विपत्तियाँ परीक्षा लेती हैं सबकी,
विकट परिस्थियों में भी जो धीर धरे.
वही मनुष्य है.
रंग रूप जैसा भी हो सब संतान हैं ईश्वर की.
सबसे समता का व्यवहार करे.
वही मनुष्य है.
क्यों न मृत्यु ही सामने आकर खड़ी हो जाए,
धर्म और सत्य के पथ से न टरे.
वही मनुष्य है.
स्वयं हँसता रहे सदा जो,
और सबके जीवन में प्रसन्नता के रंग भरे.
वही मनुष्य है.
मात-पिता की करे सेवा.
अपने जन्मभूमि के सम्मान के लिए जिये-मरे.
वही मनुष्य है.
परमपिता परमात्मा को जो देखे सबके भीतर.
हिंसा-छल-कपट से हमेशा रहे परे.
वही मनुष्य है.
अपनी पीड़ा पर अश्रु तो सभी बहाते हैं,
पर जो औरों की पीड़ा हरे.
वही मनुष्य है.
✍अशोक कुमार नेताम
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