शनिवार, 1 अप्रैल 2017

||चलो स्वयं को सुधारें||

निस्संदेह पराधीन भारत को स्वतंत्र कराने में वीरों को कठिन संघर्ष करना पड़ा था.लोगों को संगठित करने जन-जन के मस्तिष्क में देशप्रेम की अलख जगाने के लिए और तत्कालीन सामाजिक विषमताओं को नष्ट करने के लिए महापुरुषों को,अपना और अपने परिवार के हितों का त्याग कर निस्वार्थ भाव से देश को स्वतंत्र कराने का दुष्कर कार्य करना पड़ा.सरदार भगत सिंह,चंद्रशेखर आजाद जैसों ने जहां अपने परिवार का त्याग किया,वहीं नेहरू-गांधी आदि ने अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग कर देशहित का कार्य किया. देश की जनता को नग्न देखकर गांधीजी ने स्वयं आजीवन कम से कम वस्त्रों में गुजारा किया. इतिहास साक्षी है कि संसार में सदा ही कड़े संघर्ष, त्याग,सेवा और परोपकारिता की भावनाओं से ही सुशासन स्थापित हुआ है.

आज देश स्वतंत्र है.आज लोगों के आगे वह समस्याएं लगभग नहीं हैं,जो पराधीनता के युग में थीं.फिर भी आज के समय में इतनी हाहाकार है, इतना स्वार्थ है कि मनुष्य ही मनुष्य का शत्रु बन बैठा है.समाचार पत्रों में हम रोज ही मानवता को लज्जित कर देने वाली घटनाओं के बारे में पढ़ते हैं. हत्या,लूट,चोरी,दुष्कर्म जैसी घटनाएँ हमारे देश को कलंकित कर रही हैं.इतिहास गवाह है कि कितना ही महान राजा हो अथवा राजवंश,कुकर्म के पथ पर चलने पर उस का पतन हुआ है.यहां तक कि स्वयं ईश्वर को भी अपने बुरे कर्मों की सजा भुगतनी पड़ी है.

जरासंध के आक्रमण का सामना श्री कृष्ण नहीं कर सके थे.फलत: उन्होंने प्रजासहित सागर के निकट द्वारिका नामक सुंदर सा नगर बसाया.जहां सभी लोग प्रसन्न और समृद्ध थे. लेकिन कालांतर में द्वारिका के जनता की बुद्धि भ्रष्ट हो गई और अंततोगत्वा यदुवंशियों का अस्तित्व ही सदा-सदा के लिए मिट गया.

आज हमारी परिस्थितियाँ भी बिलकुल वैसी ही हैं. हमारे पुरखों के संघर्षों से ही आज हम स्वतंत्रता की स्वास ले रहे  हैं.परंतु अब हम कुमार्ग पर  पग धरने लगे हैं .हम अपने सामर्थ्य,अपनी योग्यता का दुरुपयोग कर रहे हैं.

यदि हमने अपने विचार,व्यवहार,और स्वभाव को नहीं बदला.यदि हमने अपने भीतर की बुराइयों को,अपने समाज में व्याप्त विषमताओं को नहीं मिटाया तो एक दिन समय हमें ही मिटा देगा.

क्या हम ऐसा होने देंगे?

✍अशोक कुमार नेताम "बस्तरिया"
Email:-kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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