शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

||बेटी हो तो ऐसी||

जिस दिन मीना ने अपनी पहली संतान को जन्म दिया,उस दिन उसके पति सुकलू को ज्यादा खुशी नहीं हुई.लड़की जो पैदा हुई थी.
बल्कि दूसरी बार पिता बनने पर उसने खूब आतिशबाजी की.मिठाईयाँ बाँटकर उसने सबको बताया कि उनके घर लड़का हुआ है.

बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए दोनों ने गाँव छोड़ दिया और शहर में आ गए.शीला और रमेश दोनों धीरे-धीरे बड़े होने लगे.उन्होंने दोनों को पढ़ाया-लिखाया.लेकिन उनकी परीक्षाओं के प्राप्त अंकों में हमेशा ही अंतर रहा.क्योंकि रमेश को बेटा होने के कारण उनके माता-पिता ने अधिक लाड़-प्यार दिया.उसके अवगुणों की अवहेलना की.जिससे वह बुरी संगति में पड़ गया.उन्हें पता ही नहीं चला कि उनका बेटा कब जुए और शराब का आदी हो चुका है.

पर इससे अलग बेटी होने के कारण शीला को समय-समय पर अच्छे-बुरे की सीख मिलती रहती थी.पर उसने उनकी बातों को कभी नकारात्मक रुप से नहीं लिया और सदा आगे बढ़ती गई. वह अपने माता-पिता के कामों में भी अपना हाथ बँटाती थी.

अच्छी पढ़ाई के कारण शीला को एक सरकारी कॉलेज में पढ़ाने की नौकरी मिल गई.वहीं रमेश एक सरकारी ऑफिस में चपरासी ही रह गया.

समय का खेल देखिए,अपनी संतानों की अच्छी तरह परवरिश करने वाले सुकलू और मीना का आज कोई भी नहीं है.

साल भर पहले  शीला ने माँ-बाप की इच्छा के विरुद्ध दूसरी बिरादरी में विवाह कर लिया,और रही-सही कसर उनके नालायक बेटे रमेश ने पूरी कर दी.वह एक बड़े शहर में एक रईस परिवार में घर जमाई बन गया,और उसके बाद एक बार घर में झाँककर भी नहीं देखा कि,उनको बड़े जतन के साथ पालने-पोसने वाले,उनके माता-पिता कैसी दयनीय अवस्था में जी रहे हैं.

वैसे उन्हें अपनी बेटी पर बहुत प्यार आता था और अपनी सख्ती पर पछतावा भी.क्योंकि  शीला ने कोई चोरी नहीं की थी.उसने तो घर में बताया था कि वह विजय नाम के एक लड़के से प्रेम करती है,जिसके माँ-बाप नहीं हैं,जो दूसरी जाति का है,बैंक में काम करता है,और दोनों शादी करना चाहते हैं,पर उनके पिताजी अंतर्जातीय विवाह के सख्त खिलाफ थे.इसलिए वह घर छोड़कर चली गई.

आज सुकलू और मीना अपने घर में खुद को बहुत अकेला अनुभव कर रहे थे.जिन बच्चों को लेकर उन्होंने गाँव छोड़कर शहर का रुख किया था आज उन्होंने ही उनका साथ छोड़ दिया था.

अभी सुकलू और मीना किसी चिंता में डूबे थे कि घर के बाहर किसी चारपहिया वाहन के रुकने व उसके हार्न की आवाज सुनाई दी.

दोनों ने देखा कि बाहर विजय और शीला खड़े थे.

शीला बोली-"माँ-पापा!मुझे लोगों से पता चला कि आप दोनों बड़ी दुख भरी जिंदगी जी रहे हैं. यह सुनते ही मैं दौड़ी चली आई. मुझे आप दोनों की ऐसी देखी दशा नहीं देखी जाती."

"हाँ पिताजी!इसलिए हम दोनों ने फैसला किया है कि अब आप दोनों हमारे साथ,हमारे घर में ही रहेंगे.मेरे मां-पिताजी तो अब नहीं रहे. इस तरह मुझे मां-बाप का प्यार भी मिल जाएगा." विजय बोला.

दोनों की आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी.जिस बेटे को उन्होंने अपना जाना,उसने उन्हें ठुकरा दिया.और जिस बेटी को उन्होंने जीवन भर पराया समझा,आज वही उन्हें अपना रही है.

विजय और शीला ने घर के सारे सामान पैक कर लिया और मां-पिताजी को कार में बिठाकर अपने घर ले गए.
आज सुकलू और मीना को पता चला कि आखिर बेटी क्या होती है.

लोगों ने जब ये दृश्य देखा तो उनके मुँह से बस यही वाक्य निकला-"भई बेटी हो तो ऐसी."

✍ अशोक नेताम "बस्तरिया"

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