कभी तो मिलेगी मंज़िल चलते रहो.
चाहे जो भी हो हासिल चलते रहो.
मतलबी जहाँ में न कर किसी पे यकीं,
ताक में खड़ा है कातिल चलते रहो.
हार से लेते रहो कोई न कोई सबक,
बन जाओगे काबिल चलते रहो.
मेहनत कर,और रख खुद पे भरोसा,
कुछ भी नहीं है मुश्किल चलते रहो.
तुम पे आज हँसती है तो हँसने दो,
कल सलाम करेगी महफिल चलते रहो.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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