रविवार, 16 अप्रैल 2017

||जाति न पूछो साधु की||

मिथिला नरेश जनक के दरबार में एक ऐसे साधु ने प्रवेश किया जिसका शरीर आठ जगह से टेढ़ा था.
उपस्थित सभी सभासद उसे देखकर जोर-जोर से ठहाके लगाने लगे.
वह सज्जन जिसका नाम अष्टावक्र था,चुप ही रहा.

जब सभी सभासद चुप हुए,तब सभा की चुप्पी तोड़ते हुए अष्टावक्र ने कहा-"मैंने तो समझा था कि राजा जनक के दरबार में कई विद्वान होगें,पर ये तो चमारों की सभा है."

दरबार में उपस्थित  सदस्य अष्टावक्र द्वारा कहे गए चमार शब्द से अत्यंत क्रोधित हो गए.
कई लोगों नेे कहा-"राजन!इसे इस धृष्टता के लिए कठोर से कठोर दंड दिया जाए."
राजा जनक ने कहा-"हे महत्मन्!तुम अपना परिचय दो और बताओ कि तुम ने किस आधार पर सभासदों को चमार कहा.यदि तुम संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए तो राज दरबार की अवमानना के अपराध में कठोर दंड के भागी बनोगे."
उस सज्जन ने कहा-"राजन!मैं अष्टावक्र हूं. और मैंने सही कहा कि ये सभासद जिन्होंने मुझे देखकर अट्टहास किया,चमार है़ं.हे राजन!चमार किसी पशु को यह देखकर उसका मोल करता है कि इसकी मांस,अस्थि,चर्म आदि मेरे कितने काम की है.किसी के शरीर की बनावट देखकर जो व्यक्ति उसके मूल्य का आकलन करता है.वस्तुत: वह चमार ही है.
अष्टावक्र का उत्तर सुनकर सभी मौन रह गए.
उसने और भी कई जीवनोपयोगी ज्ञान की बातें बताईं.
राजा जनक अष्टावक्र की विद्वता से अत्यंत प्रभावित हुए.उन्होंने उसे बहुत सारा धन दिया और सम्मान सहित विदा किया.

अष्टावक्र ने सच ही कहा.

कबीर दास जी ने भी तो यही कहा है

जाति न पूछो साधु की,पूछ लीजिए ज्ञान.
मोल करो तलवार की,पड़ी रहन दो म्यान.

✍अशोक कुमार नेताम

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