाएगा.
गिरने पे तेरे हँसेगा जग,
कहेगा तुम्हें जोकर.
बैठ न जाना ऐसे में,
तुम कहीं निराश होकर.
मंजिल तक पहुँचेगा वही,
जो गिरके संभल जाएगा.
समय के आगे,
हर आदमी झुकेगा.
ये न रुका है,
और न कभी रुकेगा.
अभी सुबह हुई,होगी दोपहर,
धीरे-धीरे दिन भी ढल जाएगा.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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