शनिवार, 8 अप्रैल 2017

||हसरत अधूरी रह गई||

मंजिल के करीब पहुंच कर भी,
कुछ दूरी रह गई.
ऐ खुदा एक और जिंदगी बक्शना मुझे,
उन्हें पाने की हसरत तो अधूरी रह गई.

हम तो तैयार थे पूरी तरह,
अपना सब कुछ लुटाने को उन पर,
जाने कौन सी उनकी मजबूरी हो गई.
ऐ खुदा एक और जिंदगी बक्शना मुझे,
उन्हें पाने की हसरत तो अधूरी रह गई.

करते रहे वो फरमाइशें,
हम पूरी करते रहे बस उनकी ख्वाहिशें,
इश्क बस जी हुजूरी रह गई.
ऐ खुदा एक और जिंदगी बक्शना मुझे,
उन्हें पाने की हसरत तो अधूरी रह गई.

मंजिल के करीब पहुंच कर भी,
कुछ दूरी रह गई.
ऐ खुदा एक और जिंदगी बक्शना मुझे,
उन्हें पाने की हसरत तो अधूरी रह गई.

✍अशोक कुमार नेताम "बस्तरिया"
Email:-kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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