मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

||ग्रामीण जनजीवन का हिस्सा:दातुन||

रोज सुबह उठने के बाद मुँह धोया जाता है व दाँतों की सफाई की जाती है.इसके लिए ब्रश,टूथपेस्ट व जीभी का उपयोग किया जाता है.जो न केवल पर्यारण को नुकसान पहुचाते हैं,बल्कि टूथपेस्ट में मिलाए गए कैमिकल्स भी मसूड़ों के लिए तकलीफदेह साबित होते हैं.पर गाँवों में आज भी दाँतों की सफाई के लिए दातुन ही उपयोग में लाया जाता है.

गाँवों में पेड़-पौधों की अधिकता के कारण दातुन बड़ी आसानी के उपलब्ध हो जाता है.पेड़ की टहनियों से प्राप्त ये दातौन ऊंगलियों के बराबर पतले व 20-30 से.मी. तक लम्बे होते हैं.दातुन करने के लिए अलग से टूथपेस्ट की जरूरत नहीं होती.केवल दाँतों से कूची बनाकर दाँत साफ कर लिए जाते हैं.कुछ लोग दातुन के साथ नमक व कोयले का उपयोग दंत मंजन के रूप में करते हैं.दातुन करने के बाद इन्हें बीच से फाड़कर दो भाग कर लिया जाता है तथा उन्हें बीच से यू आकार में मोड़कर व जीभ साफ कर फेंक दिया जाता है. प्राय: साल,करंज,नीम,कहुआ(अर्जुन),महुआ,साजा,बेर,इमली,छींद,बबूल आदि के दातौन उपयोग में लाए जाते हैं.कड़वे व कसैला स्वाद वाला दातुन दाँतों के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है.दातुन का रस लार के साथ शरीर के भीतर जाकर हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.दातुन सूख न जाएँ इसलिए उन्हें पानी में डुबाकर रखा जाता है.गाँव की औरतें जब भी जंगल जाती हैं तब लकड़ी,पान और दातुन अपने साथ जरूर लाती हैं.कई औरतें शहर में दातुन विक्रय कर आय भी अर्जित करती हैं.
इस प्रकार दातुन ग्रामीण जनजीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है.यह एकदम सस्ता और पर्यावरणहितैषी है.
गाँव में असुविधाओं के बीच रहना कइयों के लिए सजा है.पर वृक्षों की शीतल छाँव में जीने का अपना एक  अलग ही मजा है.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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